लखनऊ। आजादी के बाद से जिस राज्य की स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल थीं, उसे दुरुस्त करने के लिए एक संन्यासी ने बीड़ा उठाया है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, सांसद रहते हुए जिस जापानी बुखार से अपने क्षेत्र के नौनिहालों की जान-माल की सुरक्षा के लिए जद्दोजहद करते रहे, उन्हें जब सूबे की सत्ता मिली तो उसका डटकर सामना करना शुरू किया। आज उप्र में जापानी बुखार से मरने वालों की संख्या नगण्य हो गयी है।

सरकार की सक्रियता के कारण पूर्वांचल में दशकों से बच्चों में महामारी के रूप में कुख्यात जापानी इंसेफ्लाइटिस पर पूर्ण रूप से नियंत्रण हुआ है। इंसेफ्लाइटिस से प्रत्येक वर्ष हजारों बच्चों की मौतें होती थी। गोरखपुर से लेकर लखनऊ तक के सभी अस्पतालों के वार्ड जापानीज इंसेफ्लाइटिस से पीड़ित बच्चों से भरे रहते थे।

बलरामपुर अस्पताल के पूर्व निदेशक व चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ.राजीव लोचन ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि जापानी इंसेफ्लाइटिस पर पूर्ण नियंत्रण सबसे बड़ा काम है। जो काम कई दशकों में नहीं हुआ वह पांच साल में सरकार ने कर के दिखाया। पहले की सरकारों ने इस मुद्दे पर कुछ नहीं किया था।

डॉ. राजीव लोचन ने बताया कि मुख्यमंत्री योगी ने प्रदेश की स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने के लिए हर स्तर पर काम किया है। मेडिकल कॉलेज निर्माण से लेकर जिला अस्पतालों में आईसीयू और वेंटीलेटर जैसी सुविधाएं बढ़ाई हैं लेकिन अब भी बहुत कुछ करने को बाकी है।

सरकार ने जहां स्वास्थ्य बजट को कई गुना बढ़ाया है वहीं अस्पतालों व मेडिकल कॉलेज बड़ी संख्या में खोले गये हैं। पहले उत्तर प्रदेश में जहां केवल 12 मेडिकल कॉलेज थे। वहीं पिछले पांच साल में 37 नए मेडिकल कॉलेज खोले गये। प्रदेश में खुले 37 मेडिकल कॉलेजों में 28 में पढ़ाई भी शुरू हो गयी है। डॉक्टरों की कमी से जूझने वाला उत्तर प्रदेश चार वर्षों में डॉक्टरों की कमी भी पूरी कर लेगा। यहीं नहीं, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र और जिला अस्पतालों को भी उच्चीकृत किया गया है।

मरीजों के लिए वरदान साबित हुई मुख्यमंत्री जन आरोग्य योजना

उत्तर प्रदेश के हर व्यक्ति को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के लिए मुख्यमंत्री जन आरोग्य योजना शुरू की गयी है। यह योजना मरीजों के लिए वरदान साबित हुई है। इस योजना के माध्यम से प्रदेश के पंजीकृत नागरिकों को पांच लाख तक स्वास्थ्य बीमा कवर प्रदान किया जाता है। यही नहीं पंजीकृत श्रमिकों के अलावा उनके परिवार के सभी सदस्यों को इस योजना के तहत इलाज कराने के लिए पांच लाख रुपए तक का कैशलेस भुगतान सरकार करती है।

जिला अस्पतालों में डीएनबी कोर्स की हुई शुरूआत

इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की रीढ़ कही जाने वाली पीएचसी और सीएचसी को अपग्रेड किया गया है। जिला अस्पतालों में डीएनबी कोर्स शुरू किये गये हैं। इससे जिला अस्पतालों से चिकित्सा विशेषज्ञ तैयार होंगे।

पांच हजार एएनएम की भर्ती करने जा रही सरकार

लखनऊ में अटल बिहारी वाजपेई चिकित्सा विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी है। सरकार ने 4470 एडवांस लाइफ सपोर्ट सिस्टम से युक्त एम्बुलेंस सरकार ने खरीदी है। उत्तर प्रदेश सरकार पांच हजार एएनएम की भर्ती करने जा रही है।

कोरोना प्रबंधन को दुनिया ने सराहा

उत्तर प्रदेश में कोरोना प्रबंधन को पूरी दुनिया ने सराहा। मेडिसिन किट, फ्री टेस्ट, फ्री उपचार व फ्री वैक्सीन उपलब्ध कराई गई। अभी तक तीस करोड़ वैक्सीन की डोज प्रदेश के नागरिकों को लग चुकी है।

महानिदेशक प्रशिक्षण का नया पद सृजित

उत्तर प्रदेश सरकार ने स्वास्थ्य विभाग में महानिदेशक प्रशिक्षण का नया पद सृजित किया है। इसके पूर्व महानिदेशक का दो ही पद होता था एक महानिदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य और दूसरा महानिदेशक परिवार कल्याण का। स्वास्थ्य विभाग में महानिदेशक प्रशिक्षण का नया पद सृजित हो जाने के बाद चिकित्सकों व पैरामेडिकल की समस्त ट्रेनिंग एक ही स्थान पर होगी। इससे पहले चिकित्सक,नर्सिंग,फार्मेसी,स्टाफ नर्स व एनम का प्रशिक्षण अलगकृअलग इकाईयों के माध्यम से होती थी। अब स्वास्थ्य विभाग द्वारा होने वाला समस्त प्रशिक्षण का काम महानिदेशक प्रशिक्षण की देखरेख में होगा।

प्रान्तीय चिकित्सा संवर्ग में चिकित्सकों के चार हजार से अधिक पद रिक्त

प्रान्तीय चिकित्सा सेवा संवर्ग (पीएमएस) में वर्तमान में चिकित्सकों के 18 हजार पद सृजित हैं। वर्तमान में करीब 14 हजार चिकित्सक ही सेवा दे रहे हैं। 2017 के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने लोकसेवा आयोग के माध्यम से चिकित्सकों की भर्ती निकाली। चिकित्सकों ने इण्टरव्यू भी दिया और पास हुए लेकिन चिकित्सकों ने ज्वाइन नहीं किया। पांच हजार पदों की वैकेंसी भरने के लिए दो बार निविदा निकाली गयी। लेकिन चयन होने के बाद भी दो बार में बमुश्किल से 500 चिकित्सकों ने ही ड्यूटी ज्वाइन की।

प्रान्तीय चिकित्सा सेवा संघ के अध्यक्ष डॉ.सचिन वैश्य ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि चिकित्सा सेवाओं में प्रशासनिक हस्तक्षेप बढ़ा है इसलिए चिकित्सक पीएमएस में आना नहीं चाहते हैं। इसके अलावा चिकित्सकों के साथ अमर्यादित व्यवहार किया जाता है। वेतन व पदोन्नति के मामले में भी तमाम विसंगतियां हैं।

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