भोपाल/डिंडौरी। मध्य प्रदेश के जनजातीय बहुल जिले डिंडौरी में मिलेट्स (मोटे अनाज) के बीज बैंक की देशभर में प्रशंसा हो रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी उनके इस बीज बैंक की प्रशंसा की है। उन्होंने ट्वीट के माध्यम से लहरी बाई का जिक्र करते हुए विलुप्त हो रहे मोटे अनाज के बीज बचाने की प्रशंसा करते हुए इसे अन्य लोगों के लिए प्रेरणादायक बताया।

प्रधानमंत्री मोदी ने गुरुवार को लहरी बाई के एक वीडियो को रीट्वीट करते हुए लिखा है कि- लहरी बाई पर गर्व है, जिन्होंने श्री अन्न के प्रति उल्लेखनीय उत्साह दिखाया है। उनके प्रयास कई अन्य लोगों को प्रेरित करेंगे। मध्य प्रदेश फिलहाल मिलेट्स उत्पादन में देश में दूसरे नंबर पर है। पहला नंबर छत्तीसगढ़ का है, लेकिन छत्तीसगढ़ की सीमा से ही मप्र का डिंडौरी जिला लगा है। ये जिला मिलेट्स उत्पादन में प्रदेश में पहले नंबर पर है।

डिंडौरी जिला मुख्यालय से करीब 60 किलोमीटर दूर के बजाग विकासखंड के सिलपीड़ी गांव में रहने वाली 27 साल की लहरी बाई करीब एक दशक से मिलेट्स बैंक चला रही हैं। उन्होंने छोटे से अपने कच्चे आवास एक कमरे में 25 से अधिक विलुप्त प्रजातियों के बीज का बैंक तैयार किया है और वह अपने गांव सहित आसपास के दो दर्जन से अधिक गांव के किसानों को अनाज के बदले यह बीज उपलब्ध कराती हैं। इनमें से कई अनाज ऐसे हैं, जिनके नाम जानने वाले भी अब बहुत कम लोग बचे हैं। लहरी बाई के पास अनाज की उन किस्मों के बीज हैं जो लोगों की थाली ही, नहीं खेतों से भी गायब हो गए हैं। यानी दुर्लभ कलेक्शन।

बैंक में तीन प्रकार के विलुप्त सलहार के बीज सहित इसी तरह बड़े कोदो, लदरी कोदो, डोंगर कुटकी, लाल डोंगर कुटकी, सिताही कुटकी, नागदावन कुटकी, लालमडिया, गोदपारी मडिया सहित अन्य बीज भी उपलब्ध है। यह अनाज अब वैगाचक क्षेत्र में दिखने लगा है। अपने आवास में मिट्टी की कोठी बनाकर बीज को संरक्षित रखा गया है।

जिले में मोटे अनाज बोवनी का रकबा और बढ़ाने की तैयारी भी कलेक्टर ने तेज कर दी है। लहरी बाई को कलेक्टर विकास मिश्रा ने गणतंत्र दिवस के समारोह में मुख्य अतिथि भी बनाया था। जिले में यह पहला अवसर था, जब किसी बैगा महिला को गणतंत्र दिवस के समारोह में मुख्य अतिथि बनाकर मंच पर बैठाया गया था।कलेक्टर विकास मिश्रा का कहना है कि लहरी बाई के पास विलुप्त हो रहे मोटे अनाज के 25 से अधिक प्रजाति के बीज है। लहरी बाई विगत 10 वर्ष से आसपास के 25 गांव के आदिवासी किसानों को अनाज के बदले यह बीज उपलब्ध कराती आ रही हैं।

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