नई दिल्ली। चिंतक-विचारक केएन गोविंदाचार्य ने कहा कि प्रदेशों के भीतर 40 करोड़ और देश से बाहर कम से कम 5 करोड़ श्रमिक अपना जीवन चला रहे थे| सामान्य अंकगणित बताता है कि एक ट्रेन में 1000 लोग और एक दिन में 200 ट्रेन के हिसाब से 2 लाख लोग रोज भेजे जाये तो 2 करोड़ लोगों को भेजने मे 100 दिन लगेंगे। समस्या की विकरालता का अंदाजा नीति नियामकों को नही है| यह स्पष्ट हुआ है|

उन्हाेंने कहा कि बसों को लेकर क्षुद्र राजनीति मौड़ें रूप में सामने आई है। संवाद, विश्वास बढाने की जगह नीचा दिखाने की होड़ नजर आ रही है| टीवी चैनल के काम की समीक्षा भी जरुरी है| सम्पूर्ण तंत्र शायद INDIA  को ही भारत समझता है| मजदूर, भारत के, उन्हें घर वापसी की व्यवस्था कर रहे इंडिया के लोग कृपा कर रहे हैं| उस प्रभु वर्ग में समस्या की समझ और समस्या के प्रति संवेदनहीनता का पर्दाफाश हो रहा है|

उन्हाेंने कहा कि प्रवासी मजदूरों की घर वापसी की समस्या ने पूरे विकास तंत्र के बारे मे सवाल खड़ा कर दिया है| इंडिया और भारत का बेमेलपन अनेक सवाल पूछ रहा है| प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के मुद्दे पर सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच खींचतान, आरोप-प्रत्यारोप का कुछ सन्देश भी है| विपक्ष को अधिक जिम्मेदारी से बसों की व्यवस्था करनी चाहिये थी| कांग्रेस का संगठन कितना लचर है यह भी प्रमाणित हुआ है| गरीब मजदूरों के प्रति यह गड़बड़ी इस बात को प्रमाणित करती है कांग्रेस को 2014 में सत्ताच्युत करना और 2019 मे वापसी न होने देना उचित ही था| विपक्ष को अपने को प्रमाणित करना होगा|

उन्हाेंने कहा कि सत्ता पक्ष ने “क्षमा बड़न को चाहिये छोटन को उत्पात” की तर्ज पर बड़पन्न दिखाना चाहिये था| क्योंकि विषय आपसी प्रतिस्पर्धा का नहीं उन प्रवासी मजदूरों की घर वापसी का था| राजनीति मे संवाद, विश्वास बढ़ें इसमे राजनैतिक दलों की भी विशेष भूमिका है| देश मे लगभग 45 करोड़ लोग, असंगठित क्षेत्र मे काम कर रहे हैं| अधिकाँश लोग मजदूरी, कारीगरी और अत्यंत छोटे खोमचे, ठेले पर अनियमित ढंग से येन-केन प्रकारेण जीविका चला रहे स्वरोजगारिये लोग हैं|

गाेविंदाचार्य ने कहा कि मेरा गाँव तिरहुतीपुर, जिला –आजमगढ़ में भी लोग घर लौट रहे हैं। आबादी अचानक दुगनी हो गई है| अब यहां जीविकोपार्जन का मुद्दा हावी होता चला जाएगा| गाँव मे ही ईमान की रोटी और इज्जत की जिन्दगी कैसे मिले यह यक्ष प्रश्न है| वे गाँव से बाहर तो गये ही इसलिए थे क्योंकि गाँव में ही ऐसे अवसर की स्थिति नहीं थी| पैसा सीधे पहुंचे तो यह संभव है कि आधा गाढे वक्त के लिए बचा लें| शेष आधा खर्च करें| पैसे अगर नहीं मिले तो उनकी स्थिति ताड़ से गिरे खजूर में अटके की दुःस्थिति हो जायेगी| पैसे सीधे देने के बारे में अनेक मत हैं|

उन्हाेंने कहा कि ग्राम पंचायतों को भी सीधी बजट का 7% देने के बारे में अलग –अलग सोच थी पर केन्द्रीय सरकार ने आंशिक तौर पर आधे-अधूरे ढंग से कदम आगे बढ़ाया| कुछ लाभ तो प्रत्यक्ष हुआ| ग्राम सभा की सक्रियता, पंचायत चुनाव के तौर-तरीके अब बहस में आने लगे है| लोकलेयात्मक व्यवस्था में सामान्य जन पर विश्वास करना ही सही रास्ता माना जाता है|

उन्हाेंने कहा कि आखिर इस योजना मे 3 से 5 लाख करोड़ लगेँगे| सरकार की ओर से कॉर्पोरेट सेक्टर को विचारने, बैंकों को उबारने मे लगे पैसों की तुलना की जांच हो तो यह राशि बहुत बड़ी नही लगेगी और सरकार की साख को बढायेगी ही|

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