हैदराबाद। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने रविवार को कहा कि 2020-21 का केंद्रीय बजट राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया था। यहां तक कि उन्हें “सबसे लंबे समय तक भाषण” के बजाय “सबसे लंबे समय तक तैयार बजट” पेश करने के लिए याद किया जाएगा।
उद्योग और व्यापार प्रतिनिधियों को सम्बोधित करते हुए हैदराबाद में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि वास्तु एंव सेवा कर (जीएसटी) में त्रुटियां है उसे दूरकर एक सरल व्यवस्था 01 अप्रैल 2020 से पूरे देश में शुरू कर दी जाएगी। उन्होंने कहा कि हमने जो भी कदम उठाये हैं, एफआरबीएम काननू को ध्यान में रखकर उठाये हैं और उसका अनुपालन किया। हमने राजकोषीय अनुशासन को बनाये रखा है जो अटल बिहारी वाजपेयी सरकार और नरेंद्र मोदी सरकार दोनों की खासियत रही है।
सीतारमण ने कहा कि बजट पिछले साल जुलाई और इस साल फरवरी के बीच तैयार किया गया। इसमें विभिन्न मंत्रालयों समेत सभी पक्षों से सुझाव लिये गये। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ‘‘संभवत: यह पहली बार है जब कई लोग मुझसे कहते हैं कि पहली बार बजट भाषण इतना लंबा था। इसके बजाए मैं इसके लिये याद रखना पसंद करूंगी कि यह जुलाई से फरवरी के बीच लंबे समय में तैयार किया गया बजट था।’’ सीतारमण ने कहा कि पूंजी की कमी से जूझ रहे एमएसएमई को उनसे संबंधित बैंकों के जरिये अतिरिक्त कर्ज की सुविधा दी गयी और उन्हें अतिरिक्त कार्यशील पूंजी दी गयी है। माल एवं सेवा कर के बारे में वित्त मंत्री ने कहा कि एक अप्रैल से एक सरलीकृत व्यवस्था शुरू होगी। साथ ही जो तकनीकी खामियां हैं, वो भी दूर होंगी। उन्होंने केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड से लोगों तक पहुंचने और उनके संदेह दूर करने को कहा है। सीतारमण ने कहा, ‘‘मैं जीएसटी को लेकर कोई और संदेह नहीं चाहती। एक अप्रैल से हम जीएसटी को लेकर सरलीकृत अनुपालन व्यवस्था चाहते हैं… इससे प्रणाली की वजह से जो तकनीकी खामियां होती थी, उसका पूर्ण रूप से समाधान हो जाएगा।
दूसरे सत्र में वित्त मंत्री सीतारमण ने हैदराबाद में बजट 2020 पर अर्थशास्त्रियों, शिक्षाविदों और नीति विशेषज्ञों के साथ एक चर्चा सत्र में उनकी राय जानी और आश्वस्त किया कि समस्या जो भी है, उसे जल्द से जल्द दूर कर लिया जायेगा।
उल्लेखनीय है कि केंद्र ने पूर्व में कहा था कि वह एफआरबीएम कानून के तहत राजकोषीय घाटे में कमी लाने और उसे 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के तीन प्रतिशत पर बरकरार रखने तथा प्राथमिकता घाटा को समाप्त करने को लेकर कटिबद्ध है। चालू वित्त वर्ष में जीडीपी का 3.8 प्रतिशत रहने का अनुमान रखा गया है जबकि पूर्व में बजट में इसके 3.3 प्रतिशत रहने की संभावना जतायी गयी थी।