बिहार। आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu yadav) ने 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान जिस कन्हैया कुमार को महागठबंधन में एंट्री नहीं दी थी, वही कन्हैया कुमार अब कांग्रेस में शामिल होकर बिहार महागठबंधन का हिस्सा बन चुके हैं.

इसका नतीजा यह हुआ कि 2019 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का आरजेडी के साथ गठबंधन नहीं हो पाया और वामपंथियों की डूबती हुई नैया को उबारने के लिए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने कन्हैया कुमार को बेगूसराय से चुनाव लड़ाया, जहां उन्हें भाजपा उम्मीदवार गिरिराज सिंह के हाथों करारी शिकस्त मिली.

2020 में कन्हैया ने किया महागठबंधन के नेताओं के लिए प्रचार

हालांकि, 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव के वक्त लालू ने लोकसभा चुनाव वाली गलती को नहीं दोहराया और सभी वामपंथी दलों के साथ गठबंधन किया. विधानसभा चुनाव में कन्हैया ने आरजेडी प्रत्याशियों के लिए प्रचार-प्रसार भी किया, लेकिन वे खुद चुनाव नहीं लड़े. 2021 में अब जब कन्हैया ने वामपंथियों का दामन छोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया है तो एक बार फिर से आरजेडी के अंदर कन्हैया को लेकर खलबली मची हुई है.

कन्हैया देंगे तेजस्वी को चुनौती ?

कन्हैया को लेकर लालू का डर एक बार फिर सामने है कि क्या उसके महागठबंधन में शामिल होने से तेजस्वी के समकक्ष एक और युवा नेता खड़ा हो गया है जो भविष्य में उनके बेटे के लिए खतरा हो सकता है. यहां गौर करने वाली बात यह है कि महागठबंधन के घटक दलों में कोई बड़ा चेहरा नहीं होने की वजह से और आरजेडी के सबसे बड़े घटक दल होने की वजह से सभी पार्टियों ने तेजस्वी को ही महागठबंधन का निर्विवाद नेता माना हुआ है.

अब तक तेजस्वी हैं महागठबंधन के नेता

2019 लोकसभा चुनाव और 2020 विधानसभा चुनाव महागठबंधन ने तेजस्वी के नेतृत्व में लड़ा, लेकिन कन्हैया के कांग्रेस में शामिल हो जाने के बाद क्या तेजस्वी महागठबंधन के नेता बने रहेंगे और क्या कन्हैया खुद तेजस्वी के नेतृत्व के नीचे काम करेंगे यह बड़ा सवाल है?

शायद कन्हैया के कारण तेजस्वी के राजनीतिक भविष्य पर मंडरा रहे खतरे को लेकर आरजेडी के नेताओं से सवाल पूछा गया तो वह बिफर पड़े.

क्या कहते हैं आरजेडी के नेता?

आरजेडी के कद्दावर नेता और मनेर विधायक भाई बिरेंद्र की तो हालत ऐसी थी कि उन्होंने कन्हैया कुमार को पहचानने तक से इनकार कर दिया है. ”कौन कन्हैया कुमार ? मैं किसी कन्हैया कुमार को नहीं जानता हूं. वह कौन है और कहां जा रहा है मुझे इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है. किस कन्हैया कुमार की चर्चा हो रही है मुझे नहीं पता ”, ये शब्द बिरेंद्र कुमार के हैं.

वहीं, आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी मानते हैं कि कन्हैया से तेजस्वी की तुलना हो ही नहीं सकती है, क्योंकि तेजस्वी पहले से एक स्थापित नेता हैं और 2020 से विधानसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन को कड़ी टक्कर देकर उन्होंने अपने कार्य क्षमता दुनिया को दिखा दिया है.

आरजेडी नेता मृत्युंजय तिवारी ने कहा, ”हर व्यक्ति स्वतंत्र है कि वह किसी भी राजनीतिक दल की विचारधारा को अपनाकर राजनीति कर सकता है. नेता तेजस्वी यादव के मुकाबले दूर-दूर तक कोई नेता नहीं टिकता है. तेजस्वी ने जो प्रतिभा दिखाई है उसका लोहा देश और दुनिया ने माना है. बिहार की जनता अपना भविष्य तेजस्वी में देख रही है. देश की जनता भी तेजस्वी को अपने दिल में बसाती है और उन्हें गंभीरता से लेती है. इसी कारण से तेजस्वी की तुलना किसी और नेता से नहीं हो सकता है. तेजस्वी एक स्थापित नेता है और जनता को स्वीकार्य हैं”,

कन्हैया के कांग्रेस में शामिल होने पर एनडीए ने क्या कहा?

कन्हैया कुमार के कांग्रेस में शामिल हो जाने के बाद भाजपा अब देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल के मजे ले रही है. भाजपा का मानना है कि देश में कांग्रेस एक डूबती हुई नैया है और कन्हैया का उस पर सवारी करना उनके लिए खतरनाक साबित होगा.

स्वास्थ्य मंत्री और भाजपा नेता मंगल पांडे ने कहा, ”जिसके बारे में चर्चा है उसका बिहार की राजनीति में कोई स्थान नहीं देखता हूं. कोई अगर कांग्रेस जैसी डूबती नैया की सवारी करना चाहता है वह डूब जाएगा”

चले हुए कारतूस से जंग नहीं लड़ी जाती

वहीं कन्हैया के कांग्रेस में शामिल होने पर जनता दल यूनाइटेड ने तंज कसते हुए कहा कि फुके हुए कारतूस से जंग नहीं लड़ी जाती है. जनता दल यूनाइटेड प्रवक्ता अभिषेक झा ने कहा, कांग्रेस एक नेतृत्व विहीन पार्टी है और राहुल गांधी को देश की जनता प्रवासी और गैर गंभीर नेता के रूप में देखती है. कोई कांग्रेस को छोड़कर चला जाए या फिर कांग्रेस में शामिल हो जाए कोई फर्क नहीं पड़ता है, क्योंकि फुके हुए कर कारतूस से जंग नहीं लड़ी जाती.

कांग्रेस और आरजेडी के रिश्तो में बढ़ेगी तल्खी ?

तेजस्वी के लिए कन्हैया कितना बड़ा खतरा साबित होते हैं, इसका पहला टेस्ट 2024 लोकसभा चुनाव के दौरान ही होगा, जब इस बात का फैसला होगा कि क्या कन्हैया तेजस्वी के नेतृत्व को स्वीकार करके काम करेंगे या फिर तेजस्वी के सामने एक चुनौती बनकर खड़े हो जाएंगे ? इन सबके बीच एक बात तो स्पष्ट है कि कांग्रेस कन्हैया के जरिए बिहार में पुनर्जीवित होने की कोशिश करेगी और शायद इसी वजह से आने वाले दिनों में आरजेडी और कांग्रेस के बीच में रिश्तो में ऊंच-नीच देखी जा सकती है.

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