बिहार की राजनीति में राम विलास पासवान को मौमस वैज्ञानिक माना जाता है। आरजेडी के प्रमुख लालू प्रसाद यादव कई दफे कह चुके हैं कि रामविलास पासवान से अच्छा मौमस वैज्ञानिक भारत की राजनीति में नहीं हुआ। रामविलास पासवान चुनाव से पहले भांप लेते हैं कि जनता का मूड क्या है। यही वजह से है कि रामविलास पासवान 1990 से हमेशा सत्ता के साथ रहे हैं। केवल 2009 का लोकसभा चुनाव अपवाद है जब रामविलास पासवान राजनीतिक मौसम वैज्ञानिक रूप में फेल रहे थे। इसके अलावा कोई ऐसा मौका नहीं है जब रामविलास पासवान जनता का मूड भांपने में चूक गए होंगे। बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान एलजेपी की कमान संभाल रहे हैं। चिराग एनडीए में खींचतान कर रहे हैं और गठबंधन का चेहरा नीतीश कुमार की खामियां गिनाने में ऊर्जा लगा रहे हैं। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि बिहार की राजनीति के मौसम वैज्ञानिका का मूड क्या कह रहा है?

राम विलास पासवान के सफल मौसम वैज्ञानिक होने के कई प्रमाण
संस्कृत में कहावत है प्रत्यक्षम किम प्रमाणं अर्थात प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। यही बात राम विलास पासवान के साथ है। राम विलास पासवान एक समाजवादी नेता हैं। उन्होंने ने भी छात्र जीवन से ही राजनीति शुरू कर दी थी। 74 वर्षीय पासवान भी लालू प्रसाद यादव, सुशील कुमार मोदी, नीतीश कुमार के दौर के राजनेता रहे। इन सबमें सबसे पहले लालू प्रसाद यादव को सत्ता सुख भोगने का मौका मिला। रामविलास पासवान मेन स्ट्रीम पॉलिटिक्स में भी एक अलग लाइन लेकर आगे बढ़ते रहे।

राम विलास पासवान 1996 में पहली बार जनता दल की सरकार के दौरान केंद्र में रेलमंत्री बने। इसके बाद अटल बिहारी वाजपयी की सरकार आई उसमें भी वे 2004 तक सूचना एवं प्रचारण और खनिज मंत्रालय संभाला। इसके बाद 2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने पाला बदल लिया और वे यूपीए में शामिल हो गए। इसके बाद वह मनमोहन सिंह की सरकार में 2009 तक रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय संभाते रहे। 2009 में रामविलास पासवान मौसम गलती कर गए। वह लालू प्रसाद यादव के साथ गठबंधन कर बिहार में थर्ड फ्रंट बनाने की कोशिश की जिसे जनता ने पूरी तरह नकार दिया था।
नीतीश कुमार कर रहे हैं रिटायरमेंट की तैयारी
इसके अलावा 2005 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी राम विलास पासवान मंजे हुए मौसम वैज्ञानिक साबित हुए थे। राज्य में लालू फैमिली के शासन के खिलाफ काफी गुस्सा था। इस गुस्से के खिलाफ नीतीश कुमार की अगुवाई में बीजेपी नेताओं को गोलबंद कर रही थी। रामविलास पासवान ने अचानक अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार से इस्तीफा दे दिया और अपनी पार्टी लोक जनशक्ति (एलजेपी) बना ली। वे 2005 के फरवरी चुनाव में अकेले उतरे और 29 सीटें हासिल कर सत्ता की चाभी हासिल कर ली। रामविलास पासवान ने भांप लिया था कि बिहार की जनता लालू के खिलाफ तो है लेकिन नीतीश के चेहरे पर पूरी तरीके से भरोसा करने के पक्ष में भी नहीं है। इसलिए उन्होंने खुद को एक विकल्प के रूप में पेश किया था, जिसमें उन्हें सफलता भी हाथ लगी।

हालांकि रामविलास पासवान मुस्लिम मुख्यमंत्री की मांग पर अड़े रहे और किसी की भी सरकार बनने नहीं दी, जिसके बाद 2005 में ही अक्टूबर-नवंबर में दोबारा वोटिंग हुई जिसमें रामविलास पासवान की पार्टी 10 सीटों के भीतर सिमट गई। हालांकि वह केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार में मंत्री बने रहे।

