नई दिल्ली। भारत में इस वक्त लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र को लेकर एक बहस छिड़ी है। इस बहस को बल तब मिला जब स्वतंत्रता दिवस के दिन पीएम मोदी ने लाल किले की प्राचीर से लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र को 18 से बढ़ाकर 21 करने का इशारा किया। केंद्र सरकार ने इसे लेकर कमेटी बनाई है जिसके रिपोर्ट पर आगे का फैसला होगा। अब देश के अलग-अलग हिस्सों में इसको लेकर बहस हो रही है कि क्या अभी जो नियम है जिसमें कि लड़कियों के 18 साल होते ही वो शादी के लिए वैध हो जाती हैं इसमें कोई फेरबदल होगा या नहीं।
भारत में कुप्रथाएं
इतिहास के पन्नों को अगर कुरेदा जाए तो भारत में ये एक बड़ी समस्या थी। यहां पर कुप्रथाओं का अंबार था। बहुत पहले जब दो महिलाएं गर्भवती होती थीं तो दोनों परिवारों के बीच एक रिश्ता तय कर दिया जाता था। दोनों के बीच ऐसा होता था कि जिसके भी लड़का होगा और जिसके भी लड़की होगी आगे कुछ सालों के बाद दोनों की शादी कर दी जाएगी। इसके अलावा यहां बहुत छोटी उम्र में लड़कियों की शादी कर दी जाती थी। जिसके बाद एक कानून लाया गया और इस कानून ने तमाम लड़कियों की जिंदगी बचाई।
क्या कहता है कानून
बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 के तहत 21 साल से कम का लड़का और 18 साल से कम उम्र की लड़की कानून विवाह योग्य नहीं है। भारतीय वयस्कता अधिनियम 1875 की धारा 3 के मुताबिक 18 वर्ष की आयु पूरी हो जाने पर व्यक्ति वयस्क हो जाता है। इस आयु के बाद कानून की दृष्टि में वह अपना भला-बुरा खुद समझता है। इस आधार पर एक वयस्क लड़का अथवा लड़की अपनी इच्छानुसार कहीं आ-जा सकते है एवं किसी के साथ भी रह सकते हैं।
1978 में शारदा ऐक्ट में बदलाव
1978 में शारदा ऐक्ट में बदलाव के बाद शादी के लिए लड़कियों की न्यूनतम उम्र को 15 वर्ष से बढ़ाकर 18 वर्ष किया गया था। सन् 1928 में बाल विवाह पर पूर्णतया रोक रोक लगाने हेतु एक कानून पारित किया गया जिसे शारदा के नाम से जाना जाता है। बाल विवाह रोकने के लिए शारदा एक्ट अधिनियम भी प्रभावी नहीं रहा। जिसके कारण सन 1978 में शारदा एक्ट अधिनियम में संशोधन किया गया। यह अधिनियम अब बाल विवाह निरोधक अधिनियम 1978 के नाम से जाना जाता हैं। लड़कों के विवाह हेतु न्यूनतम आयु 21 वर्ष और लड़कियों के लिए न्यूनतम आयु 18 वर्ष निर्धारित की गई।