यूपी। देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. लेकिन सभी की नजरें उत्तर प्रदेश पर लगी हैं. इसी यूपी के कई बाहुबली जुर्म की दुनिया के रास्ते सियासत तक पहुंचे और फिर सदन में जाकर बैठे. ऐसे ही एक बाहुबली का नाम है बृजेश सिंह. जिसने यूपी में जब एमएलसी का चुनाव लड़ा था, तो रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल की थी. लेकिन पिछले विधान सभा चुनाव यानी 2017 में बृजेश सिंह को हार का मुंह देखना पड़ा था. बृजेश सिंह एक ऐसा माफिया सरगना रहा है, जिसका आतंक यूपी ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों में भी था.
कौन है बृजेश सिंह
बृजेश सिंह उर्फ अरुण कुमार सिंह का जन्म वाराणसी में हुआ था. उसके पिता रविन्द्र सिंह इलाके के रसूखदार लोगों में गिने जाते थे. सियासी तौर पर भी उनका रुतबा कम नहीं था. बृजेश सिंह बचपन से ही पढ़ाई लिखाई में काफी होनहार था. 1984 में इंटर की परीक्षा में उसने बहुत अच्छे अंक हासिल किए थे. उसके बाद बृजेश ने यूपी कॉलेज से बीएससी की पढाई की. वहां भी उनका नाम होनहार छात्रों की श्रेणी में आता था.
ऐसे बना माफिया डॉन
बृजेश का अपने पिता रविंद्र सिंह से काफी लगाव था. पिता चाहते थे कि बृजेश पढ़ लिखकर अच्छा इंसान बने. लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. 27 अगस्त 1984 को वाराणसी के धरहरा गांव में बृजेश के पिता रविन्द्र सिंह की हत्या कर दी गई. उनके सियासी विरोधी हरिहर सिंह और पांचू सिंह ने साथियों के साथ मिलकर उनकी हत्या को अंजाम दिया था. पिता की मौत ने बृजेश सिंह के मन में बदले की भावना को जन्म दे दिया. वो अपने पिता की हत्या का बदला लेने लिए बेताब था. 27 मई 1985 को रविंद्र सिंह का हत्यारा हरिहर सिंह बृजेश के सामने आ गया. उसे देखते ही बृजेश ने उसे मौत के घाट उतार दिया. यहीं से उसका क्राइम ग्राफ बढ़ने लगा.
चर्चित कांड
बृजेश ने हरिहर को मौत के घाट तो उतार दिया था लेकिन उसका गुस्सा शांत नहीं हुआ था. उसे उन लोगों की तलाश थी जो उसके पिता की हत्या में हरिहर के साथ शामिल थे. वो 9 अप्रैल 1986 का दिन था. अचानक बनारस का सिकरौरा गांव गोलियों की आवाज़ से गूंज उठा. हर तरफ दहशत फैल गई. बाद में पता चला कि बृजेश सिंह ने वहां अपने पिता की हत्या में शामिल रहे पांच लोगों को एक साथ गोलियों से भून डाला था. इस वारदात को अंजाम देने के बाद पहली बार बृजेश गिरफ्तार हुआ. यहीं वो सामूहिक हत्याकांड था. जिसने बृजेश का खौफ लोगों के दिलों में पैदा कर दिया था. इसी कांड के बाद उसकी छवि माफिया डॉन की बन गई थी. लोग उसके नाम से भी खौफ खाने लगे थे.
बृजेश सिंह को जब अपनी ताकत अहसास हुआ तो उसने ठेकेदारी और रंगदारी जैसे काम शुरु कर दिए. इसी दौरान उसकी दुश्मनी बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी से हो गई. जो बृजेश को काफी महंगी भी पड़ी. उसे मुख्तार की ताकत का अंदाजा नहीं था. इस गैंगवार में उसके भाई का मर्डर भी हुआ था. बृजेश ने पश्चिम बंगाल, मुंबई, बिहार, और उड़ीसा में भी अपना नेटवर्क बना लिया था. वो अंडरग्राउंड रहते हुए भी एक्टिव था.
उसी दौर में मकनू सिंह और साधू सिंह का गैंग तेजी से उभर रहा था. अक्टूबर 1988 में साधू सिंह ने कांस्टेबल राजेंद्र को मौत की नींद सुला दिया, जो बृजेश सिंह के साथी त्रिभुवन सिंह का भाई था. हेड कांस्टेबल राजेंद्र सिंह की हत्या के मामले में कैंट थाने पर साधू सिंह के अलावा मुख़्तार अंसारी और गाजीपुर निवासी भीम सिंह को भी नामजद किया गया था.
त्रिभुवन के भाई की हत्या का बदला लेने के लिए बृजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह ने पुलिस की वर्दी पहनकर गाजीपुर के एक अस्पताल में इलाज करा रहे साधू सिंह को गोलियों से छलनी कर दिया था. फिर इसी तरह से बृजेश सिंह ने मुंबई के जेजे अस्पताल में घुसकर गावली गिरोह के शार्प शूटर हलधंकर समेत चार पुलिस वालों की हत्या कर दी थी.
राजनीतिक शरण
साधू सिंह की हत्या के बाद उसके गैंग की कमांड सीधे मुख्तार अंसारी के पास चली गई थी. वो पहले ही बृजेश के लिए एक बड़ी चुनौती बन रहे थे. इसी दौरान बृजेश ने बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय का दामन थाम लिया था. राजनीतिक संरक्षण मिलने से बृजेश को राहत मिल गई थी. लेकिन मुख्तार गैंग लगातार उसका पीछा कर रहा था. बृजेश ने मुख्तार पर शिकंजा कसने की कोशिश की, उसी के चलते विधायक कृष्णानंद राय की हत्या कर दी गई थी. इस काम को मुख्तार गैंग के लोगों ने अंजाम दिया था. इसके बाद बृजेश सिंह यूपी छोड़कर फरार हो गया था. उसका गैंग कमजोर पड़ गया. 2008 में बृजेश सिंह को उड़ीसा से गिरफ्तार कर लिया गया था.
सियासी सफर
साल 2015 के दौरान यूपी में एमएलसी का चुनाव था. जिसमें माफिया डॉन बृजेश सिंह ने रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल की थी. हालांकि इसके बाद साल 2017 के विधान सभा चुनाव में वह भारतीय समाज पार्टी से सैयदराजा विधानसभा (चंदौली) से चुनाव लड़ा था. लेकिन तब बृजेश को हार का सामना करना पड़ा था.