नई दिल्ली। कहते हैं गुजरात की हवा में व्यापार है. यह बात कई दफे़ साबित भी हो चुकी है. यहां इंसान के पास सोच होनी चाहिए, फिर आर्थिक तंगी मायने नहीं रखती. गुजरात की ज़मीन से उठे व्यापारियों की सबसे खास बात यह है कि ये सभी इतना सोच कर चुप नहीं बैठे रहते कि उनके आइडिया को जमीन पर उतारने के लिए धनराशि नहीं है. ये बस अपनी सोच को सच करने में जुट जाते हैं. उसके लिए भले हि इन्हें कहीं छोटी-मोटी नौकरी करनी पड़े या गली-गली जा कर अपना प्रोडक्ट बेचना पड़े, ये संकोच नहीं करते.

आज हम आपको गुजरात के एक ऐसे ही शख़्स की कहानी बताएंगे जिसने अपने एक सपने को सच करने के लिए सरकारी नौकरी छोड़ दी, घर-घर जा कर अपना प्रोडक्ट बेचा और देखते ही देखते देश के सबसे धनी लोगों की सूची में अपना नाम दर्ज करा लिया.

“हेमा रेखा जया और सुषमा… सबकी पसंद…”

गुजरात के अहमदाबाद के एक शख्स ने अपने घर के पीछे डिटर्जेंट पाउडर बनाना शुरू किया. सर्फ बनाने के बाद वह इसे घर घर जा कर बेचा करता था. इतना ही नहीं, वह शख्स डिटर्जेंट पाउडर के हर पैकेट के साथ ये गारंटी भी देता था कि अगर सही ना हुआ तो वह पैसे वापस कर देगा. दूसरी बड़ी बात थी उस शख्स द्वारा बेचे जाने वाले डिटर्जेंट का दाम. उन दिनों बाज़ार में जो सबसे सस्ता डिटर्जेंट बिक रहा था उसकी कीमत भी 13 रुपये किलो थी, मगर यह शख़्स मात्र 3 रुपये किलो दाम पर बेच रहा था. नतीजन, मध्यवर्गीय तथा निम्न मध्यवर्गीय परिवारों में वो अपनी जगह बनाने में कामयाब रहा.

1969 में केवल एक व्यक्ति द्वारा शुरू की गयी कंपनी में आज लगभग 18000 लोग काम करते हैं और इस कंपनी का टर्नओवर 70000 करोड़ से भी ज़्यादा है. उस शख्स का नाम है करसन भाई पटेल और जो वॉशिंग पाउडर इन्होंने बनाया वो है ‘निरमा’. निरमा वॉशिंग पाउडर ने किस तरह से बाज़ार में अपनी जगह बनाई इसका अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि आज भी कई लोग जब डिटर्जेंट खरीदने जाते हैं तो दुकानदार को यही कहते हैं, ‘भइया एक पैकेट निरमा देना.’

एक किसान परिवार में पैदा हुए

करसनभाई पटेल का जन्म 13 अप्रैल 1944 को गुजरात के मेहसाणा शहर के एक किसान परिवार में हुआ था. करसन पटेल के पिता खोड़ी दास पटेल एक बेहद साधारण इंसान थे लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपने बेटे करसन को अच्छी शिक्षा दी. करसनभाई पटेल ने अपनी शुरुआती शिक्षा मेहसाणा के ही एक स्थानीय स्कूल से पूरी की. 21 साल की उम्र में इन्होंने रसायन शास्त्र में बी.एस.सी की पढ़ाई पूरी की. वैसे तो अधिकतर गुजरातियों की तरह करसन भी नौकरी ना कर के खुद का व्यवसाय करना चाहते थे लेकिन घर की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह खुद के दम पर कोई नया काम शुरू कर सकें. यही वजह रही कि उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद एक प्रयोगशाला में सहायक यानी लैब असिस्टेंट की नौकरी कर ली. कुछ समय तक लैब में नौकरी करने के बाद उन्हें गुजरात सरकार के खनन और भूविज्ञान विभाग में सरकारी नौकरी मिल गई.

