नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तिहाड़ जेल प्रशासन को निर्भया के दोषियों को फांसी देने के लिए नया डेथ वारंट जारी करने के लिए ट्रायल कोर्ट जाने की अनुमति दे दी। कोर्ट ने निर्भया को दोषियों को अलग-अलग फांसी देने की मांग करने वाली केंद्र की याचिका पर चारों दोषियों को नोटिस जारी किया है। जस्टिस आर. भानुमति की अध्यक्षता वाली बेंच ने चारों दोषियों को 13 फरवरी तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। मामले की अगली सुनवाई 13 फरवरी को होगी।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने साफ कर दिया कि इस याचिका के लंबित होने का ये मतलब नहीं है कि डेथ वारंट जारी करने के लिए ट्रायल कोर्ट का रुख नहीं किया जा सकता है। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हाईकोर्ट की ओर से तय सात दिनों की समय सीमा बीत जाने के बावजूद चौथे दोषी पवन ने अभी तक अपना बाकी कानूनी विकल्प नहीं आजमाया है। ये देरी जानबूझकर की जा रही है।

मेहता ने कहा कि कोर्ट स्पष्ट करे कि क्या एक दोषी की दया याचिका लंबित होने की दशा में सभी अभियुक्तों को फांसी देने में बाधा आ सकती है। तब कोर्ट ने कहा कि इस पर हमें लंबी सुनवाई करनी होगी और इससे फांसी की सजा देने में देर हो सकती है। कोर्ट ने सुझाव किया कि अभी दोषियों की कोई याचिका लंबित नहीं है इसलिए ट्रायल कोर्ट में डेथ वारंट जारी करने के लिए रुख किया जा सकता है।

पिछले सात फरवरी को याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट का एक हफ्ते का समय 11 फरवरी को खत्म हो रहा है। इसलिए हम 11 फरवरी को सुनवाई करेंगे। सात फरवरी को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट को कानून के सवाल तय करना है। उन्होंने कहा कि मुकेश, विनय और अक्षय की सारी रेमेडी खत्म हो चुकी है। अक्षय, विनय और पवन ने निचली अदालत में अर्जी दाखिल की थी, जिसमें उन्होंने कहा कि सभी दोषियों को एक साथ ही फांसी हो सकती है अलग-अलग नहीं।

केंद्र सरकार का कहना है कि जिन दोषियों के कानूनी राहत के विकल्प खत्म हो गए हैं, उनकी फांसी की सजा पर अमल हो। पिछले पांच फरवरी को दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि निर्भया के चारों दोषियों को अलग-अलग फांसी पर नहीं लटकाया जा सकता। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि निर्भया के गुनाहगारों को अलग-अलग फांसी नहीं दी जा सकती है। निर्भया के गुनाहगार कानून का दुरुपयोग कर देर कर रहे हैं। हाईकोर्ट ने निर्भया के दोषियों को सात दिनों के अंदर कानूनी विकल्प आजमाने का निर्देश दिया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि डेथ वारंट काफी पहले जारी हो जाना चाहिए था लेकिन जेल प्रशासन ने ढिलाई की।

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