मुंबई : कभी झुग्गी में रहनेवाली और रेड लाइट में फूल बेचनेवाली जेएनयू की छात्रा सरिता माली की अमेरिका तक छाने की कहानी शानदार है। अपनी इस कहानी का जिक्र खुद सरिता ने अपने फेसबुक पोस्ट के जरिये किया है। स्लम में रहने वाली सरिता ने भी कुछ सपने देखे थे, लेकिन शुरुआत में सब असंभव लग रहा था। लेकिन, कुछ करने की जिद ने आज उसे उस मुकाम पर पहुंचा दिया, जहां वो लोगों के लिए मिसाल बन गई हैं। अब ये बेटी अमेरिका जाएगी और ना केवल अपने परिवार का बल्कि देश का नाम भी रौशन करेगी। 28 साल की सरिता को अमेरिका के दो विश्वविद्यालयों यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया और यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंग्टन ने फेलोशिप ऑफर की है। इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल करने वाली सरिता का जन्म और परवरिश मुंबई के एक स्लम इलाके में ही हुई है। बचपन में उन्होनें मुंबई की रेड लाइट पर फूल बेचे हैं। उन्होंने बताया कि उनका अमेरिका के दो विश्वविद्यालयों में चयन हुआ है। लेकिन, उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया को वरीयता दी है। सरिता ने बताया कि अमेरिका की यूनिवर्सिटी ने उनकी मेरिट और अकादमिक रिकॉर्ड के आधार पर वहां की सबसे प्रतिष्ठित फेलोशिप में से एक ‘चांसलर फेलोशिप’ उन्हें दी है।

सरिता 2014 में जेएनयू हिंदी साहित्य में मास्टर्स करने आई थीं। जेएनयू को लेकर सरिता का कहना है कि यहां के शानदार अकादमिक जगत, शिक्षकों और प्रगतिशील छात्र राजनीति ने मुझे इस देश को सही अर्थो में समझने और मेरे अपने समाज को देखने की नई दृष्टि दी है। जेएनयू से मास्टर्स करने के बाद सरिता ने यहीं से एमफिल की डिग्री ली और फिर पीएचडी जमा करने के बाद उन्हें अमेरिका में दोबारा पीएचडी करने और वहां पढ़ाने का मौका मिला है। उनका कहना है कि पढाई को लेकर हमेशा मेरे भीतर एक जूनून रहा है। 22 साल की उम्र में मैंने शोध की दुनिया में कदम रखा था। खुश हूं कि यह सफर आगे 7 वर्षो के लिए अनवरत जारी रहेगा।

सरिता ने बताया कि उनके पिता चाइल्ड लेबर बनकर मुंबई गए थे। मुंबई में 10 बाई 12 की एक छोटी सी जगह में उनके परिवार के छह लोग रहते थे। सरिता ग्रेजुएशन की पढ़ाई तक यहीं स्लम में ही रहीं। अपने इस मुश्किल भरे सफर और फिर शानदार उपलब्धि के बारे में सरिता ने कहा मुंबई की झोपड़पट्टी, जेएनयू, कैलिफोर्निया, चांसलर फेलोशिप, अमेरिका और हिंदी साहित्य। कुछ सफर के अंत में हम भावुक हो उठते हैं, क्योंकि ये ऐसा सफर है जहां मंजिल की चाह से अधिक उसके साथ की चाह अधिक सुकून देती है। हो सकता है आपको यह कहानी अविश्वसनीय लगे लेकिन यह मेरी कहानी है, मेरी अपनी कहानी। सरिता मूल रूप से उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले से हैं, लेकिन जन्म और परवरिश मुंबई में हुई। सरिता लिखती हैं कि अगर हम नहीं पढ़ेंगे तो हमारा पूरा जीवन खुद को जिंदा रखने के लिए संघर्ष करने और भोजन की व्यवस्था करने में बीत जायेगा। हम इस देश और समाज को कुछ नहीं दे पायेंगे और उनकी तरह अनपढ़ रहकर समाज में अपमानित होते रहेंगे। मैं यह सब नहीं कहना चाहती लेकिन मैं यह भी नहीं चाहती कि सड़क किनारे फूल बेचते किसी बच्चे की उम्मीद टूटे।

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