बेगूसराय। वैश्विक महामारी कोरोना ने तमाम परिवारिक, सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों को प्रभावित किया है।

सरकार के संवेदनशीलता के कारण कोरोना काबू में आ गया है। लेकिन संक्रमण के तीसरे लहर की संभावना के कारण इस वर्ष भी भारत का दूसरा सबसे बड़ा जन्माष्टमी मेला नहीं लगेगा। जिसके कारण व्यवसाई और आम लोगों में मायूसी है। बिहार के बेगूसराय जिला में स्थित तेघड़ा में होनेवाला श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मेला बिहार का सबसे बड़ा जन्मष्टमी का मेला है।

श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा-वृन्दावन के बाद यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मेला यहीं लगता है। लेकिन 1928 यहां लग रहा मेला कोरोना के कारण पिछले वर्ष से स्थगित कर दिया गया है।

इस वर्ष भी तेघड़ा के 14 पंडालों के साथ-साथ वहां से बरौनी, गढ़हरा रेलवे कॉलोनी होते हुए चकिया तक के 15 किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में बनने वाले 50 से अधिक पंडाल मायूस हैं। तमाम जगहों पर छोटी प्रतिमा बनाकर सिर्फ पूजा की औपचारिकता पूरी की जाएगी, जन्मोत्सव साधारण रूप से मनाए जाएंगे। बड़े-बुजुर्ग कहते हैं कि 1927 में तेघड़ा और आसपास के इलाकों में प्लेग महामारी के रूप में फैल गई थी।

लोगों ने दूसरे जगह जाकर बसना शुरू कर दिया था, महामारी से बचने के लिए तेघड़ा के लोगों ने कई यज्ञ, अनुष्ठान, तंत्र-मंत्र का सहारा लिया, लेकिन कोई निदान नहीं निकला। इसी बीच भारत भ्रमण के लिए निकली चैतन्य महाप्रभु की कीर्तन मंडली फरवरी 1927 तेघड़ा पहुंची, तो यहां दुर्दशा देख सन्न रह गई। यहां के लोगों की स्थिति देख कर मंडली ने श्रीकृष्ण जन्मोत्सव (जन्माष्टमी) मनाने की सलाह दी। चैतन्य महाप्रभु के कीर्तन मंडली की सलाह पर ही 1928 पहली बार वंशी पोद्दार के नेतृत्व में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया गया। इसके बाद तेघड़ा में लोगों को प्लेग से निजात मिला था, तब से मेला अनवरत जारी है। समय के साथ मेला का आकार भी बढ़ता चला तथा तेघड़ा मेला में मंडपों की संख्या भी बढ़ती चली गयी। तेघड़ा से शुरू होकर यह मेला रेलवे कॉलोनी बरौनी, गढ़हारा, बीहट चकिया होते सुशील नगर, लाखो, वनद्वार, पहसारा, मंसूरचक तक पहुंच गया है।

साम्प्रदायिक सदभाव के मिशाल यहां के जन्माष्टमी मेला का हिन्दू-मुस्लिम सबको इंतजार रहता है। प्रतिवर्ष लगने वाले इस मेले को लेकर हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोगों में उत्सुकता रहती है। मेला संपन्न होने तक हिन्दुओं के साथ-साथ मुस्लिम समुदाय के लोग भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कहीं पांडुचेरी के मंदिर के मॉडल में मंडप का निर्माण कराया जाता है, तो कहीं बंगाल से आए कारीगर इंडिया गेट, संसद भवन और राष्ट्रपति भवन बनाते हैं। मेला के आकर्षण का केंद्र आकाश झूला, मौत का कुआं, जादूगर, ड्रैगन रेलगाड़ी, मीना बाजार होते हैं। कुल मिलाकर कहें तो भारत के दूसरा मथुरा, तेघड़ा की हर गली कृष्णमय हो जाती है। यहां मेला देखने के लिए बिहार ही नहीं, नेपाल, बंगाल, राजस्थान, दिल्ली, यूपी, असम, उड़ीसा, झारखंड के साथ विदेशों में रहने वाले प्रवासी भारतीय भी आते हैं। 1928 में तेघड़ा में मात्र एक जगह से शुरू मेला आज 14 पंडालों में सज रहा है। अब तो तेघड़ा से चकिया तक करीब 15 किलोमीटर में 50 से अधिक जगहों पर पूजा-अर्चना होता है।

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