वॉशिंगटन। अमेरिका में दुनिया में पहली बार सूअर की किडनी को इंसान के शरीर में ट्रांसप्लांट किया गया है। यह कारनामा न्यूयॉर्क शहर के एनवाईयू लैंगोन हेल्थ मेडिकल सेंटर के सर्जनों ने किया है। बड़ी बात यह है कि सूअर की किडनी इंसान के शरीर में सफलतापूर्वक काम भी कर रही है। इस सफल प्रत्यारोपण से आने वाले दिनों में मानव अंगों की कमी को दूर किया जा सकता है। अंग की कमी को दूर करने के लिए सूअर के ऊपर काफी दिनों से रिसर्च किया जा रहा था।सूअर की कोशिका में मौजूद शुगर की समस्या भी हुई खत्म
सूअर की कोशिकाओं में मौजूद एक शुगर (Sugar) इंसानी शरीर को स्वीकार नहीं करता है। इसी कारण पहले के सभी प्रयास फेल हुए थे, इसलिए इस बार डॉक्टरों ने स्पेशल मोडिफाइड जीन वाले सूअर का इस्तेमाल किया। इसमें सूअर के सेल में मौजूद उस शुगर को खत्म करने और इम्यून सिस्टम के हमले से बचने के लिए कुछ जेनेटिक बदलाव किए गए थे।

ब्रेड डेड मरीज पर किया गया टेस्ट
सर्जनों ने खुलासा किया कि इस किडनी को जिस मरीज में लगाया गया वह एक ब्रेन-डेड रोगी था। उसकी किडनी लगभग खराब हो चुकी थी। मरीज पर से लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटाने के लिए उसकी फैमिली से बाकायदा स्वीकृति ली गई थी। टीम ने सूअर की किडनी को दो से तीन दिनों तक निगरानी में मरीज के शरीर से बाहर एक बड़ी धमनी से जोड़ा, जिससे उसे खून और ऑक्सीजन मिलती रहे।

सूअर की किडनी ने इंसानी किडनी जैसा काम किया
हैरानी की बात यह है कि किडनी ने बिना रिजेक्शन के कचरे को छान लिया और पेशाब का प्रॉडक्शन किया। इस ट्रांसप्लांटेशन के हेड सर्जन डॉ रॉबर्ट मोंटगोमरी ने कहा कि ट्रांसप्लांटेड किडनी की फंक्शनिंग से जुड़े सभी टेस्ट के रिजल्ट्स बहुत सामान्य लग रहे थे। इस किडनी ने मरीज के शरीर में पेशाब की उतनी ही मात्रा बनाई, जितना कि हम किसी इंसानी किडनी से उम्मीद कर सकते हैं। ऐसे में हमें शरीर से इसको अस्वीकार करने के कोई संकेच नहीं मिले हैं।

मरीज के शरीर में क्रिएटिनिन का स्तर भी सामान्य
मोंटगोमरी ने यह भी कहा कि मरीज के शरीर में क्रिएटिनिन का स्तर पहले असामान्य था। आमतौर पर जब किसी मरीज की किडनी सही से काम नहीं करती तो उसके क्रिएटिनिन का स्तर कम या ज्यादा हो जाता है। हैरानी की बात है कि इस किडनी के लगने के बाद उस मरीज के शरीर में क्रिएटिनिन का स्तर वापस से सामान्य हो गया। इस जेनेटिकली मोडिफाइड सूअर को यूनाइटेड थेरेप्यूटिक्स कॉर्प (UTHR.O) की रिविविकोर यूनिट ने विकसित किया था।

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