नई दिल्ली। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने कहा कि आगमी 25 मार्च यानि चैत्र नवरात्र के पहले दिन से अयोध्या स्थित नए स्थान पर रामलला के दर्शन किए जा सकेंगे। इसके लिए रामलला को अस्थाई मंदिर में शिफ्ट किया रहा है जिसके लिए प्रशासन को 15 दिनों का वक्त दिया गया है।

वे दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र में तीन दिवसीय अयोध्या पर्व के अंतिम दिन रविवार को ‘योग वाशिष्ठ का महत्व’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। चंपत राय ने कहा कि मौजूदा समय में रामलला के दर्शन 52 फीट की दूरी से एक या दो सेंकड के लिए लोग कर पाते हैं, लेकिन हम ऐसी व्यवस्था कर रहे हैं कि यह दूरी घट कर 26 फीट रह जाए और लोग एक से दो मिनट तक दर्शन का लाभ ले सकें। साथ ही लोग आरती में शामिल हो सकें। उन्होंने बताया कि 29 फरवरी को अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की निर्माण समिति की बैठक आयोजित की गई थी जिसकी अध्यक्षता नृपेंद्र मिश्र ने की। बैठक के बाद उन्होंने गर्भगृह व मंदिर परिसर का दौरा किया। उनके साथ भारत सरकार की कंपनी एनबीसीसी के पूर्व चेयरमैन व सीएमडी अरूण कुमार मित्तल और निजी क्षेत्र की निर्माण कंपनी लारसन एंड टूब्रो के प्रमुख इंजीनियर दिवाकर त्रिपाठी भी मौजूद थे।

शिलान्यास नहीं, भूमिपूजन होगा
चपंत राय ने कहा कि श्री राममंदिर के निर्माण के लिए 30 साल पहले ही शिलान्यास किया जा चुका है अब भूमिपूजन किया जाएगा। यह काम वृहद रूप से कैसे संपन्न होगा, इसका खाका तैयार किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि मंदिर निर्माण की तिथि व भूमिपूजन का मुहूर्त तकनीकी टीम की रिपोर्ट आने के बाद ही तय हो पाएगा।

श्रद्धालुओं की सुरक्षा होगी प्राथमिकता
उन्होंने कहा कि भूमिपूजन के मौके पर या फिर रामलला के दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा व्यवस्था को पुख्ता करना हमारी प्राथमिकता है। यहां रामनवमी के मौके पर प्रति वर्ष 15-20 लाख लोग आते हैं, वे भगवान के दर्शन और पूजन आसानी से कर सकें, यह हमारा पहला दायित्व है।

राम मंदिर की उम्र कम से कम होगी 500 साल
चंपत राय ने कहा कि चूंकि भव्य मंदिर का निर्माण किया जाना है जिसकी उम्र कम से कम 500 साल तक हो, इसलिए मिट्टी की जांच होनी जरूरी है। यह काम तकनीकी टीम कर रही है। मंदिर कंक्रीट का नहीं बनेगा क्योंकि कंक्रीट की उम्र अधिकतम सौ साल मानी जाती है। जहां तक लोहे की बात है तो उसमें जंग लगने की संभावना अधिक होती है, लिहाजा मंदिर का निर्माण राजस्थान के गुलाबी पत्थरों से किया जाएगा जिसे सैंड स्टोन कहा जाता है। राष्ट्रपति भवन भी इसी पत्थर से निर्मित है।

बालक राम का संवाद है ‘योग वशिष्ठ’
चपंत राय ने कहा कि कुछ लोग कहते हैं कि भगवान राम का संवाद है ‘योग वशिष्ठ’, लेकिन मेरा मानना है कि बालक राम का संवाद हैं योग वशिष्ठ। उन्होंने बताया कि जब भगवान राम छोटे थे। उस समय उनके मन में संसार की दशा देखकर उदासी आ गई। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार सिद्धार्थ नाम के बच्चे को बीमार आदमी, बूढ़ा आदमी देखकर उदासी आ गई थी, वैसे ही बालक राम के मन में उदासी आ गई थी। उन्होंने कहा कि एसे काल खंड में गुरु विश्वामित्र आ गए और बालक राम को अपने साथ ले जाने के लिए मांगने लेंगे। इस पर राजा दशरथ उन्हें राम के उदासी की बात बताते हैं। इस पर विश्वामित्र वशिष्ट जी को बुलाते हैं। उनसे इसका कारण पूछते हैं। बालक राम से मन में क्या सवाल हैं पूछने को कहते हैं। जिसका वशिष्ट जी उत्तर देते हैं। इस प्रकार राम पूछते हैं और योग वशिष्ठ उत्तर देते हैं इसी को योग वशिष्ठ कहते हैं।

समन्वय परिवार ट्रस्ट के मार्गदर्शक महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि महाराज ने इस दौरान मनु और शतरूपा की कथा सुनाई। इसमें उन्होंने कैसे कठिन तपस्या को पूरा करने के बाद पुनर्जन्म में भगवान राम को पुत्र के रूप में प्राप्त किया, यह बताया। अखिलेश्वरानंद महाराज ने योग वशिष्ठ के संदर्भ में कहा कि जब भगवान राम का राज्य अभिषेक होता है। इसके बाद रोज दरबार लगता है। भगवान राजा हैं, उनकी महिमा अपार है लेकिन दरबार में बैठते हैं। वशिष्ठ जी के दरबार में बैठते हैं। जहां वशिष्ट जी कई प्रकार की बातें कर रहे हैं। वेद पुराण का उपदेश करते हैं। राम जी बैठे हैं प्रजा जन के साथ गुरू का आदर कर रहें। गुरु की वाणी का श्रवण कर रहे। वशिष्ठ जी को बड़ा आश्चर्य होता है जब भगवान उनके गुरुकुल में पढ़ने, प्रवचन सुनने के लिए बैठे हैं। इस दौरान भगवान राम ने गुरु वशिष्ठ जी से प्रश्न पूछा। इस पर वशिष्ठ जी ने कहा कि भगवान सारे प्रश्न का उत्तर तो आप है। भगवान राम ने पूछा कि अभी आपने ईश्वर के स्वरूप का वर्णन किया है। भगवान ने कहा कि हमारी स्मृण शक्ति बहुत थोड़ी होती है और इसमें यह बात विस्मरण हो गई तो हम ईश्वर को केसे याद करेंगे। इस पर वशिष्ठ भगवान राम से कहते हैं कि जिस किसी भी प्रकार से किसी भी प्राणी को संतोष देना या हृदय से ईश्वर की स्तुति करेंगे तो ईश्वर आपके मन में उतर जाएंगे। उन्होंने कहा कि योग वशिष्ठ हमें व्यावहारिक दिशा देता है।

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