नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को कहा कि सार्वजनिक जीवन में हमारे अंदर इतनी शिष्टता होनी चाहिए कि हम एक-दूसरे के दृष्टिकोण को सुन सकें। उनका मानना है कि अलग-अलग सोच के व्यक्तियों और संगठनों के बीच एक निरंतर संवाद होना चाहिए।

केरल के मीडिया हाउस मलयालम मनोरमा के मीडिया कॉन्कलेव को दिल्ली से वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि बहुत से लोग अपने विचार से जुड़े मंचों को ही संबोधित करते हैं, लेकिन वह ऐसा नहीं मानते। उनका मानना है कि रचनात्मक आलोचना को भी सम्मान मिलना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘यह माना जाता है कि सार्वजनिक जीवन में व्यक्ति उन मंचों पर रहना पसंद करते हैं, जिनकी विचारधारा व्यक्ति के अपने विश्व के दृष्टिकोण के साथ मेल खाती है। क्योंकि ऐसे लोगों के बीच रहने में काफी सहूलियत होती है। बेशक, मैं भी इस तरह के परिवेश में खुशी महसूस करता हूं। लेकिन साथ ही, मेरा मानना है कि किसी की अलग विचार प्रक्रिया के बावजूद व्यक्तियों और संगठनों के बीच निरंतर और निरंतर संवाद होना चाहिए।’’

मोदी ने कहा कि हमारे अंदर इतनी शिष्टता होनी चाहिए कि हम दूसरों के अलग विचारों को सुनें। हमें हर चीज पर सहमत होने की जरूरत नहीं है, लेकिन सार्वजनिक जीवन में पर्याप्त शिष्टता होनी चाहिए कि अलग-अलग धाराओं से जुड़े व्यक्ति एक-दूसरे की बात सुनें। यहां मैं एक ऐसे मंच पर हूं, जहां शायद बहुत से लोगों के विचार प्रक्रिया मेरे जैसी नहीं है, लेकिन ऐसे लोग मौजूद हैं जिनकी रचनात्मक आलोचना को सुनने के लिए मैं बहुत तत्पर हूं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि न्यू इंडिया सहभागी लोकतंत्र, नागरिक केंद्रित सरकार और सक्रिय नागरिकता के बारे में है। न्यू इंडिया उत्तरदायी नागरिक और उत्तरदायी सरकार का युग है। प्रधानमंत्री ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा कि मलयालम मनोरमा ने ‘न्यू इंडिया’ थीम रखा है। बहुत से आलोचक अब यह कहेंगे कि मनोरमा मोदी की भाषा कहने लगा है। उन्होंने कहा कि मीडिया कुछ सीमित लोगों की आवाज नहीं है। उसका लोगों की आवाज सुननी जरूरी है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि पहले केवल बड़े शहरों, परिवारों और संस्थानों से आने वाले लोगों को ही व्यवस्था में स्थान मिलता था। लाइसेंस राज और परमिट राज में भाई-भतीजावाद चलता था। अब नए भारत में यह वातावरण पूरी तरह बदल गया है। अब नया भारत ‘स्टार्ट अप’ वातारण लेकर आया हैं जहां हजारों प्रतिभाशाली युवा शानदार मंच बना रहे हैं, जो उद्यम की भावना को प्रदर्शित करते हैं। इस भावना को हम खेल के मैदान पर भी देखते हैं। यह युवा नए आयाम सृजित कर रहे हैं। इनके पास बैंकों में बहुत पैसा नहीं है, लेकिन समर्पण और आकांक्षा की कोई कमी नहीं है। इन्हें आगे ले जाने के लिए सरकार हर संभव प्रयास कर रही है।

उन्होंने युवाओं के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा, ‘‘उनके पास भरपूर मात्रा में समर्पण और आकांक्षा है। वे उस आकांक्षा को उत्कृष्टता में बदल रहे हैं और भारत को गौरवान्वित कर रहे हैं। यह मेरे लिए न्यू इंडिया की सोच है। यह एक ऐसा भारत है जहां युवाओं के उपनाम मायने नहीं रखते। उनकी खुद का नाम ऊंचा करने की क्षमता मायने रखती है। यह एक ऐसा भारत है जहां भ्रष्टाचार कभी भी एक विकल्प नहीं है, चाहे कोई भी व्यक्ति हो। केवल क्षमता ही आदर्श है।’’

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि भारत सबसे ज्यादा भाषाओं वाला देश है। यहां कई अलग-अलग भाषाएं बोली जाती हैं। ये भाषाएं हमें जोड़ने में एक बड़ी भूमिका निभा सकती हैं। एक समाचार पत्र अगर हर दिन एक शब्द की अगल-अलग 10 से 12 भाषा अनुवाद बताए तो इससे साल भर में व्यक्ति दूसरी भाषा के 300 से ज्यादा शब्द सीख सकता है। इससे लोगों में अन्य भारतीय भाषाओं को सीखने की जिज्ञासा बढ़ेगी।

उन्होंने कहा कि न्यू इंडिया केवल भारत तक सीमित नहीं है बल्कि दुनियाभर में फैले भारतीय भी इसका हिस्सा हैं। वह भारत का स्वाभिनान और वह देश के आर्थिक विकास में सहयोग करते हैं। इस दौरान उन्होंने भारत सरकार के विदेश में रह रहे भारतीयों की सुरक्षा और बेहतरी के लिए किए जा रहे प्रयासों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि केरल की रहने वाली भारतीय नर्सों और फादर टाम को मध्यपूर्व से सुरक्षित बचाकर लाने में भारत ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत इसी क्रम में पश्चिम एशिया की ओर विशेष ध्यान दे रहा है। अब तक कोई प्रधानमंत्री बाहरीन नहीं गया था, लेकिन वह गए हैं। उनके प्रयासों से बाहरीन, साउदी अरब और अन्य देशों में भारतीय कैदियों को रिहा कराया गया है। भारत ने यूएई में रुपे कार्ड शुरू किया है। जल्द ही बाहरीन में भी रुपे कार्ड शुरू किया जाएगा।

प्रधानमंत्री ने कहा कि केरल की मिट्टी और विशेष संस्कृति को वह सलाम करते हैं। केरल ने देश को सम्मान दिलाने वाले कई महापुरुष दिए हैं। आदि शंकराचार्य, महात्मा अय्यनकली, श्री नारायण गुरु, चतुम्बी स्वामीगल पंडित करुप्पन, संत कुरीकोज एलियास चावारा, संत अल्फोंसो इसमें प्रमुख हैं।

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