अशोक चौधरी
बिहार चुनाव को लेकर नीतीश कुमार की बनाई गई टीम में प्रदेश सरकार में भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी का नाम सबसे अहम है। उन्हें जेडीयू के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गई है। महादलित समुदाय से आने वाले अशोक चौधरी 2018 में कांग्रेस का दामन छोड़कर जेडीयू में आए थे। बिहार कांग्रेस में चार साल से अधिक समय तक अध्यक्ष रहने के बाद उन्होंने जेडीयू का रुख किया। सरकार में रहने के बावजूद अशोक चौधरी ने पार्टी की जिम्मेदारियों को भी अच्छे से संभाला। उनके राजनीतिक अनुभव और टेक्नोलॉजी में मजबूती की वजह से पार्टी नेतृत्व ने उन पर भरोसा जताया है। माना जा रहा कि कोरोना काल में पार्टी के वर्चुअल प्रचार को वो और मजबूती देंगे।

​संजय झा
नीतीश कुमार की टीम में अगला नाम संजय झा का है। वो जेडीयू अध्यक्ष के बेहद करीबी माने जाते हैं। पार्टी से जुड़े अहम फैसलों में नीतीश कुमार के साथ शामिल रहते हैं। यही नहीं बताया जाता है कि जेडीयू के महागठबंधन से अलग होने और बीजेपी के साथ आकर सरकार बनाने में अहम रोल निभाया था। तकनीकि क्षेत्र में भी संजय झा की अच्छी पकड़ है, ऐसे में पार्टी मुखिया ने इसको ध्यान में रखकर भी उन्हें खास जिम्मेदारी दी है।

ललन सिंह
बिहार चुनाव को लेकर नीतीश कुमार ने पार्टी के दिग्गज नेता और मुंगेर से सांसद ललन सिंह को भी अपनी टीम में प्रमुखता से जगह दी है। उन्हें नीतीश कुमार का बेहद करीबी माना जाता है। यही वजह है कि हाल ही में जब जेपी नड्डा बिहार दौरे के दौरान नीतीश कुमार से मिले थे तो ललन सिंह उनके साथ थे। ललन सिंह के रणनीतिक कौशल को देखते हुए ही पार्टी नेतृत्व ने उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी है।

आरसीपी सिंह
राज्यसभा सांसद आरसीपी सिंह भी नीतीश कुमार की टीम में शामिल हैं। वो नौकरशाही से राजनीति में आए और जेडीयू को बिहार में मजबूत करने में अहम योगदान दिया। खास तौर से जमीनी स्तर पर उन्होंने पार्टी को मजबूती देने में अहम रोल निभाया। बिहार चुनाव में पार्टी उम्मीदवारों के चयन में भी उनका रोल अहम रहने वाला है।

विजय चौधरी
जेडीयू के दिग्गज नेता और बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय चौधरी भी नई टीम में शामिल हैं। उनके बारे में बताया जाता है कि वो पर्दे के पीछे रहकर रणनीतिक तैयारी में जुटे रहते हैं। नीतीश कुमार को जरूर सलाह देने और कोई फैसला लेने में विजय चौधरी का रोल बेहद अहम माना जाता है।

बिहार जेडीयू अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह
बिहार जेडीयू अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह
इनके अलावा जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह की भी भूमिका बेहद अहम रहेगी। हालांकि, उनकी बढ़ती उम्र और अस्वस्थता को देखते हुए पार्टी ने उन्हें थोड़ा आराम देने की कोशिश की है। यही वजह है कि अशोक चौधरी को प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मा सौंपा गया है। लेकिन, पार्टी उम्मीदवारों के चयन में उनका रोल अहम रहने वाला है।

चिराग पासवान भी मौसम वैज्ञानिक होने का दे चुके हैं सबूत
राम विलास पासवान 2009 के लोकसभा चुनाव में मौसम का मिजाज भांपने में असफल रहे थे। वह बिहार में दलित+मुस्लिम कॉबिनेशन बनाना चाहते थे जो फेल साबित हुआ था। तब तक वह सारे गठबंधन में जाकर लाभ ले चुके थे। ऐसे में वह 2014 के लोकसभा चुनाव में किसी भी गठबंधन में शामिल होने से हिचक रहे थे। ऐसे में उनके बेटे चिराग पासवान आगे आए और मुस्लिम वोटों को नजरअंदाज कर अपनी पार्टी एलजेपी को एनडीए का घटक दल बनाने की घोषणा कर दी। जब नरेंद्र मोदी के चेहरे के चलते तथाकथित सेक्युलर पार्टियां एनडीए से किनारा कर रही थीं तब चिराग पासवान ने खुलकर नरेंद्र मोदी की तारीफ की। इसका उन्हें फायदा भी मिला। रामविलास पासवान साल 2014 से केंद्र में मंत्री बने हुए हैं।

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