राहुल गांधी को अब अपना छोड़ना होगा हठ योग

यह सच है कि व्यक्ति नहीं समय बलवान होता है लेकिन विपरीत समय में ही धैर्य, सूझबूझ एवं सर्तकता की आवश्यकता होती है, विपरीत परिस्थिति में सकारात्मक सोच न केवल बल, सम्बल प्रदान करती है बल्कि अनिर्णय से निर्णय की स्थिति में भी लाती है। जब घर का मुखिया ही हताश हो, निराश हो, तो उसका विपरीत प्रभाव पूरे परिवार पर पड़ता है कई दफे तो परिवार मुखिया के अभाव में बिखर भी जाता है। आज वर्तमान में लगभग 134 वर्ष पुरानी कांग्रेस जिस विषम परिस्थिति से गुजर रही है शायद पहले कभी नहीं गुजरी होगी। राजनीति में नीति नहीं, चली गई चाल का महत्व होता है। एक गलत चाल डूबा भी सकती है तो सही उबार भी सकती है। हाल ही में देश में सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव के परिणामों ने कांग्रेस को बुरी तरह हिलाकर रख दिया है, जो स्वभाविक भी है। निःसंदेह जंगे सवार ही मैदान में गिरते हैं लेकिन इससे सबक ले उठना भी एक हुनर है। आज पक्ष अपनी चाल में सफल होता नजर आ रहा है मसलन कांग्रेस एक परिवार की पार्टी है, कांग्रेस मुक्त आदि-आदि, भारत में यूं तो आज परिवारवाद से कोई भी पार्टी अछूती नहीं है, आज हर नेता अपने बेटे, बेटी, पत्नी, बहू को आगे लाने के लिए सब कुछ करने को तैयार हैं। अब नेता की यही प्राथमिकता भी है, पार्टी दूसरे नम्बर पर है। यदि नेता की ये महत्वाकांक्षा किसी कारण से पूरी नहीं होती तो वह पार्टी को न केवल नुकसान पहुंचाएगा बल्कि पार्टी को ही बदल लेगा। क्योंकि आज नेतागिरी ही लाभ का धन्धा जो बन गई है।

राहुल गांधी को अब अपना हठ योग छोड़ पार्टी में सुधार कार्य को बढ़ाना चाहिए। नए ऊर्जावान युवा लोगों को आगे लाना चाहिए। बुजुर्ग नेताओं को मार्गदर्शक मण्डल में रख उनके अनुभव का लाभ लेना चाहिये। बुजुर्ग का अनुभव युवा की शक्ति निश्चित ही रंग लायेगी। कुछ अच्छी चीजें पक्ष से भी सीखना चाहिये। बहुत हुआ अवसाद, बहुत हुआ इस्तीफे का हठयोग, कर्म से भागने वाले को इतिहास ने कभी माफ नहीं किया। अर्जुन भी महाभारत में युद्ध भूमि से भागने के सौ जतन कर रहा था लेकिन उसको भगवान श्रीकृष्ण सा गुरू मिला जिन्होंने न केवल उसको विषाद से निकाला बल्कि कलंकित होने से भी बचाया। निःसंदेह मुखिया अनुसरण करने वालों के लिए एक रोल मॉडल होता है इसलिए मुखिया को जलना पड़ता है, तपना पड़ता है ताकि अनुसरण करने वालों में कोई गलत संदेश न जाये। आज राहुल को इस्तीफा दिये लगभग 50 दिन हो चुके हैं जिन राज्यों में राहुल की मेहनत से जहां-जहां कांग्रेस की सरकारें है उन पर न केवल गलत प्रभाव पड़ रहा है बल्कि बिखराव की कगार पर भी आ रही है। कर्नाटक और गोवा की स्थिति किसी से छिपी नहीं है।

म.प्र. राजस्थान, छत्तीसगढ़ में आई कांग्रेस पार्टी निःसंदेह राहुल गांधी की ही ऊर्जा का ही परिणाम है गुजरात में भी भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी। यही सकारात्मक सोच को लेकर राहुल गांधी को शीर्षासन छोड़ पुनः पार्टी अध्यक्ष पद संभाल पूरी ताकत के साथ पुनः खड़ा होना चाहिए। नया संचार करना चाहिए क्योंकि 2019 के अंत में हरियाणा, झारखण्ड, महाराष्ट्र एवं 2020 में बिहार, दिल्ली, पांडीचेरी विधान सभा के चुनाव होने हैं वैसे भी बहुत देर हो चुकी है लेकिन यह भी सही है कि जब जागे तभी सवेरा। राहुल गांधी को पार्टी बिखरने से बचाने एवं नई शक्ति संकल्प, ऊर्जा के साथ आना ही चाहिये क्योंकि आज ही कल का इतिहास बनेगा।

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