इस वर्ष 28 मार्च को होलिका दहन और 29 मार्च को होली का त्योहार मनाया जाएगा| इस त्योहार को देश भर के लोग हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं, लेकिन आपने फूलों की होली तो कहीं एक दूसरे पर लट्ठ बरसाकर मनाई जाने वाली होली के बारे में तो सुना होगा|
आज हम आपको एक अलग तरह की होली खेलने के तरीके के बारे में बताएंगे जिस पर आपको यकीन करना थोड़ा मुश्किल होगा क्योंकि यहाँ आग के जलते अंगारों से भी होली खेली जाती है|
आइए जानते हैं आखिर देश के किस हिस्से में मनाई जाती है ऐसी अजीबोगरीब होली|
मध्यप्रदेश एवं कर्नाटक
मध्यप्रदेश के मालवा और कर्नाटक के कई इलाकों में होली के दिन एक-दूसरे पर जलते अंगारे फेंकने का चलन है क्योंकि लोगों का मानना है की ऐसा करने से होलिका राक्षसी मर जाती है|
वही मध्यप्रदेश के भील आदिवासियों में होली के दिन जीवनसाथी से मिलने की परंपरा है, इस दिन एक बाजार लगाया जाता है जहां लड़के-लड़कियां आकार अपने जीवनसाथी को ढूंढते है| इस खेल में यह आदिवासी लड़के एक खास तरह का वाद्ययंत्र बजाते हुए डांस करते-करते अपनी मनपसंद लड़की को गुलाल लगाते है और अगर उस लड़की को लड़का पसंद आ जाए तो वो भी उसे गुलाल लगा देती है और फिर दोनों की रजामंदी से उनकी शादी कर दी जाती है|
राजस्थान
यही नहीं राजस्थान के बांसवाड़ा में रहने वाली जनजातियों के बीच खेली जाने वाली होली में गुलाल के साथ होलिका दहन की राख पर चलने की और एक-दूसरे पर पत्थरबाजी करने की परंपरा है| इस प्रथा के पीछे एक मान्यता प्रचलित है कि ऐसे होली खेलने से जो खून निकलता है, उससे व्यक्ति का आने वाला समय बेहतर बनता है|
एक चौकाने वाली प्रथा यह भी है की राजस्थान के पुष्करणा ब्राह्मण के चोवटिया जोशी जाति के लोग होली पर खुशियों की जगह शोक मनाते हैं| होली के एक उत्साह पर्व पर घर में मातम जैसा माहौल रहता है| इसके पीछे एक पुरानी कहानी बताई जाती है जिसमें सालों पहले इस जनजाति की एक महिला होलिका दहन के दिन अपने बच्चे को हाथ में लेकर होलिका की परिक्रमा कर रही थी और इसी दौरान दुर्भाग्यवश उसका बच्चा आग में फिसलकर गिर गया और बच्चे को बचाने के लिए महिला भी आग में कूद गई और दोनों की मौत हो गई| मरते वक्त महिला ने वहां मौजूद लोगों से होली पर कभी कोई खुशी ना मनाने की बात की और ये प्रथा आज तक चली या रही है|
हरियाणा
हरियाणा के कैथल जिले के दूसरपुर गांव में भी कुछ ऐसी ही प्रथा चली या रही है जिसमें होली का त्योहार नहीं मनाया जाता क्योंकि इस गाँव से नाराज होकर एक बाबा ने होलिका की आग में कूदकर जान दे दी थी और जलते हुए बाबा ने गांव को श्राप दिया कि यहां अब होली मनाई गई तो अपशगुन होगा| इस डर से भयभीत गांव के लोगों ने सालों बीत जाने के बाद भी कभी होली नहीं मनाई|