वो हादसा जिसने बदल दी ज़िंदगी

वैसे एक आम इंसान के नजरिए से देखा जाए तो करसन भाई की ज़िंदगी अच्छी कट रही थी. एक सरकारी नौकरी और अपने परिवार के साथ उन्हें खुश रहना चाहिए था. वह खुश तो थे लेकिन सतुष्ट नहीं थे. कुछ अपना और कुछ बेहतर करने की ख्वाहिश उनके दिल में लगातार मचल रही थी लेकिन वह किसी तरह अपनी इच्छा को मार कर नौकरी करते रहे. करसन पटेल अपनी बेटी से बहुत प्यार करते थे. वह चाहते थे कि उनकी बेटी पढ़ लिख कर कुछ ऐसा करे कि पूरा देश उसका नाम जाने. शायद ऐसा संभव भी हो पाता अगर उनकी बेटी ज़िंदा रहती तो. जब वह स्कूल में पढ़ती थी तभी एक हादसे में उसकी मौत हो गई. बेटी की मौत ने कुछ समय के लिए करसन भाई को अंदर से तोड़ दिया लेकिन इसी हादसे ने उन्हें जीवन की एक नई राह भी दिखाई.

एक सुबह करसन भाई एक नई सोच के साथ जागे. उन्हें एक ऐसा उपाय सूझा था जिससे वह अपनी बेटी को वापस ला सकते थे और उसे लेकर देखा हुआ सपना भी पूरा कर सकते थे. उन्होंने खुद से वाशिंग पाउडर बना कर बेचने का फैसला किया . यह सोचने वाली बात है कि इससे वह अपनी बेटी को वापस कैसे ला सकते थे और कैसे इस आइडिया से पूरे देश में उनकी बेटी के नाम को प्रसिद्धि मिल सकती थी?

बात कुछ ऐसी थी कि करसन पटेल की बेटी का नाम निरुपमा था और प्यार से सब उसे निरमा कहते थे. इस तरह करसन पटेल ने अपने इस Product का नाम ‘निरमा’ रखा जिससे कि उनकी बेटी इस नाम के साथ हमेशा ज़िंदा रहे.

ऐसे हुई निरमा कंपनी की शुरुआत

यह साल 1969 था, जब करसन पटेल ने अपने घर के पीछे वाशिंग पाउडर बनाना शुरू किया. वह एक साइंस ग्रेजुएट थे इसीलिए यह काम उनके लिए इतना कठिन नहीं था. उन्होंने सोडा ऐश के साथ कुछ अन्य समग्रियां मिला कर वशिंग पाउडर बनाने की कोशिश शुरू की और एक दिन उन्हें पीले रंग के पाउडर के रूप में अपनe फार्मूला मिल गया. जिस दौर की ये बात है उस समय हिंदुस्तान के आम लोगों के पास वाशिंग पाउडर को लेकर ज्यादा विकल्प नहीं थे. हिंदुस्तान लीवर या फिर विदेशी कंपनियां सर्फ़ बेचती थीं लेकिन इनके दाम इतने ज्यादा थे कि मध्यवर्गीय और निम्न मध्यवर्गीय परिवार इसे अपने बजट में शामिल नहीं कर पाते थे. ऐसे लोग साबुन का इस्तेमाल करते थे जिससे कि हाथ खराब होने का डर रहता था. ऐसे में करसन भाई पटेल के के लिए ये सुनहरा अवसर था. और इस अवसर को भुनाने के लिए उन्होंने कोई कमी भी नहीं छोड़ी.

अपने काम से लौटने के बाद वह निरमा को पड़ोस के घरों में बेचते. इसके बाद उन्होंने इसे साइकिल पर लेकर बेचना शुरू किया. वह लोगों के घर जा कर डिटर्ज़ेंट बेच रहे थे. जिस समय अन्य ब्रांड के सर्फ़ की कीमत 15 रुपए से 30 रुपए तक थी, उस समय में करसन पटेल मात्र 3 रुपए में डिटर्जेंट बेच रहे थे. इसकी अच्छी क्वालिटी और इसके कम दाम ने अपना जादू दिखाया और देखते ही देखते ये सर्फ मध्यवर्गीय से लेकर निम्न मध्यवर्गीय परिवारों तक की पहली पसंद बन गया.

