नई दिल्ली/देहरादून। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की विदाई का क्या कारण है। आखिर बीजेपी को अचानक ऐसा क्यों लगने लगा है कि उनके चेहरे पर अगले साल होने वाला चुनाव लड़ना पार्टी को डुबो सकता है? उत्तराखंड की सियासी फिजाओं में तैर रहे इन सवालों के जवाब दिल्ली में बीजेपी मुख्यालय के गलियारों में ढूंढे जा रहे हैं। हालांकि, जवाब पहाड़ी राज्य में ही मौजूद हैं। आप थोड़ा टटोलना शुरू करेंगे, तो एक-एक कर इसका जवाब मिलता चला जाएगा।
18 मार्च 2017 में बीजेपी ने यूपी और उत्तराखंड में प्रचंड जीत की होली खेली थी। 70 में से 57 सीटों की भारी जीत और उम्मीदों के साथ रावत ने कुर्सी संभाली थी। संयोग की बात थी कि उसके ही अगले दिन यूपी में उन योगी आदित्यनाथ ने भी में सीएम की कुर्सी संभाली, जो उनके ही गृह जनपद पौड़ी से आते हैं।
प्रदेश भले ही अलग थे, लेकिन पहले ही दिन से रावत और योगी के काम की तुलना होती रही और हो रही है। रावत पर निष्क्रिय सीएम का ठप्पा लगाने का एक काम यूपी में योगी की तेजी ने भी किया। गाहे-बगाहे यूपी में योगी की सख्त छवि और हर अच्छे काम की तुलना त्रिवेंद्र सिंह रावत से होती रही और वह अपनी अलग ही छवि में कैद होते रहे।