नई दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने केन्द्र सरकार पर सूचना के अधिकार कानून (आरटीआई) में संशोधन कर इसे कमजोर करने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि आरटीआई को सरकार अपने निरंकुश एजेंडे को लागू करने में एक बड़ी अड़चन के तौर पर देखती आई है और इसे कमजोर कर जवाबदेही से बचना चाहती है।

एक वक्तव्य में सोनिया गांधी ने कहा कि भाजपा सरकार ने अब आरटीआई कानून पर अपना निर्णायक प्रहार भी कर दिया है। इस कानून को कमजोर करने के लिए मोदी सरकार ने ऐसे संशोधन पारित किए हैं जो सूचना आयुक्तों की शक्तियों को संस्थागत तरीके से कम करके उन्हें सरकार की अनुकंपा के अधीन कर देंगे। सरकार चाहती है कि सूचना आयुक्त सरकारी अधिकारियों की तरह काम करें और सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित न कर पाएं। उन्होंने कहा कि हमने संसद में इन संशोधनों का विरोध किया है और आगे भी इनके खिलाफ लड़ते रहेंगे। हम अपने लोकतांत्रिक संस्थानों पर इस षड्यंत्रकारी हमले की कड़ी निंदा करते हैं और देश के कल्याण के विपरीत लिए जा रहे भाजपा सरकार के निर्णयों तथा निरंकुश एवं तानाशाही गतिविधियों का निरंतर विरोध करते रहेंगे।

सोनिया ने कहा कि देश में यह बात किसी से छिपी नहीं है कि केंद्र की मोदी सरकार आरटीआई की संस्था को अपने निरंकुश एजेंडा को लागू करने में एक बड़ी अड़चन के तौर पर देखती आई है। यह कानून जवाबदेही मांगता है और भाजपा सरकार किसी भी तरह के जवाब देने से साफ-साफ गुरेज करती आई है। इसीलिए भाजपा सरकार के पहले कार्यकाल में एक एजेंडा के तहत केंद्र व राज्यों में बड़ी संख्या में सूचना आयुक्तों के पद रिक्त पड़े रहे। यहां तक कि केंद्रीय मुख्य सूचना आयुक्त का पद भी दस महीने तक खाली रहा। यह सब करके मोदी सरकार का लक्ष्य केवल आरटीआई कानून को प्रभावहीन एवं दंतविहीन करना था।

सोनिया गांधी ने कहा कि सूचना आयुक्तों के पद का कार्यकाल केंद्र सरकार के निर्णय के अधीन करते हुए पांच से घटाकर तीन साल कर दिया गया है। 2005 के कानून के तहत उनका कार्यकाल पूरे पांच साल के लिए निर्धारित था ताकि वो सरकार व प्रशासन के हस्तक्षेप एवं दबाव से पूरी तरह मुक्त रहें। संशोधित कानून में पूरी तरह उनकी स्वायत्तता की बलि दे दी गई है। सरकार के खिलाफ सूचना जारी करने वाले किसी भी सूचना अधिकारी को अब तत्काल हटाया जा सकता है या फिर पद से बर्खास्त किया जा सकता है। इससे केंद्र व राज्य के सभी सूचना आयुक्तों का अपने कर्तव्य का निर्वहन करने तथा सरकार को जवाबदेह बनाने का उत्साह ठंडा पड़ जाएगा।

सोनिया ने कहा कि दूसरा संशोधन है- केंद्रीय सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्तों व शर्तों के नियम, जो चुनाव आयुक्तों के बराबर थे। अब केंद्र सरकार द्वारा नए सिरे से तय किए जाएंगे। दूसरे शब्दों में कहें, तो उनके वेतन व भत्तों को मोदी सरकार की इच्छानुसार कम-ज्यादा किया जा सकेगा। इन महत्वपूर्ण पदों के कार्यकाल व भत्तों को कम करने का अधिकार अपने हाथ में लेकर मोदी सरकार ने सुनिश्चित कर दिया है कि कोई भी वरिष्ठ स्वाभिमानी अधिकारी इस तरह के तनावपूर्ण व निगरानी भरे वातावरण में काम करना स्वीकार ही नहीं करेगा। इन संशोधनों के बाद कोई भी सूचना आयुक्त मोदी सरकार के हस्तक्षेप व निर्देशों से बचा नहीं रह सकेगा।

कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि इसके द्वारा मोदी सरकार अपने इशारों पर काम करने वाले अधिकारियों को जब तक चाहे, जैसे चाहे नियुक्त कर सकेगी। वे मजबूरी में सरकार की चापलूसी के लिए काम करेंगे और जिन प्रश्नों के उत्तर सरकार नहीं देना चाहेगी, उन पर मौन साध लेंगे।

Show comments
Share.
Exit mobile version