नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत की संघीय शासन प्रणाली की सफलता के लिए आवश्यक है कि राष्ट्रीय दृष्टिकोण और क्षेत्रीय अपेक्षाओं के बीच संतुलन कायम किया जाए। उन्होंने कहा कि देश और राज्यों के विकास एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं तथा केंद्र एवं राज्य सरकारें एक-दूसरे की प्रतिद्वंद्वी नहीं बल्कि देश की विकास यात्रा में सहभागी हैं।

मोदी ने राज्यसभा के 250वें सत्र के अवसर पर सदन में हुई विशेष चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि ऊपरी सदन के रूप में राज्यसभा निगरानी और संतुलन का काम करता है, लेकिन नियंत्रण और संतुलन के स्थान पर रोक-टोक और बाधा पैदा करने की प्रवृत्ति किसी भी प्रकार से उचित नहीं है।

संसद के निचले सदन (लोकसभा) और ऊपरी सदन (राज्यसभा) की तुलना करते हुए मोदी ने कहा कि निचले सदन के रूप में लोकसभा जमीन की हकीकत के साथ जुड़ा है, जबकि ऊपरी सदन होने के कारण राज्यसभा की दृष्टि व्यापक और विहंगम होती है। राज्यसभा की दूरदर्शिता संसद में विधायी कार्य सार्थक रूप से पूरा करने में बहुत सहायक है।

प्रधानमंत्री ने तीन तलाक विधेयक और संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाये जाने के संबंध में राज्यसभा की भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि इस सदन ने बदलते हुए समय की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए विधायी कार्य संपन्न किया। राज्यसभा में सत्ता पक्ष का बहुमत न होने के बावजूद जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने के संबंध में राज्यसभा ने अगुवाई की। मोदी ने कहा कि भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 जोड़ने की पहल भी राज्यसभा में हुई थी और यह सुखद संयोग है कि दशकों बाद इस अनुच्छेद को हटाने में भी इस सदन ने ही पहल की।

गरीब वर्ग के लोगों को आरक्षण देने संबंधी विधेयक की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि आरक्षण का मुद्दा अकसर विवाद और तनाव का कारण बनता है, लेकिन इस सदन ने जब इस संबंध में कानून बनाने की पहल की तो देश में कहीं कोई तनाव और विवाद पैदा नहीं हुआ।

प्रधानमंत्री के रूप में अपने अनुभव का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि राज्यसभा में होने वाले विचार-विमर्श से उन्हें बहुत कुछ सीखने-समझने का अवसर मिला है। लोकसभा तात्कालिक रूप से जिन बातों का आकलन नहीं कर पाती वे राज्यसभा के जरिए उजागर होती हैं और संसद को उनका लाभ मिलता है। सरकार पर अंकुश रखने के संबंध में राज्यसभा की भूमिका के बारे में उन्होंने कहा कि संसदीय यात्रा के शुरुआती दशकों में विपक्षी दलों की बहुत कम मौजूदगी के बावजूद इस सदन ने सरकारों की निरंकुशता पर रोक लगाई। राज्यसभा को चिरंजीवी बताते हुए उन्होंने कहा कि स्थायित्व और विविधता इस सदन की खासियत है। यह सदन कभी भंग नहीं होता। वहीं इस सदन में राज्यों की आवाज मुखरता से गूंजती है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक ऐसे विशिष्ट लोग हैं जो राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान कर सकते हैं, लेकिन उनके लिए चुनावी अखाड़े में जीतना संभव नहीं है। शिक्षा, विज्ञान, साहित्य, कला और खेल-कूद की जानी-मानी हस्तियां इस सदन में पहुंचकर संसदीय कार्यवाही को और समृद्ध बनाती हैं।

इस सिलसिले में मोदी ने संविधान निर्माता डॉ. बीआर अंबेडकर की राज्यसभा में मौजूदगी का जिक्र किया। कांग्रेस का नाम लिये बिना मोदी ने कहा कि कुछ कारणों से डॉ. अंबेडकर लोकसभा में नहीं पहुंच पाए, लेकिन राज्यसभा के सदस्य के रूप में उन्होंने संसदीय जीवन में योगदान किया।

मोदी ने अपने संबोधन में राज्यसभा के पहले सभापति सर्वपल्ली राधाकृष्णन और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का हवाला देते हुए कहा कि संसदीय जीवन में राज्यसभा को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है। संसदीय प्रणाली का प्रवाह लोकसभा और राज्यसभा के दो किनारों के मध्य से गुजरता है। दोनों किनारों की मजबूती समान रूप से आवश्यक है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि अटलजी ने राज्यसभा के 200वें सत्र के अवसर पर वर्ष 2003 में कहा था कि राज्यसभा दूसरा सदन है, लेकिन कोई इसे दोयम दर्जे का सदन मानने की गलती न करे। मोदी ने इस कथन को आगे बढ़ाते हुए कहा कि राज्यसभा दोयम दर्जे का नहीं बल्कि सहायक सदन है।

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