कटकमसांडी (हजारीबाग)।  झारखंड में सीएनटी कानून लागू होने के वर्षों पूर्व खरीदे गए जमीनों को अंचल प्रशासन द्वारा न तो दाखिल खारिज किया जा रहा है और न ही भूमि की एलपीसी बनाया जा रहा है, जिसके कारण रैयतों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। यहां तक कि जमीन की खरीद-फरोख्त के बाद केवाला-दर-केवाला होने के बावजूद एलपीसी नहीं बनने से रैयत अपनी ही जमीन को जरूरत के मुताबिक किसी दूसरे को बेच नहीं पा रहे हैं।

अंचल प्रशासन के मुताबिक खतियान में दर्ज सीएनटी के अंतर्गत नामित लोगों के नाम आ जाने व नेचर आफ खतियान के मद्देनजर म्यूटेशन व एलपीसी बनाने पर जिला प्रशासन द्वारा रोक लगाई गई है। बता दें कि झारखंड राज्य में जून 2016 से सीएनटी कानून पारित है, जिसमें सीएनटी के अंतर्गत आने वाले समुदायों के जमीन की खरीद-फरोख्त सामान्य जातियों द्वारा खरीद नहीं किया जासकता है। यह नियम कानून लागू होने के बाद धरातल पर उतर भी गई। मगर सवाल है कि सीएनटी कानून लागू होने के पूर्व खरीद फरोख्त किए गए जमीन के दाखिल खारिज करने व एलपीसी बनाने पर रोक कहां तक जायज है।

रैयत अपनी जरूरत के मुताबिक खुद का जमीन बेच नहीं सकते। अंचल प्रशासन द्वारा यह कथन कि खतियान में विक्रेता का नाम दर्ज रहने के कारण सीएनटी का नियम लागू रहेगा। जबकि यह सर्वविदित है कि खतियान में खतियानी का दर्ज नाम हमेशा जीवित रहता है। लोगों ने राज्य सरकार व जिला प्रशासन से मांग किया है कि सीएनटी कानून लागू होने के पूर्व खरीदे गए जमीनों की दाखिल खारिज करने व एलपीसी बनाए जाने का आदेश सम्बन्धित प्रखंडो में नियुक्त अंचलाधिकारियों को दी जाए। ताकि लोगों को सहुलियत हो सके। बताते चलें कि पूर्व में खरीदे गए सीएनटी के जमीन की रैयतों द्वारा केवाला पर के वाला किए जाने के बाद भी अंचल द्वारा किसी और के नाम म्यूटेशन नहीं की जा रही है। जबकि रैयतों के नाम अंचल से रसीद भी निर्गत है। सीएनटी की वजह से उत्पन्न त्रुटियों के कारण बेटियों की शादी विवाह, बीमारियों व मकान निर्माण व अति आवश्यकता के बावजूद रैयत अपनी खरीदगी जमीन को किसी अन्य के पास बेच नहीं पा रहे हैं। राज्य सरकार व जिला प्रशासन से भुक्तभोगियों की मांग है कि सीएनटी कानून लागू होने के पूर्व खरीदे गए जमीन के लिए रैयतों के परेशानियों को आसान किया जाए और दाखिल खारिज व एलपीसी बनाने का आदेश पारित की जाए।

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