दक्षिण कोरिया और अमेरिका में ऐसी कई टेक कंपनियां मार्केट में आ गयी हैं जो मरने के बाद भी डिजिटल दुनिया में जिंदा कर दे रही हैं. परिजन मृतक के डिजिटल अवतार से बात कर सकते हैं। वहीं डाटा विशेषज्ञ इस बात पर चिंता जता रहे हैं कि मृत लोगों की जानकारी इस्तेमाल करने में तमाम कानूनी और नैतिक पचड़े हो सकते हैं.
वीआर और एआई
वर्चुअल रिएलिटी से लेकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तक के क्षेत्र में हुए विकास ने लोगों के सामने ऐसे कई विकल्प ला दिए हैं. फरवरी में दक्षिण कोरिया के एक टीवी चैनल ने एक मां और उसकी 7 साल की उम्र में मर चुकी बेटी के मिलन का वीडियो दिखाया. बच्ची का यह डिजिटल अवतार वीआर की मदद से बनाया गया था, जिसे एक उसी उम्र की चाइल्ड ऐक्टर के ऊपर आजमाया गया. यानि मां ने जो बच्ची देखी उसकी शक्ल उनकी बेटी जैसी और भावनाएं ऐक्टर की थीं.
ब्रिटेन में बर्मिंघम के ऐश्टन यूनिवर्सिटी में सीनियर लेक्चरर एडीना हार्बिंजा ने बताया, “विश्व के ज्यादातर देशों में मरने वालों का डाटा सुरक्षित नहीं है. इसलिए कानूनन किसी का भी अवतार बनाने से किसी को भी रोका नहीं जा सकता.” यानि बिना किसी से अनुमति लिए ऐसा करना संभव है और इस तरह उस मृत व्यक्ति से जुड़े दूसरे लोगों का डाटा भी सुरक्षित नहीं रह जाता.
अमेरिका की इटरनिमे और रेप्लिका जैसी कई कंपनियां इस समय ऐसी सेवाएं दे रही हैं जो लोगों के डिजिटल प्रतिरूप बनाती हैं. ये प्रतिरूप ऐसे किसी भी इंसान के साथ बातचीत कर सकते हैं जो उदास हों या जब उन्हें किसी से बात करने की जरूरत महसूस हो. दूसरे स्टार्टअप भी हैं जैसे सेफबियॉन्ड और गॉननॉटगॉन जिसमें लोग अपने प्रियजनों के लिए संदेश रिकॉर्ड कर सकते हैं. यह उनके मरने के बाद उनके वीडियो संदेश या चिट्ठी को प्रियजनों के जन्मदिन या किसी अहम दिन पर सीधे पहुंचा देंगे.