इस तरह बना पूरे देश की पसंद


करसन पटेल ने जब देखा कि उनका प्रोडक्ट लोगों के बीच अपनी जगह बना रहा है तो उन्होंने अपने इस व्यापार को बढ़ाने का सोचा लेकिन अपनी नौकरी के चलते वह इस पर ज्यादा समय नहीं दे पा रहे थे. हालांकि एक जमी जमाई सरकारी नौकरी को छोड़ना जोखिम भरा कदम था लेकिन करसन भाई को अपने फार्मूले पर विश्वास था और उन्होंने फैसला कि कि वह नौकरी छोड़ कर सारा समय अपने व्यापार को देंगे.

‘सबकी पसंद निरमा’

करसन पटेल के लिए अब नई चुनौती ये थी कि वह कैसे अपने सर्फ को पूरे देश तक पहुंचाएं.  ऐसे में उन्होंने विज्ञापन और असरदार जिंगल का सहारा लिया. उनके निरमा ब्रांड को देश भर में प्रसिद्धि दिलाने में ‘सबकी पसंद निरमा’ जैसे टेलीविजन विज्ञापन का बहुत बड़ा हाथ रहा. इस विज्ञापन के बाद निरमा खरीदने के लिए स्थानीय बाजारों में ग्राहकों की भीड़ लगने लगी.

ये एक अलग तरह का खेल था, मांग के हिसाब से जहां करसन पटेल को अपने प्रोडक्ट की सप्लाई मार्केट में बढ़ानी चाहिए थी, वहीं उन्होंने चालाकी दिखाते हुए 90% स्टॉक वापस ले लिए.

एक महीने तक ग्राहक केवल निरमा को टीवी विज्ञापन में ही देख पाए क्योंकि जब वह बाजार से इसे खरीदने जाते तो उन्हें कहीं भी ये ना मिलता. बाद में खुदरा विक्रेताओं ने जब आपूर्ति के लिए करसन भाई से अनुरोध किया तब जा कर एक महीने बाद बाज़ार में निरमा  आया. इस देरी से करसन पटेल को को यह फायदा हुआ कि सर्फ की मांग बढ़ने के कारण बाजार में आते ही निरमा ने बड़े अंतर से सर्फ के अन्य ब्रांड्स को पीछे छोड़ दिया. उस साल निरमा भारत में सबसे अधिक बिकने वाला वाशिंग पाउडर था. यह इतना कामयाब हुआ कि अगले एक दशक तक इसने किसी अन्य ब्रैन्ड को अपने आसपास भी नहीं भटकने दिया.

यूनिवर्सिटी की स्थापना

1995 में करसन पटेल ने निरमा को एक अलग पहचान तब दी जब उन्होंने अहमदाबाद में निरमा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की स्थापना की. इसके बाद 2003 में उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट और निरमा यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी की स्थापना भी की.

फोर्ब्स ने यह जानकारी दी थी कि एक साल में निरमा पाउडर की सेल आठ लाख टन है. 2005 में फोर्ब्स के अनुसार करसन पटेल की कुल संपत्ति 640 मिलियन डॉलर थी जो जल्द ही 1000 मिलियन डॉलर को छूने वाली थी. वहीं फोर्ब्स के अनुसार करसन पटेल की संपत्ति आज की तारीख में 4.1 बिलियन है. अपने घर से सर्फ कंपनी की शुरुआत करने वाले करसन भाई पटेल आज दुनिया के बिलिनीयर्स की सूची में 775वें तथा भारत के सबसे धनी लोगों की सूची में 39वें स्थान पर हैं. इन सब में सबसे बड़ी कामयाबी इनके लिए ये है कि इन्होंने अपनी बेटी के नाम को दुनिया भर में प्रसिद्ध कर दिया. आज निरमा को हर कोई जानता है.

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