कोरोना का संक्रमण 87 लाख पार कर चुका है. भारत में भी ये आंकड़ा बीते हफ्तेभर में तेजी से बढ़ा. पिछले 24 घंटों में ही संक्रमण के लगभग 15 हजार मामले दिखे. अब WHO ने एक बार फिर से चेतावनी दी है कि वायरस ज्यादा खतरनाक फेज में जा चुका है और अबकी बार हालात पहले दौर से भी गंभीर होंगे. बता दें कि वैज्ञानिक पहले से ही वायरस के दूसरे चरण की बात करते आए हैं. और हाल ही में ये देखा गया कि वायरस के स्पाइक्स कई गुना तक बढ़े हैं, जिसकी वजह से वो लगभग 10 गुना खतरनाक हो चुका है. म्यूटेशन से गुजरकर खतरनाक हो चुका वायरस अब आसानी से बड़ी आबादी को प्रभावित कर सकता है, जो लॉकडाउन में ढील के कारण घरों से बाहर है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के डायरेक्टर जनरल टेड्रोस अधानोम गेब्रेयेसस ने शुक्रवार को कहा कि हम नए और खतरनाक चरण में पहुंच चुके हैं. जिनेवा में वर्चुअल प्रेस वार्ता लेते हुए उन्होंने ये चेतावनी दी. इसका आधार गुरुवार को चौबीस घंटों के भीतर आए आंकड़े थे. एक ही दिन में डेढ़ लाख से ज्यादा का ये आंकड़ा पहली बार आया है, जिनमें से आधे से ज्यादा मामले अमेरिका से हैं. इसके अलावा एशिया और मिडिल ईस्ट से भी काफी केस आ रहे हैं.

दूसरी ओर काफी समय से सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था को खोलने के लिए कई देश बेताब हैं. यहां कि यूरोप में कई देशों ने बबल ट्रैवल शुरू कर दिया है. इसके तहत अपेक्षाकृत सुरक्षित देशों के लोग एक से दूसरे देश यात्रा कर सकते हैं. अमेरिका में भी अब आंशिक स्तर पर ही लॉकडाउन है, जबकि खुद भारत में काफी कुछ खुल चुका है. इसे ही WHO संक्रमण बढ़ने की वजह बता रहा है.

वैसे पहले से ही वायरस के दूसरे चरण की बात की जाती रही है. इसकी वजह है वायरस का आने का पैटर्न. एक्सपर्ट ये कह रहे हैं कि स्पेनिश फ्लू की तरह कोरोना वायरस भी एक के बाद एक चरणों में आएगा. साल 1918 में सबसे पहले मार्च के दूसरे हफ्ते में बीमारी का पहला मरीज सामने आया था. Albert Gitchell नाम का ये मरीज यूएम आर्मी में रसोइये का काम करता था. 104 डिग्री बुखार के साथ उसे कंसास के अस्पताल में भर्ती कराया गया. जल्द ही ये बुखार सेना के 54 हजार टुकड़ियों में फैल गया. मार्च के आखिर तक हजारों सैनिक अस्पताल पहुंच गए और 38 सैनिकों की गंभीर न्यूमोनिया से मौत हो गई. बीमारी सैनिकों में पहले विश्व युद्द के दौरान खंदकों, कैंपों में खराब हालातों में रहने की वजह से आई थी. लड़ाई तो 1918 के अंत तक खत्म हो गई लेकिन लगभग 4 सालों तक साफ-सफाई न मिलने और ठीक खाना न मिलने के कारण स्पेनिश फ्लू पनपता रहा.

टेड्रोस ने साल 1918 में फैले स्पेनिश फ्लू से इसकी तुलना करते हुए कहा कि वो बीमारी एक के बाद एक तीन बार लौटी थी. जैसे ही लोग असावधान होंगे, कोरोना का घटता कहर फिर लौटेगा और ज्यादा प्रभावी होकर लौटेगा. महामारियां वैसे तो अलग-अलग पैथोजन्स से हो सकती हैं, उनके लक्षण और असर भी अलग होते हैं लेकिन लौटने के मामले में कई महामारियां एक तरह की दिखीं.

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