नागपुर। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि वेद हमारी परंपरा का मूलभूत हिस्सा है। विज्ञान का अतिवादी दृष्टिकोण अपना कर वेदों को अस्वीकृत करना अतिवाद है।
नागपुर के अहिल्यादेवी मंदिर सभागार में गुरुवार को चेन्ना केशव शास्त्री द्वारा लिखीत “वैदिक फिलॉसॉफिकल रेमेडिज” पुस्तक का सरसंघचालक ने विमोचन किया। इस समारोह में राष्ट्र सेविका समिति की प्रधान संचालिका शांताक्का, उपकुलपति श्रीनिवास वरखेडी और श्री धात्रे नमः ट्रस्ट के अध्यक्ष जे. नरसिंह राव मंच पर उपस्थित थे।
इस अवसर पर सरसंघचालक ने कहा कि बिना परीक्षा के किसी परीक्षण के श्रद्धा को अंधश्रद्धा मानना गलत है। किसी भी चीज का पहले परीक्षण करना चाहिये। डॉ. भागवत ने बताया कि कुछ लोग वेदों को खारिज कर देते हैं। वहीं कुछ लोग विज्ञान को खारिज कर देते हैं। वस्तुतः यह दोनों अतिवादी प्रयोग है। किसी भी बात में अति या मिथ्या नहीं होनी चाहिये। अतियोग, अयोग या मिथ्या योग ऐसा करने से विकृति उत्पन्न होती है। असंतुलन उत्पन्न होता है।
सरसंघचालक ने कहा कि हमारी परंपरा के चलते आये हुए ज्ञान के अंश को ऐसी ही अतिवादिता ने खारिज कर दिया और हमने भी उसे मान लिया, इसलिये ज्ञान हमारे लिये लुप्त हो गया। डॉ. भागवत ने कहा कि सत्य तक जाने का एक ही रास्ता है और वही सही है। अन्य मार्ग गलत हैं, जो रास्ते असत्य हैं, गलत हैं, वो ज्यादा दिन चलते नहीं बल्कि समाप्त हो जाते हैं, लोग अनुभव की कसौटी पर ही उसे खारिज कर देते हैं, इसलिये हर बात का परीक्षण होने के बाद उसे स्वीकारना या नकारना चाहिए।

सरसंघचालक ने बताया कि वेद ज्ञान के भंडार हैं, आत्म साक्षात्कार से लेकर शिल्पकला तक सारे सूत्र उसमें हैं, वेद संपूर्ण ज्ञान-विज्ञान का कम्पुटराइज्ड कोड बुक है, यह ज्ञान प्राप्त करने के लिए तपश्चर्या चाहिये।डॉ. भागवत ने कहा कि वेद हमारी परंपरा का एक मूलभूत हिस्सा है और इसमें भौतिक और आध्यात्मिक ज्ञान का खजाना है। वास्तव में यह ज्ञान शुरू से ही सभी को साझा करना चाहिए था। हालांकि, इस ज्ञान के स्रोत एक सीमित वर्ग के हाथों में थे। जितना हो सके उन्होंने सीखा। यदि उस समय सभी को ज्ञान प्राप्त करने की अनुमति दी जाती, तो वेदों का ज्ञान पूरी तरह से संग्रहित हो जाता। संघ प्रमुख ने कहा कि ज्ञान सीमित लोगों तक रहने की वजह से पारंपरिक ज्ञान को भुला दिया गया।

डॉ. भागवत ने बताया कि प्राचीन वेद कंम्प्यूटर कोड बुक की तरह हैं। नतीजतन हमारे इस ज्ञान के स्त्रोत को दुनिया समझ पाए, ऐसी भाषा में मानव कल्याण के लिए सबके सामने प्रस्तुत करना पडेगा।

Show comments
Share.
Exit mobile version