नई दिल्ली: कई साल पहले आई चर्चित फिल्म ‘टार्जन- द वंडर कार’ याद है आपको? उसमें एक कार अपने आप ही चलकर अलग-अलग जगहों पर पहुंच जाती थी और अपने मालिक की मौत का बदला लेती थी।
कुछ ऐसी ही कहानी राजस्थान की एक ‘बुलट’ की भी है। RNZ-7773 की इस बुलट मोटरसाइकल के बारे में कहा जाता है कि ये अपने मालिक की मौत के बाद खुद ही चलकर उन लोगों की मदद करने पहुंच जाती थी, जो उसके मालिक की ही तरह दुर्घटनाओं में घायल होते थे।
अहमदाबाद से जोधपुर जाते समय रास्ते में ‘चोटिला धाम’ नाम से एक जगह पड़ती है, जो कि राजस्थान के पाली शहर से करीब 20 किलोमीटर दूरी पर स्थित है और जोधपुर से तकरीबन 50 किलोमीटर पहले स्थित है। यहां हाई-वे के किनारे खड़ी गाड़ियों की भीड़ अपने आप ही आपका ध्यान खींच लेती है। करीब जाने पर पता चलता है कि यहां एक मंदिर है जहां हर कोई माथा टेककर आगे बढ़ता है। इन श्रद्धालुओं में बसों-ट्रकों के ड्राइवरों से लेकर बाइक सवार और लग्जरी कारों के मालिक तक शामिल होते हैं।
ये रॉयल एनफील्ड बुलट बाइक चोटिला गांव के ठाकुर जोग सिंह राठौड़ के पुत्र ओम सिंह राठौड़ की थी। कहते हैं कि 1988 में ओम सिंह पाली जिले में ही स्थित अपने ससुराल से अपने घर लौट रहे थे, लेकिन रास्ते में एक दुर्घटना में उनकी घटनास्थल पर ही मौत हो गई। सामान्य प्रक्रिया के तहत पुलिस ने उनकी बाइक को थाने लाकर खड़ा कर दिया। लेकिन अगली सुबह सभी को चौंकाने वाली थी।
कहा जाता है कि थाने से बुलट गायब हो गई थी। इस बारे में परिवार से पूछताछ हुई तो उन्होंने अनभिज्ञता जता दी। बाद में पता चला कि बुलेट उसी पेड़ के नीचे खड़ी थी जहां ओम सिंह का एक्सीडेंट हुआ। पुलिस ने इसे किसी मसखरे की हरकत मानते हुए बुलट को वापिस थाने पहुंचा दिया और इस बार उसे चेन से बांध दिया। लेकिन अगले दिन सभी हतप्रभ रह गए जब बुलेट फिर गायब मिली। थाने में मौजूद पुलिसकर्मियों के मुताबिक चेन टूटी हुई थी और बुलेट वापिस उसी पेड़ के नीचे खड़ी मिली। आखिरकार ओम सिंह राठौड़ की इच्छा मानते हुए उस बुलेट को वहीं जाकर खड़ा कर दिया गया।
लेकिन इसके बाद ये अविश्वसनीय घटनाएं खत्म होने की बजाय, बढ़ती चली गई। स्थानीय लोगों का दावा है कि जिस जगह ओम सिंह राठौड़ की मौत हुई, उस जगह अक्सर सड़क दुर्घटनाएं होती रहती थीं। लेकिन ओम सिंह की मौत के बाद वहां होने वाली दुर्घटनाओं में आश्चर्यजनक ढंग से कमी आ गई। कहा तो ये तक जाता है कि यदि उस क्षेत्र में कोई दुर्घटना हो भी जाती तो ओम सिंह राठौड़ की रूह वहां मदद के लिए पहुंच जाती। और ऐसा एक या दो नहीं, बल्कि कई बार हुआ।
धीरे-धीरे ओम सिंह राठौड़ में लोगों की श्रद्धा भी बढ़ती गई और चोटिला धाम की लोकप्रियता भी। चूंकि राजस्थान में राजपूत नवयुवकों को सम्मान में ‘ओम बना’ कहकर संबोधित किया जाता है। इसलिए दिवगंत ओम सिंह राठौड़ भी श्रद्धालुओं के बीच ‘ओम बना’ नाम से प्रसिद्ध हो गए। न सिर्फ राजस्थान बल्कि देश-विदेश के श्रद्धालु चोटिला धाम आते हैं और मनौती मांगते हैं। कुछ सालों पहले हाईवे को चौड़ा करते समय ओम बना की बुलेट को पीछे खिसकाना पड़ा था। लेकिन इससे पहले प्रशासन ने बकायदा मंदिर में सेवा-पूजा करवाई थी जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालुगण इकठ्ठा हुए थे।