नई दिल्ली। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कांग्रेस और विपक्षी दलों के सदस्यों के तीव्र विरोध के बीच लोकसभा में सोमवार को नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 (नासंवि) पेश किया जिसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है। इन देशों में धार्मिक उत्पीड़न का शिकार हिन्दू, सिख, ईसाई, पारसी, बौद्ध व जैन समुदाय के लोग भारत की नागरिकता हासिल करने की योग्यता रखेंगे।

अमित शाह ने जब विधेयक पेश करने के लिए सदन की अनुमति चाही तब कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने इसे संविधान विरोधी विधायी कार्य करार देते हए इसका तीखा विरोध किया। विधेयक पेश किए जाने के मुद्दे पर विपक्ष ने मतविभाजन की मांग की जिसमें 83 के मुकाबले 293 मतों से सदन ने विधेयक को अनुमति दे दी।

केंद्रीय गृहमंत्री ने विपक्षी सदस्यों की आपत्तियों का जोरदार खंडन करते हुए कहा कि यह संविधान सम्मत है और इससे संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं होता। उन्होंने नागरिकता संबंधी प्रावधान, मौलिक अधिकार तथा कुछ राज्यों को दिए गए विशेषाधिकार संबंधी अनुच्छेद 371 का उल्लेख करते हुए कहा कि वर्तमान विधेयक से इन संवैधानिक प्रावधानों का कोई उल्लंघन नहीं होता।

सदन में कांग्रेस दल के नेता अधीर रंजन चौधरी, तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी) एएमआईएमआईएम के असद्दुदीन ओवैसी समेत अन्य विपक्षी सदस्यों ने नागरिकता संशोधन विधेयक को संविधान में प्रदत्त समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताया। उनका कहना था कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान से आए लोगों को भारतीय नागरिकता देने के संबंध में भेदभाव बढ़ता जा रहा है। मुस्लिम समुदाय के लोगों को निशाना बनाते हुए उन्हें जानबूझ कर भारतीय नागरिकता देने से वंचित किया जा रहा है।

कांग्रेस के शशि थरूर और गौरव गोगोई ने भी विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि यह मजहब के आधार पर देश के विभाजन की विचारधारा को बढ़ावा देता है।

शाह ने कहा कि समानता के अधिकार संबंधी मौलिक अधिकार में श्रेणीगत रियायतों का प्रावधान है जिसके आधार पर भारत में मुसलमानों और ईसाइयों सहित अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के विशेष धार्मिक एवं शैक्षिक सुनिश्चित किए गए हैं। उन्होंने विपक्षी सदस्यों से चुनौतिपूर्ण भाषा में पूछा कि क्या वे समानता के अधिकार की वकालत करते हुए अल्पसंख्यक समुदाय के धार्मिक एवं शैक्षिक अधिकार समाप्त किए जाने के लिए तैयार हैं ।

गृहमंत्री ने कहा कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के संविधानों के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए कहा कि ये तीनों पड़ोसी देश इस्लामी राष्ट्र हैं तथा यह नहीं माना जा सकता कि वहां मुस्लमानों का धार्मिक उत्पीड़न हो रहा है।

विगत सात दशकों में विभिन्न देशों में रहने वाले भारतीय मूल के लोगो को भारत की नागरिकता दिए जाने का हवाला देते हुए उन्होने कहा कि लियाकत अली-नेहरू समझौते में यह प्रावधान था कि भारत और पाकिस्तान अपने यहां अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करेंगे। दुर्भाग्य से पाकिस्तान में अपने वचन को पूरा नही किया। शाह ने कहा कि यूगांडा से निष्कासित भारतीयों तथा इंदिरा गांधी के कार्यकाल में बांग्लादेश से आए लोगों को भारत की नागरिकता दी गई थी।

गृहमंत्री ने कहा कि नासंवि से भारत में रहने वाले मुस्लिम समुदाय के हितों पर कोई प्रतिकूल असर नही पड़ेगा। इतना ही नही, तीन पड़ोसी देशों के मुस्लिम भी एक तय प्रक्रिया के तहत भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं। ऐसे हर मामले का परीक्षण कर समूचित फैसला किया जाएगा।

अमित शाह ने विपक्षी सदस्यों के इन आरोपों पर आक्रामक तेवर अपनाया कि यह विधेयक सांप्रदायिक और एक मजहब के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी ही मजहब के आधार पर देश के विभाजन के लिए जिम्मेदार है। उन्होने कहा कि यदि कांग्रेस ने मजहब के आधार पर देश का बंटवारा नही किया होता तो आज इस विधेयक को पेश करने की नौबत ही नही आती।

अमित शाह और विपक्षी सदस्यों के बीच तीखी नोंकझोंक का एक अवसर उस समय आया जब कुछ विपक्षी सदस्यों ने अफगानिस्ता को भारत का पड़ोसी देश बताया। शाह ने विपक्षी सदस्यों को याद दिलाया कि भारत और अफगानिस्तान 106 किलोमीटर की जमीनी सीमा से जुड़े हैं। उन्होंने विपक्षी सदस्यों से पूछा कि क्या वे पाक अधिकृत कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग नहीं मानते। शाह की यह टिप्पणी इस संदर्भ में थी कि नियंत्रण रेखा के अनुसार भारत और अफगानिस्तान की सीमा नहीं मिलती जबकि पाक अधिकृत कश्मीर की सीमा अफगानिस्तान से मिलती है ।

मतविभाजन के आधार पर जब गृहमंत्री को विधेयक पेश करने की अनुमति मिली तो सत्तापक्ष के लोगों ने ‘वंदे मातरम और भारत माता की जय’ के नारे लगाए।

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