‘सब कुछ सीखा हमने ना सीखी होशियारी’ फिल्म अनाड़ी के इस गाने से मशहूर हुए पार्श्व गायक मुकेश की आज पुण्यतिथि है। संगीत के दीवानों के लिए मुकेश जहां एक तोहफा थे,वही गायकी की दुनिया मे वे नायाब हीरा साबित हुए।
22 अगस्त 1923 को लुधियाना मे जन्मे मुकेश का पूरा नाम मुकेश चंद्र माथुर था। मुकेश की बड़ी बहन संगीत की शिक्षा लेती थीं और मुकेश बड़े ध्यान से उन्हें सुना करते थे। मोतीलाल के घर मुकेश ने संगीत की पारम्परिक शिक्षा लेनी शुरू की, लेकिन उनकी ख्वाहिश हिन्दी फ़िल्मों में बतौर अभिनेता काम करने की थी। मुकेश ने 10 वीं के बाद पढाई छोड़ दी और नौकरी करने लगे। लेकिन उनका मन फिल्मों की तरफ आकर्षित हो रहा था। अतः वह मुंबई आ गए। यहां उन्होंने फिल्मों में अभिनय करना शुरू किया, पर कामयाबी नहीं मिली। जिसके बाद मुकेश ने गायन के क्षेत्र मे रुख किया।
मुकेश ने 1940 से 1976 के बीच सैकड़ों फिल्मों के लिए गीत गाए जो हिट रहे। इस क्षेत्र मे उन्हें अपर सफलता और दर्शकों का प्यार मिला। मुकेश को 1941 में “निर्दोष” फ़िल्म में बतौर सिंगर पहला ब्रेक मिला। के एल सहगल को इनकी आवाज़ बहुत पसंद आयी। इनके गाने को सुन के एल सहगल भी दुविधा में पड़ गये थे। 40 के दशक में मुकेश का अपना पार्श्व गायन शैली थी। नौशाद के साथ उनकी जुगलबंदी एक के बाद एक सुपरहिट गाने दे रही थी। उस दौर में मुकेश की आवाज़ में सबसे ज़्यादा गीत दिलीप कुमार पर फ़िल्माए गये।
50 के दशक में इन्हें एक नयी पहचान मिली, जब इन्हें राजकपूर की आवाज़ कहा जाने लगा।मुकेश ने ‘मेरा जूता है जापानी'(आवारा),किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार (अन्दाज़), दोस्त दोस्त ना रहा (फ़िल्म सन्गम), जाने कहाँ गये वो दिन (फ़िल्म मेरा नाम जोकर), कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है (फ़िल्म कभी कभी) जैसे कई मशहूर गीत गए ,जो आज भी दर्शकों की जुबान पर हैं। मुकेश को फिल्म फेयर का सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक,राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार तथा भारतीय पार्श्वगायक के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। मुकेश को चार बार फिल्फेयर के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। मुकेश ने अपने करियर का आखिरी गाना भी राज कपूर की फ़िल्म के लिए ही गाया था। लेकिन, 1978 में इस फ़िल्म के रिलीज़ से दो साल पहले ही 27 अगस्त को मुकेश का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। लेकिन मुकेश आज भी अपनी दमदार आवाज़ के दम पर दर्शकों के दिलों में जिंदा है।