लक्ष्य सिद्धि हेतु वे अनुकूल परिस्थितियों की प्रतीक्षा नहीं करते थे, विसंगतियों के बीच रास्ता निकालकर प्रतिकूल स्थिति को अनुकूल बना देते थे। कठिन परिस्थितियों में जीवन जीने के बावजूद भी उनके चेहरे पर कार्य वृद्धि का आनन्द ही रहता था। श्री बलराम सांतरा ने उनकी कष्ट सहिष्णुता के संदर्भ में अपनी स्मृतियां को साझा करते हुए बताया कि 1990 में त्रिपुरा के अगरतला से तेंदुबाड़ी छात्रावास प्रवास के समय श्रद्धेय वसंत दा के साथ वे थे। तेंदुबाडी अगरतल्ला से 60 कि.मी. दूर पहाड़ को काटकर बनाये गये रास्ते पर स्थित है। इस कठिन यात्रा में कुल ढाई घण्टे लगते हैं। एक बार तेंदुबाडी छात्रावास में प्रवास के बाद इन दोनों का अगरतल्ला लौटने का कार्यक्रम था लेकिन वहाँ पूरे त्रिपुरा में हडताल प्रारम्भ हो गई। कोई भी वाहन अगरतल्ला की तरफ नहीं जा रहा था। तीन दिन तक वे लोग फसे रहे। चौथे दिन इंतजार करते-करते उन्हें पुलिस की जीप मिली। उन लोगों ने कहा कि हमारी जीप तेलियामोरा तक जाएगी, हम आपको वहां तक छोड़ देंगे। लेकिन वहाँ से अगरतल्ला 40 कि.मी. दूर था। उन्होंने तेलियामोरा तक जाने का फैसला किया और उस पुलिस जीप से तेलियामोरा तक पहुँच भी गए। वहां सड़क पर काफी समय तक इंतजार करने के बाद एक नमक से भर हुआ ट्रक आया। उसमें भी ड्राइवर के पास बैठने के लिये जगह नहीं थी। वसंत दा ने नमक के बोरों के ऊपर बैठकर यात्रा कर लेने की इच्छा जताई। ड्राइवर ने ट्रक के ऊपर चढने में उनकी मदद की। इस प्रकार वे दोनों अगरतल्ला पहुंचे। ग्रीष्म काल का समय था। उसमें वसंत दा की आयु 64 वर्ष थी।
26 अप्रैल 2013 को वसंतराव भट्ट अनंत की यात्रा के लिए चल पड़े।