आइए जानते है इनकी कहानी-
बलवंत पारेख का जन्म गुजरात में हुआ. उनका परिवार चाहता था कि वे वकील बने. ऐसे में वह वकालत पढ़ने के लिए मुंबई आ गए.
यहां वह महात्मा गांधी के प्रभाव में आ गए. वकालत तो की लेकिन वकील नहीं बने.
भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा भी लिया. इस दौरान ही उनकी शादी हो गई, तो परिस्थितयों के देखते हुए प्रिंटिग प्रेस में नौकरी कर ली.
प्रेस की नौकरी के बाद वह एक लकड़ी व्यापारी के ऑफिस में चपरासी की नौकरी करने लगे. इस दौरान वह ऑफिस के गोदाम में रहा करते थे.
यहां उन्होंने लकड़ी के काम को काफी गौर से देखा. इस दौरान उन्होंने अपने संबंध भी बनाए, जिस वजह से उन्हें जर्मनी जाने का मौका मिला.
वहां से लौटते ही वह आयात के बिजनेस में लग गए.
इस बीच देश में आजादी का समय आ गया. इस समय देसी सामान को लेकर लोगों के प्रति क्रेज देखा जा रहा था.
ऐसे में व्यापरी भी देश में ही सामान बनाने लगे. बलवंत को अपने चपरासी के दिन याद थे.
उन्हें पता था कि लकड़ी के काम करने वालों लोगों को उसे जोड़ने में काफी मेहनत करनी पड़ती है.
पहले जानवर के चमड़े की गोंद आती थी. जिसे गर्म करके चिपकाया जाता था और उससे काफी बद्दबू आती थी.
ऐसे में बलवंत के दिमाग सिंथेटिक ग्लू का आइडिया आया. और यहीं से फेविकॉल को जन्म हुआ.
बलवंत ने अपने भाई के साथ मिलकर साल 1959 में पिडिलाइट की शुरुआत की.
इस कंपनी ने ही फेविकोल बनाना शुरू किया. इसके बाद कंपनी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
हां, बदलती दुनिया के साथ फेविकोल से लेकर फेविक्विक तक बनाने लगी.
इसके अलावा कंपनी एमसील जैसे कई प्रोडक्ट मॉर्केट में लाई.
इसी तरह कंपनी रेवेन्यू हजारों करोड़ों तक पहुंच गया.