खूँटी। बढ़ते समय के साथ कृषि की नयी तकनीक से खेती सखी मंडलों द्वारा की जा रही है। टपक सिंचाई के माध्यम से उपज तो अच्छी हो ही रही है साथ ही किसानों का मनोबल भी निरंतर बढ़ रहा है। बढ़ते सिंचाई के प्रसार के साथ पौधों में बीमारियों में भी बढ़ोतरी दर्ज की गयी है। खूंटी, कर्रा के लोधमा गाँव के किसानों ने टपक इकाई में टमाटर की खेती की है। गलन रोग जैसी कुछ बीमारियाँ किसानों की उपज को खराब नहीं करें उसके लिए आजीविका कृषक सखी सक्रीय भूमिका निभा रही हैं। लोधमा की नीलम देवी पहले खुद को प्रशिक्षित कर अब किसानों को गलन रोग के बारे में बता कर उनके फसलों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए प्रयासरत हैं।

नीलम किसानों को बताती हैं कि गलन रोग का कारण दो अलग कारक के वजह से होता है : फफूंद के कारण (Fusarium Wilt) और जीवाणु के कारण (Bacterial Wilt)।

इसे पहचान करने का तरीका :
एक पारदर्शी गिलास मे पानी ले और उसमे ग्रसित पौधा का ताना को काट कर पानी मे डाल दें। कुछ समय बाद यदी पौधा के ताना से एक गीला चिपचिपा पदार्थ निकलता हुआ दिखेगा तो फसल बैक्टीरियल विल्ट से ग्रसित है. अगर ये प्रयोग करने के बाद अगर पौधा से कोई भी गीला चिपचिपा पधार्थ नहीं निकलता है तो पौधा फ्यूजेरियम विल्ट से ग्रसित है.
किसान निम्न्लिहित तरीके से गलन रोग का समाधान/ रोक कर सकते हैं-
1.फ्यूजेरियम विल्ट
a)ट्राइकोडर्मा विराइड का इस्तिमाल फायदेमंद पाया गया है
b)रेसिस्टेंट बीज वैरायटी का चयन करना
c)ग्रसित पौधा को जड़ सहित कहीं दूर दफना देना
d)फसल चक्र को अपनाना
2.बैक्टीरियल विल्ट
a)ग्रसित पौधा को जड़ सहित कहीं दूर दफनाना
b)फसल चक्र को अपनाना
c)रेसिस्टेंट वैरायटी का चयन करना
d)पानी निकलने का सही व्यवस्ता करना

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