नई दिल्ली। पूर्व राष्ट्रपति व भारत रत्न प्रणब मुखर्जी का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया है. भारतीय राजनीति में छह दशकों का लंबा सफर तय करने वाले प्रणब दा देश की सबसे कद्दावर राजनीतिक हस्तियों में से एक थे. उनके राजनीतिक जीवन में दो बार ऐसे मौके आए जब वे प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए.
प्रणब दा कांग्रेस के दिग्गज नेता थे. इसके बावजूद मोदी सरकार द्वारा उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान के लिए चुना जाना बताता है कि उनकी शख्सियत और कद पार्टी या विचारधारा से कितना ऊपर था.
इंदिरा गांधी कैबिनेट में वित्त मंत्री
प्रणब मुखर्जी ने 1969 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उंगली पकड़कर राजनीति में एंट्री ली थी. वे कांग्रेस टिकट पर राज्यसभा के लिए चुने गए. 1973 में वे केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर लिए गए और उन्हें औद्योगिक विकास विभाग में उपमंत्री की जिम्मेदारी दी गई. इसके बाद वह 1975, 1981, 1993, 1999 में फिर राज्यसभा के लिए चुने गए.
1980 में वे राज्यसभा में कांग्रेस के नेता बनाए गए. इस दौरान मुखर्जी को सबसे शक्तिशाली कैबिनेट मंत्री माना जाने लगा. प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति में वे ही कैबिनेट की बैठकों की अध्यक्षता करते थे. प्रणब मुखर्जी इंदिरा गांधी की कैबिनेट में वित्त मंत्री थे. 1984 में यूरोमनी मैगजीन ने प्रणब मुखर्जी को दुनिया के सबसे बेहतरीन वित्त मंत्री के तौर पर सम्मानित किया था.
इंदिरा की मौत के बाद थे पीएम के दावेदार
साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद प्रणब मुखर्जी को प्रधानमंत्री पद का सबसे प्रबल दावेदार माना जा रहा था. वे पीएम बनने की इच्छा भी रखते थे, लेकिन कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने प्रणब को किनारे करके राजीव गांधी को प्रधानमंत्री चुन लिया. इंदिरा गांधी की हत्या हुई तो राजीव गांधी और प्रणब मुखर्जी बंगाल के दौरे पर थे, वे एक ही साथ विमान से आनन-फानन में दिल्ली लौटे.
प्रणब मुखर्जी का ख्याल था कि वे कैबिनेट के सबसे सीनियर सदस्य हैं इसलिए उन्हें कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाया जाएगा, लेकिन राजीव गांधी के रिश्ते के भाई अरुण नेहरू ने ऐसा नहीं होने दिया. उन्होंने राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाने का दांव चल दिया.
पीएम बनने के बाद राजीव गांधी ने जब अपनी कैबिनेट बनाई तो उसमें जगदीश टाइटलर, अंबिका सोनी, अरुण नेहरू और अरुण सिंह जैसे युवा चेहरे थे, लेकिन इंदिरा गांधी की कैबिनेट में नंबर-2 रहे प्रणब मुखर्जी को मंत्री नहीं बनाया गया था.
राजीव कैबिनेट में जगह नहीं मिलने से दुखी होकर प्रणब मुखर्जी ने कांग्रेस छोड़ दी और अपनी अलग पार्टी बनाई. प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया, लेकिन ये पार्टी कोई खास असर नहीं दिखा सकी. जब तक राजीव गांधी सत्ता में रहे प्रणब मुखर्जी राजनीतिक वनवास में ही रहे. इसके बाद 1989 में राजीव गांधी से विवाद का निपटारा होने के बाद उन्होंने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया.
मनमोहन को मिला मौका
साल 2004 में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई. 2004 में सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठा तो उन्होंने ऐलान किया कि वे प्रधानमंत्री नहीं बनेंगी. एक बार फिर से प्रणब मुखर्जी के प्रधानमंत्री बनने की चर्चाएं तेज हो गईं, लेकिन सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को पीएम बनाने का फैसला किया. इससे प्रणब मुखर्जी के हाथ से पीएम बनने का मौका एक बार फिर निकल गया.