गोरखपुर। वर्तमान में राजनीति को सेवा का माध्यम बना शोषितों, वंचितों के साथ प्रदेश की जनता के हित में बड़ी से बड़ी जिम्मेदारी निभाने वाले योगी आदित्यनाथ कभी पीछे नहीं हटे। यह आत्मबल उनमें नाथपीठ के संस्कारों और परंपराओं ने आरोपित किया। इन संस्कारों और परंपराओं को निभाने में भी वे कभी पीछे नहीं रहे। यदि राजनीति के माध्यम से प्रदेशवासियों की सेवा की तो संस्कारों और परंपराओं को याद रखते हुए गोरक्षपीठाधीश्वर की भूमिका भी बखूबी निभाई।

गोरक्षपीठाधीश्वर के रूप में भी योगी आदित्यनाथ ने सदैव संस्कारों और परंपराओं का पालन पूरी निष्ठा और श्रद्धा के साथ किया। योगी ने राजधर्म के लिए मठ से दूरी बनाई लेकिन मठ के संस्कार से वह तमाम व्यस्तताओं के बावजूद दूर नहीं हुए। दिनचर्या से लेकर पर्वों में भी नाथपंथ के संस्कारों और परंपराओं को कायम रखा। प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए भी एक संत की तरह राजपद से निर्लिप्त रहे और राजधर्म व संन्यासी के धर्म का एक साथ पूरी निष्ठा से पालन किया।

निष्ठा से बढ़ाई नाथ पीठ की परंपरा

प्रदेश के मुखिया का दायित्व मिलने के बाद जब वह लखनऊ के मुख्यमंत्री आवास पहुंचे तो पद के ऐश्वर्य को ठुकरा दिया। अपना व्यक्तिगत जीवन एक संत की तरह ही जीने का निर्णय लिया और जिया भी। भीषण गर्मी हो या हाड़कंपाऊ ठंड, योगी आदित्यनाथ की दिनचर्या में कोई बदलाव नहीं आई।

वह उनके मुख्यमंत्री बनने के पहले जिस तरह से चलती थी, वैसे ही चली। पिछले पांच वर्ष के दौरान जब भी वह गोरखपुर आए, प्रतिबद्धता से शासकीय और प्रशासकीय कार्य किया। ठीक वैसी ही प्रतिबद्धता गोरक्षपीठाधीश्वर के रूप में भी दिखा। सुबह पहले गुरु दर्शन, गो-दर्शन और फिर जनता दर्शन। समय-समय पर लोकमंगल की कामना के संकल्प के साथ रुद्राभिषेक करके उन्होंने नाथ पीठ की परंपरा को पूरी आस्था के साथ आगे बढ़ाया।

समरसता के दूत

वर्ष 2019 के लोक सभा चुनाव में अयोध्या में दलित महावीर और अमरोहा में प्रियंका के घर भी योगी ने समरसता के लिए भोजन किया। दलित वोटों पर अपना एकाधिकार मानने वाली मायावती का 2022 में तिलिस्म टूटने के पीछे पीठ के इस सामाजिक सरोकार की महत्वपूर्ण भूमिका रही। गो-सेवा के लिए आम जनमानस को जागरूक करके ”कान्हा उपवन” के जरिए गोवंश का संरक्षण करवाया।

धर्म और राजनीति में भी समाज व राष्ट्र सेवा सर्वोपरि

धर्म हो या राजनीति, योगी के लिए राष्ट्र एवं समाज की सेवा ही सर्वोपरि रही। अपनी पीठ की परंपरा के अनुसार उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए भी सहभोज के माध्यम से छुआछूत और अस्पृश्यता की रूढ़ियों पर जमकर प्रहार किया। यानी सामाजिक समरसता को लेकर पीठ के उद्देश्य के प्रति हमेशा सतर्क रहे। मकर संक्रांति के दिन दलित समाज के अमृतलाल भारती के घर जाकर मुख्यमंत्री द्वारा किए गए भोजन को बानगी के तौर पर लिया जा सकता है।

इन परंपराओं को लेकर भी संजीदा रहे योगी

होलिका दहन और नरसिंह शोभा यात्रा जैसी परंपरा को लेकर संजीदा रहे तो दशहरे पर निकलने वाली पंथ की विजय जुलूस की परंपरा को भी पूरी श्रद्धा से निभाया। नवरात्र पर मां दुर्गा के प्रतीक स्वरूप नौ कुंवारी कन्याओं को पूजना भी कभी नहीं भूले। इसके साथ ही कभी वह बाढ़ पीड़ितों के बीच दिखे तो कभी रैन बसेरों का निरीक्षण करते। यहां तक कि वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान जब पूरा विपक्ष जनता के बीच से गायब था तब भी खुद की सेहत की परवाह किए बिना वह कोरोना के संक्रमण से मुक्त होते ही लोगों के सेवा में थे।

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