वे सेनाओं को न रोकते तो पीओके भी हमारे पास रहता
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने का प्रस्ताव 351 वोटों से और पुनर्गठन बिल 366 वोटों से पास हुआ
लोकसभा में चर्चा के दौरान कांग्रेस नेता अधीर रंजन ने पूछा था- कश्मीर का मामला अंदरूनी है या द्विपक्षीय? क्या वह यूएन की निगरानी में नहीं है?
शाह ने कहा- पाकिस्तानी सेना ने जब सीमाएं लांघीं थीं, तभी संयुक्त राष्ट्र का प्रस्ताव खारिज हो गया था
गृह मंत्री ने कांग्रेस से कहा- इमरजेंसी लाकर आपने पूरे देश को केंद्र शासित बना दिया था, आप हमें मत सिखाइए
नई दिल्ली. गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को लोकसभा में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का प्रस्ताव पेश किया। सदन में यह प्रस्ताव 351 वोटों से पास हो गया। जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक 366 वोटों से पास हुआ। अनुच्छेद 370 हटाए जाने के प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान विपक्ष ने हंगामा किया। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि कश्मीर मामला संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में लंबित है, इसलिए यह अंदरूनी मसला कैसे हो सकता है। शाह ने कहा कि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है और इसके लिए कानून बनाने का अधिकार संसद के पास है। जम्मू-कश्मीर में पीओके और अक्साई चिन भी हैं। इसके लिए जान दे देंगे। गृहमंत्री ने कहा- कश्मीर मसला यूएन ले जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू थे। अगर उन्होंने सेनाओं को रोका ना होता तो आज पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) भी भारत का हिस्सा होता।
चौधरी और कांग्रेस के सवालों पर शाह के जवाब
अपनी टिप्पणियों को लेकर विवाद के बाद कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने दोहराया कि मैं सरकार से पूछना चाहता हूं कि जम्मू-कश्मीर 1948 से संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षण में है या नहीं? पुनर्गठन के बाद संयुक्त राष्ट्र को लेकर स्थिति क्या होगी?
शाह ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र में इस मसले को लेकर कौन गया? तत्कालीन गृह मंत्री (सरदार पटेल) को भरोेसे में लिए बिना ही तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू इसे संयुक्त राष्ट्र में ले गए। इतिहास गवाह है।
गृह मंत्री ने कहा कि अधीर रंजन चौधरी ने संयुक्त राष्ट्र की मौजूदा स्थिति पर सवाल किया है। 20 जनवरी 1948 को संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव को भारत-पाकिस्तान, दोनों ने स्वीकार किया था। इसमें कहा गया था कि सेनाएं एक-दूसरे की सीमाओं का उल्लंघन नहीं करेंगी। शाह बोले, “जिस दिन पाकिस्तान ने हमारी सीमाओं का उल्लंघन किया, उसी दिन यह प्रस्ताव खारिज हो गया था। जब शिमला समझौता हुआ तो उसमें भी यही दोहराया गया। इसलिए संयुक्त राष्ट्र की इसमें कोई भूमिका नहीं है। भारत की सीमाओं के अंदर फैसले लेने के लिए संसद के दोनों सदनों को अधिकार प्राप्त है।’
शाह ने कहा कि मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि जहां तक केंद्र शासित प्रदेश बनाने का सवाल है, परिस्थिति सामान्य होते ही जम्मू-कश्मीर को दोबारा पूर्ण राज्य का दर्जा देने में हमें कोई आपत्ति नहीं है।
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी के सवालों के जवाब में शाह ने कहा- पंडित नेहरू अगर सेनाओं को छूट देते तो पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर आज हमारे पास होता। संघर्ष विराम किसने किया? पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर को हमने पाकिस्तान को नहीं दिया। मोदी सरकार के राज में ऐसा नहीं हो सकता।
