नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कहा कि न्यायपालिका के समक्ष शीघ्र न्याय की चुनौती हमेशा से ही रही है। इसके अलावा बदलते समय में डेटा सुरक्षा और साइबर अपराध जैसे विषय भी अदालतों के लिए नई चुनौती बनकर उभर रहे हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने सुप्रीम कोर्ट में आयोजित अंतरराष्ट्रीय न्यायिक सम्मेलन-2020 के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि न्यायपालिका के समक्ष शीघ्र न्याय की चुनौती हमेशा से रही है। इसका एक हद तक समाधान टेक्नोलॉजी के पास है। विशेषतौर पर कोर्ट के प्रक्रियात्मक प्रबंधन को लेकर इंटरनेट आधारित टेक्नॉलॉजी से भारत के न्याय वितरण प्रणाली बहुत लाभ होगा। उन्होंने कहा कि सरकार का भी प्रयास है कि देश की हर कोर्ट को ई-कोर्ट इंटीग्रेटेड मिशन मोड प्रोजेक्ट से जोड़ा जाए। राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड की स्थापना से भी कोर्ट की प्रक्रियाएं आसान बनेंगी।

उन्होंने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और मानवीय विवेक का तालमेल भी भारत में न्यायिक प्रक्रियाओं को और गति देगा। भारत में भी न्यायालयों द्वारा इस पर मंथन किया जा सकता है कि किस क्षेत्र में, किस स्तर पर उन्हें आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की सहायता लेनी है। इसके अलावा बदलते हुए समय में डेटा सुरक्षा, साइबर अपराध, जैसे विषय भी अदालतों के लिए नई चुनौती बनकर उभर रहे हैं। इन चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए, ऐसे अनेक विषयों पर इस कॉन्फ्रेंस में गंभीर मंथन होगा, कुछ सकारात्मक सुझाव सामने आएंगे। मुझे विश्वास है कि इस कॉन्फ्रेंस से भविष्य के लिए अनेक बेहतर समाधान भी निकलेंगे।

उन्होंने कहा कि भारतीय समाज में कानून का शासन (रूल ऑफ लॉ) सामाजिक संस्कारों का आधार है। कानून सर्वोपरि है। वह राजाओं का भी राजा है। (लॉ इज द किंग ऑफ किंग, लॉ इज सुप्रीम)। हजारों वर्षों से चले आ रहे ऐसे ही विचार, एक बड़ी वजह हैं कि हर भारतीय की न्यायपालिका पर अगाध आस्था है।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती वर्ष में कॉन्फ्रेंस के आयोजन पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि पूज्य बापू का जीवन सत्य और सेवा को समर्पित था, जो किसी भी न्यायतंत्र की नींव माने जाते हैं। उन्होंने कहा कि बापू खुद भी वकील थे। अपने जीवन का जो पहला मुकदमा उन्होंने लड़ा, उसके बारे में गांधी जी ने बहुत विस्तार से अपनी आत्मकथा में लिखा है। गांधी जी तब बंबई, आज के मुंबई में थे। संघर्ष के दिन थे। किसी तरह पहला मुकदमा मिला था लेकिन उन्हें कहा गया कि उस केस के ऐवज में उन्हें किसी को कमीशन देना होगा। गांधी जी ने साफ कह दिया था कि केस मिले या न मिले, कमीशन नहीं दूंगा। सत्य के प्रति, अपने विचारों के प्रति गांधी जी के मन में इतनी स्पष्टता थी। और ये स्पष्टता उनकी परवरिश, उनके संस्कार और भारतीय दर्शन के निरंतर अध्ययन से आई।

राम जन्मभूमि पर आये सुप्रीम कोर्ट के फैसले की ओर संकेत करते हुए उन्होंने कहा कि हाल में कुछ ऐसे बड़े फैसले आए हैं, जिनको लेकर पूरी दुनिया में चर्चा थी। फैसले से पहले अनेक तरह की आशंकाएं व्यक्त की जा रही थीं, लेकिन 130 करोड़ भारतवासियों ने न्यायपालिका द्वारा दिए गए इन फैसलों को पूरी सहमति के साथ स्वीकार किया।

मोदी ने कहा कि बीत पांच वर्षों में मौजूदा समय में अप्रासंगिक हो चुके करीब 1500 पुराने कानूनों को समाप्त किया गया। उन्होंने जोर देकर कहा कि केवल ऐसा नहीं है कि कानून समाप्त करने में तेजी दिखाई गई है बल्कि समाज को गति देने वाले नये कानून भी उतनी ही तेजी से बनाये गये हैं। ट्रांसजेंडर के अधिकार, तीन तलाक के खिलाफ कानून, दिव्यांगजनों के अधिकार दायरा बढ़ाने का अधिकार हो।

उन्होंने कहा कि मुझे खुशी है कि इस कॉन्फ्रेंस में ‘जेंडर जस्ट वर्ल्ड’ के विषय को भी रखा गया है। दुनिया का कोई भी देश, कोई भी समाज जेंडर जस्टिस के बिना पूर्ण विकास नहीं कर सकता और ना ही न्यायप्रियता का दावा कर सकता है। इसी तरह सैन्य सेवा में बेटियों की नियुक्ति हो, फाइटर पाइलट्स की चयन प्रक्रिया हो, खान में रात में काम करने की स्वतंत्रता हो, सरकार द्वारा अनेक बदलाव किए गए हैं।

मोदी ने कहा कि न्यायपालिका ने विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन की गंभीरता को समझा और उसमें निरंतर मार्गदर्शन किया है। अनेक जनहित याचिकाएं (पीआईएलएस) की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने भी पर्यावरण से जुड़े मामलों को नए सिरे से परिभाषित किया है।

इस अवसर पर केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और देश के मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबड़े के अलावा अन्य न्यायाधीश, अटॉर्नी जनरल, दुनिया के अन्य उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश भी मौजूद थे।

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