जालौर। भारत-पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय सरहद से 40 किलोमीटर दूर जालौर में गुरुवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह एवं सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने राष्ट्रीय राजमार्ग पर बनाई गई 3.5 किमी लंबी पट्टी का उद्घाटन अनोखे ढंग से किया। दोनों केंद्रीय मंत्रियों ने वायुसेना के सी-130जे हरक्युलिस विमान से नई दिल्ली से उड़ान भरी और उनके विमान ने राजमार्ग पर आपातकालीन लैंडिंग करने का प्रदर्शन किया। इस हवाई पट्टी के औपचारिक उद्घाटन के बाद करीब डेढ़ घंटे तक वायुसेना के फाइटर प्लेन उड़ान भरकर आसमान में गर्जना करते रहे। अब उत्तर प्रदेश के बाद राजस्थान दूसरा ऐसा राज्य बन गया है जहां आपात स्थिति में लड़ाकू विमानों को हाइवे पर उतारा जा सकेगा।

भारत-पाकिस्तान बॉर्डर की है पहली हवाई पट्टी

आपातकालीन लैंडिंग की मॉक ड्रिल से पहले हवाई पट्टी के आसपास के इलाके को छावनी में तब्दील करके पुलिस की तैनाती करके राजमार्ग का आवागमन बंद कर गया था। उद्घाटन समारोह के एक हिस्से के रूप में वायुसेना के परिवहन विमान सी-130जे हरक्युलिस ने दोनों केन्द्रीय मंत्रियों रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह एवं सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी, वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया के साथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर आपातकालीन लैंडिंग करने का प्रदर्शन किया। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने भी हाइवे पर इमरजेंसी फील्ड पर लैंडिंग प्रदर्शन को देखा।

इस अनोखे ढंग से उद्घाटन होने के बाद अब राष्ट्रीय राजमार्ग पर बनाई गई हवाई पट्टी पर आपात स्थितियों में लड़ाकू विमानों को उतारा जा सकेगा। करीब 33 करोड़ की लागत से बनाई गई इस हवाई पट्टी का इस्तेमाल आपात स्थिति में वायुसेना और सेना कर सकेगी। एनएचएआई की ओर से भारत माला प्रोजेक्ट के तहत आपातकालीन स्थिति में इस्तेमाल करने के लिए भारत-पाकिस्तान बॉर्डर की यह पहली हवाई पट्टी है।

एनएचएआई ने वायु सेना के लिए तैयार किया इमरजेंसी लैंडिंग फील्ड

भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने भारतमाला परियोजना के तहत जालौर जिले के चितलवाना में राष्ट्रीय राजमार्ग-925ए पर 3.5 किलोमीटर लंबे और 33 मीटर चौड़े हिस्से को भारतीय वायु सेना के लिए इमरजेंसी लैंडिंग फील्ड (ईएलएफ) के रूप में तैयार किया है। राजमार्ग पर सत्ता और गांधव गांवों के बीच 41/430 किमी. से 44/430 किमी. के हिस्से में यह लैंडिंग सुविधा होगी जो गगरिया-बखासर और सट्टा-गांधव खंड के नव विकसित टू लेन पेव्ड शोल्डर का हिस्सा है। कुल 196.97 किलोमीटर लम्बे राजमार्ग को विकसित करने में 765.52 करोड़ रुपये लागत आई है, जिसमें ईएलएफ की लागत 32.95 करोड़ रुपये है।

देश की पश्चिमी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर सुरक्षा तंत्र को मजबूती मिलेगी

इस परियोजना से बाड़मेर और जालौर जिले के सीमावर्ती गांवों के बीच संपर्क बढ़ेगा। यह हिस्सा पश्चिमी सीमावर्ती क्षेत्र में स्थित होने से भारतीय सेना की सतर्कता बढ़ने के साथ ही देश की अधोसंरचना भी मजबूत होगी। इस इमरजेंसी लैंडिंग स्ट्रिप के अलावा वायुसेना और भारतीय सेना की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए कुंदनपुरा, सिंघानिया और भाखासर गांवों में 100×30 मीटर आकार के तीन हेलीपैड भी बनाये गये हैं। इसके निर्माण से भारतीय सेना तथा देश की पश्चिमी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर सुरक्षा तंत्र को मजबूती मिलेगी।