शाह-चौधरी के बीच तीखी बहस
चौधरी ने कहा कि आप (अमित शाह) कश्मीर के अंदरूनी मसला बताते हैं लेकिन 1948 से यूएन इस मामले को देख रहा है। इसे अंदरूनी मामला कैसे कह सकते हैं? हमने शिमला और लाहौर समझौते पर हस्ताक्षर किए, ये अंदरूनी मामले हैं या फिर द्विपक्षीय? कुछ दिन पहले एस जयशंकर ने अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो से कहा था कि कश्मीर द्विपक्षीय मुद्दा है, आप इसमें दखलअंदाजी नहीं कर सकते। क्या अब भी जम्मू-कश्मीर अंदरूनी मसला रह जाता है।
इस पर शाह ने कहा- जम्मू-और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। इस पर कोई कानूनी विवाद नहीं है। जब भारत और जम्मू-कश्मीर का संविधान बना था, तब उन्होंने भी स्वीकार किया था कि वह भारत का ही अभिन्न अंग है। अभी अनुच्छेद 370 के खंड-1 के जितने भी नियम हैं, वे लागू हैं। इसके 15वें भाग में उल्लेख है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। जम्मू-कश्मीर के संविधान में भी इसका उल्लेख है। इस देश को पूरा अधिकार है कि वह जम्मू-कश्मीर को लेकर इस प्रकार का कानून बना सके। जब मैं जम्मू और कश्मीर बोलता हूं तो पाक के कब्जे वाला कश्मीर (पीओके) और अक्साई चिन भी इसके अंदर आता है। हम इसके लिए जान दे देंगे। हम आक्रामक क्यों नहीं हों? क्या आप पीओके को भारत का हिस्सा नहीं मानते? हमारे संविधान ने जम्मू-कश्मीर की जो सीमाएं तय की हैं, उसमें पीओके भी आता है।
‘राष्ट्रपति को अनुच्छेद 370 निष्क्रिय करने का अधिकार’
शाह ने कहा- ‘‘इस सदन ने बहुत सारे ऐतिहासिक क्षण देखे हैं। मैं गर्व के साथ कहना चाहता हूं कि यह प्रस्ताव और बिल इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से लिखे जाएंगे। कल अनुच्छेद 370 1डी का प्रस्ताव पास किया गया। इसमें उल्लेख किया गया है कि जम्मू-कश्मीर को विधानसभा कहकर ही बुलाया जाएगा। अनुच्छेद 370 की धारा तीन के तहत राष्ट्रपति को अधिकार है कि एक नोटिफिकेशन जारी कर 370 को निष्क्रिय कर सकते हैं। वे तब ही नोटिफिकेशन जारी कर सकते हैं, जब जम्मू-कश्मीर संविधान की अनुशंसा हो। उसके बाद ही यह हुआ है। कांग्रेस ने भी 1952 और 1965 में इसका इस्तेमाल किया था। राष्ट्रपति ने कैबिनेट की अनुशंसा के बाद ही ऐसा किया है। मुझे उम्मीद है कि सदन के सभी सदस्य धारा 370 हटाने के लिए एक साथ वोट करेंगे।’’
अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी किया
इससे पहले केंद्र ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले 70 साल पुराने अनुच्छेद 370 को केंद्र सरकार ने सोमवार को हटा दिया। इसके लिए गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में अनुच्छेद 370 को हटाने का संकल्प पेश किया। कुछ ही देर बाद राष्ट्रपति की मंजूरी वाली अधिसूचना भी जारी हो गई। इससे जम्मू-कश्मीर में भी भारत का संविधान लागू होने का रास्ता साफ हो गया।
विपक्ष ने सोमवार को लोकसभा से वॉकआउट किया
गृह मंत्री ने सोमवार को लोकसभा में बिल पेश किया था, लेकिन विपक्ष ने इसका विरोध किया। इसी दौरान शाह ने कहा कि यह विधेयक मंगलवार को सदन में चर्चा के लिए फिर पेश करूंगा। विपक्ष को इस बिल पर विस्तार से चर्चा करनी चाहिए और सुझाव देने चाहिए। मैं उनके हर सवाल का जवाब देने के लिए तैयार हूं। इस दौरान कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि गृह मंत्री अमित शाह सदन में आए, देश को तोड़ा और चले गए। सरकार ने पूरे जम्मू-कश्मीर को जेल बना दिया।