रांची। झारखंड में सरकारी सेवाओं और पदों के अधीन प्रोन्नति, प्रशासनिक दक्षता और क्रीमी लेयर में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता पर अध्ययन के लिए गठित तीन सदस्यीय उच्चस्तरीय समिति ने रिपोर्ट पेश कर दी है। राज्य सरकार को सौंपे रिपोर्ट में समिति ने कहा है कि राज्य की सेवाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व अपेक्षित स्तर से काफी नीचे है। इसलिए प्रोन्नति में आरक्षण की वर्तमान नीति को जारी रखना आवश्यक है।

अध्ययन के दौरान प्राप्त रिपोर्ट

-34 विभागों में से 29 विभागों ने कर्मचारियों की जाति श्रेणीवार संख्या सहित सीधी नियुक्ति या प्रोन्नति के आधार पर भरे गए पदों की कुल संख्या पर अपनी रिपोर्ट ऑफलाइन प्रस्तुत की है।

-10 विभागों ने इन सेवाओं में प्रत्येक जाति वर्ग में कार्यरत कर्मचारियों की सेवा श्रेणीवार संख्या सहित रिपोर्ट प्रस्तुत की है ।

-एचआरएमएस से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार 34 विभागों में 31 प्रमुख विभागों में राज्य में कुल स्वीकृत पदों की कुल संख्या 3,01,1 98 है जिसमें से 57,182 पद प्रोन्नति के आधार पर भरे जाने हैं जबकि 2,44,016 पद सीधी नियुक्ति से भरे जाने हैं ।

कार्यप्रणाली का निर्धारण

समिति ने डेटाबेस की उपलब्धता की बाधाओं को ध्यान में रखते हुए विशेष रूप से कतिपय विभागों में प्रोन्नति के संबंध में एक कार्य प्रणाली तैयार करने का निर्णय किया, जो समिति को पारदर्शी और समयबद्ध तरीके से मूल्यांकन करने में सक्षम बनाएगी। इसके लिए सभी विभागों से कर्मचारी डेटा/सूचना श्रेणीवार और पदनाम के अनुसार एकत्र की गई थी।

इन आंकड़ों को मैनुअल रूप के साथ साथ ऑफलाइन रूप में भी मांगा गया था। आंकड़ों की शुद्धता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए समिति ने मुख्य रूप से एचआरएमएस के ऑफलाइन डेटा का उपयोग किया। इसके अलावा कर्मचारियों की प्रोन्नति के विश्वसनीय आंकड़ों तक समिति की पहुंच थी जिसके द्वारा विभिन्न रिपोर्ट तैयार किए गए और उनका विश्लेषण किया गया ।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

जनरैल सिंह के मामले में सुप्रीप कोर्ट के दृष्टिकोण पर पुनर्विचार किया गया। जनरैल सिंह केस (एसएलपी) (सी) 30621/2011 के निर्णय का सारांश है कि “इस प्रकार हम स्पष्ट करते हैं कि प्रतिनिधित्व कि अपर्याप्तता पर नागराज मामले में निर्धारित मापदंडों पर राज्य द्वारा परिमाणात्मक डेटा एकत्र किया जाएगा, जिसे अदालतों द्वारा जांचा जा सकेगा । हम आगे जोड़ सकते हैं कि डेटा सम्बद्ध संवर्ग से संबंधित होगा।”

समिति की अनुशंसा

– संकलित और विश्लेषित आंकड़ों के अनुसार यह स्पष्ट है कि सरकार में प्रत्येक स्तर पर प्रोन्नति वाले पदों पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता है । राज्य भर में स्वीकृत प्रोन्नति वाले पदों के विरुद्ध प्रोन्नति के आधार पर पद धारण करने वाले कार्यरत कर्मचारियों की कुल संख्या से संबंधित अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों का प्रतिशत क्रमशः 4.45 तथा 10.04 प्रतिशत है, जो राज्य में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति क्रमशः 12.08 प्रतिशत (एससी) और 26.20 प्रतिशत (एसटी) के जनसांख्यिकी अनुपात से बहुत कम है।

-चूंकि, राज्य की सेवाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व अपेक्षित स्तर से काफी नीचे है। इसीलिए प्रोन्नति में आरक्षण की वर्तमान नीति को जारी रखना आवश्यक है।

– इस स्तर पर वर्तमान प्रावधान में किसी भी प्रकार की ढील देना या किसी भी खंड को हटाना न्यायोचित या वांछनीय नहीं होगा और बड़े पैमाने पर सामुदायिक हितों के विरुद्ध होगा।

– झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) तथा झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (जेएसएससी) और कार्मिक प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग को भी वर्षवार तथा श्रेणीवार विवरण के साथ परिणामों के डेटाबेस को बनाए रखने की आवश्यकता है कि कितने एससी, एसटी, ओबीसी ने अनारक्षित श्रेणी के अंतर्गत योग्यता प्राप्त की है।

– सभी विभागों द्वारा आरक्षण नीति और उसके प्रावधानों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने के लिए अधिक कठोर और निरंतर निगरानी रखने के लिए कार्मिक विभाग के अंतर्गत एक पृथक कोषांग बनाया जाना चाहिए।

– कार्मिक, प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग को भर्तियों, प्रोन्नतियों और अन्य संबंधित सूचनाओं पर वार्षिक प्रतिवेदन अवश्य प्रकाशित करना चाहिए ।

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