महज 19 माह में पूरा किया गया निर्माण

इस इमरजेंसी लैंडिंग फील्ड का निर्माण जुलाई, 2019 में शुरू हुआ था और जनवरी, 2021 में पूरा कर लिया गया। यानी ईएलएफ का निर्माण महज 19 महीनों के भीतर किया गया है। हवाई पट्टी का निर्माण भारतीय वायुसेना और एनएचएआई की देखरेख में जीएचवी इंडिया प्रा.लि. कंपनी ने किया है। सामान्य दिनों में ईएलएफ का इस्तेमाल यातायात के लिए किया जाएगा लेकिन जरूरत पड़ने पर जब वायुसेना इसका इस्तेमाल करेगी तो सर्विस रोड से यातायात गुजारा जाएगा। इस लैंडिंग स्ट्रिप पर भारतीय वायुसेना के हर प्रकार के विमान उतर सकेंगे।

आखिर क्यों बनाई गई हाइवे पर हवाई पट्टी

युद्ध के समय में हवाई पट्टी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। करीब 50 साल पहले पाकिस्तान से युद्ध के दौरान वायुसेना के भुज एयरबेस पर जो हुआ था, अब इस हवाई पट्टी के बनने से वैसा नहीं होगा। उस दौरान पाकिस्तान के जेट्स ने वायुसेना के भुज एयरबेस पर बम धमाके किए थे। इससे एयरबेस का रनवे तबाह हो गया था। भविष्य में ऐसे हालात पैदा न हों, इसके लिए राजस्थान में यह हाइवे हवाई पट्टी बनाई गई है।

भारत के अलावा और किन देशों में हाइवे पर हैं रनवे

भारत के अलावा जर्मनी, स्वीडन, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, ताइवान, स्विटज़रलैंड और फ़िनलैंड जैसे अन्य कई देशों में हाइवे और एक्सप्रेसवे पर विमानों की आपात लैंडिंग होती हैं। यहां हाइवे का रनवे की तरह इस्तेमाल होता है।

ईएलएफ की खासियत

इमरजेंसी लैंडिंग स्ट्रिप के दोनों छोरों पर 40 मीटरx180 मीटर की दो पार्किंग सुविधाएं तैयार की गई हैं, ताकि फाइटर प्लेन को पार्किंग में रखा जा सके। इसके अलावा 25 मीटरx65 मीटर के आकार का एटीसी टॉवर बनाया गया है। यह टॉवर दो मंजिला है और एटीसी केबिन हर सुविधा से लैस है। यहां शौचालय का भी निर्माण किया गया है। वायुसेना की गतिविधियों के दौरान स्थानीय ग्रामीणों की सुरक्षा के लिए भारतीय वायुसेना के सुझाव पर 1.5 मीटर की बाड़बंदी की गई है। साथ ही कंक्रीट के फुटपाथ सहित सात मीटर चौड़ा डायवर्जन मार्ग बनाया गया है।

लड़ाकू विमानों की आवाज से गूंज उठा पूरा इलाका

अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर से 40 किलोमीटर पहले (भारतीय सीमा में) भारतमाला परियोजना के तहत राष्ट्रीय राजमार्ग-925ए बनाया गया है। इसी राजमार्ग पर अगड़ावा से सेसावा के बीच 3.5 किमी लंबी आपातकालीन हवाई पट्टी बनाई गई है ताकि यहां से आपात स्थितियों में लड़ाकू विमानों का संचालन किया जा सके। इस दौरान आपातकालीन हवाई पट्टी पर लगभग डेढ़ घंटे तक फाइटर प्लेन सुखोई-30, जगुआर और मिग ने लैंडिंग और टेक ऑफ करने का प्रदर्शन किया, जिससे बॉर्डर का यह इलाका डेढ़ घंटे तक लड़ाकू विमानों की आवाज से गूंजता रहा।

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