वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रविवार को जंगमबाड़ी मठ के श्री जगदगुरू विश्वाराध्य शतमानोत्सव एवं वीरशैव महाकुंभ समारोह में शामिल हुए। मठ में प्रधानमंत्री ने बहुप्रतीक्षित धार्मिक पुस्तक श्री सिद्धांत शिखामणि ग्रंथ के 19 भाषाओं में अनुवादित हिन्दी संस्करण तथा इसके मोबाइल ऐप का भी विमोचन किया।

इस मौके पर प्रधानमंत्री ने कन्नड़ भाषा में भाषण की शुरूआत करके कर्नाटक की संत परम्परा को जमकर सराहा। उन्होंने कहा की जंगमवाड़ी मठ भावात्मक और मनोवैज्ञानिक रूप से वंचित साथियों के लिए प्रेरणा का माध्यम है। संस्कृत भाषा और दूसरी भारतीय भाषाओं को ज्ञान का माध्यम बनाते हुए तकनीक का भी समावेश मठ कर रहा है। उन्होंने कहा की भारत के पुरातन ज्ञान और दर्शन के सागर श्री सिद्धांत शिखामणि को 21वीं सदी का रूप देने के लिए मैं विशेष रूप से मठ का अभिनंदन करता हूं। प्रधानमंत्री ने कहा कि भक्ति से मुक्ति का मार्ग दिखाने वाले इस दर्शन को भावी पीढ़ी तक पहुंचना चाहिए। सरकार का भी यही प्रयास है कि संस्कृत सहित सभी भारतीय भाषाओं का विस्तार हो, युवा पीढ़ी को इसका लाभ हो।

राष्ट्र सत्ता से नहीं, संस्कृति और संस्कारों से सृजित
उन्होंने कहा कि भक्ति से मुक्ति का मार्ग दिखाने वाले इस दर्शन को भावी पीढ़ी तक पहुंचना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत में राष्ट्र का ये मतलब कभी नहीं रहा कि किसने कहां जीत हासिल की, किसकी कहां हार हुई। हमारे यहां राष्ट्र सत्ता से नहीं, संस्कृति और संस्कारों से सृजित हुआ है, यहां रहने वालों के सामर्थ्य से बना है। प्रधानमंत्री ने वीर शैव्य परम्परा की जमकर तारीफ के बाद कहा कि वीरशैव परंपरा वो है, जिसमें वीर शब्द को आध्यात्म से परिभाषित किया गया है। जो विरोध की भावना से ऊपर उठ गया है वही वीरशैव है। यही कारण है कि समाज को बैर, विरोध और विकारों से बाहर निकालने के लिए वीरशैव परंपरा का सदैव आग्रह रहा है।

स्वच्छता अभियान में संतों और विद्यालयों की महत्वपूर्ण भूमिका
प्रधानमंत्री ने राष्ट्र निर्माण में संतों की भूमिका का सराहना कर कहा कि पिछले पांच सालों में स्वच्छता अभियान में संतों और विद्यालयों की महत्वपूण भूमिका रही है। प्रधानमंत्री ने कहा कि जिस प्रकार काशी और देश के युवाओं ने स्वच्छ भारत अभियान को देश के कोने-कोने में पहुंचाया है, वैसे ही और संकल्पों को भी हमें देशभर में पहुंचाना है।

स्वदेशी सामानों के खरीदने का आह्वान
उन्होंने कहा कि मैंने लाल किले से भी आग्रह किया था कि हमें वो सामान खरीदने की प्राथमिकता देनी चाहिए जो स्थानीय स्तर पर बना हो। प्रधानमंत्री ने लोगों से स्वदेश में निर्मित सामानों के खरीदने का आह्वान कर जल संरक्षण पर खासा जोर दिया।

जनभागीदारी से 06 सालों में गंगा स्वच्छ हुई
प्रधानमंत्री ने गंगा के निर्मलीकरण अभियान का जिक्र कर कहा कि पिछले 06 सालों में जनभागीदारी से गंगा स्वच्छ हुई है। गंगा के किनारे रहने वाले लोगों ने अपने दायित्व और कर्तव्य को समझा है। गंगा के स्वच्छता के लिए 7000 करोड़ रूपये से काम हो चुका है। 21000 करोड़ से कार्य प्रगति पर है।

राम मंदिर की 67 एकड़ भूमि ट्रस्ट को मिलेगी
प्रधानमंत्री ने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मामला दशकों से उलझा था लेकिन अब राम मंदिर निर्माण का मार्ग साफ हो गया है। राम मंदिर निर्माण के लिए सरकार ने स्वायत्त ट्रस्‍ट की घोषणा की है जो अयोध्‍या में भव्‍य मंदिर का निर्णय लेगा। संतों के आशीर्वाद से यह शुरू हुआ और उन्हीं के आशीर्वाद से पूरा होगा। राम मंदिर के लिए 67 एकड़ भ‍ूमि ट्रस्‍ट को मिलेगी। इतनी जमीन रही तो मंदिर की भव्‍यता और बढ़ेगी।

राम मंदिर और काशी विश्‍वनाथ धाम का कालखंड ऐति‍हासिक
प्रधानमंत्री ने कहा कि राम मंदिर और काशी विश्‍वनाथ धाम का कालखंड ऐति‍हासिक है। इसके बाद मेरे काशी में और दो कार्यक्रम हैं। यह सभी काशी और नए भारत को मजबूत करेंगे। पीएम ने कहा कि युवा संकल्‍प लें कि नए भारत, एक भारत, श्रेष्ठ भारत के निर्माण में खुद जिम्‍मेदारी लेंगे। राष्‍ट्रहित में बेहतर और क‍र्तव्‍य के लिए जिम्‍मेदारी निभाएंगे।

सभा में कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा, प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी सम्बोधित किया। आशीर्वचन पीठाधीश्वर जगद्गुरु डॉ. चंद्रशेखर शिवाचार्य महास्वामी ने दिया।

इसके पहले प्रधानमंत्री मोदी दुल्हन की तरह सजे मठ में पहुंचे तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा, राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने उनका स्वागत किया। मठ में प्रवेश करने पर दर्जनों वेदपाठी बटुकों ने प्राचीन लोकवाद्यों के मंगल ध्वनि के बीच ऋग्वेद, साम वेद, अथर्व वेद और यजुर्वेद के ऋचाओं में मंगलाचरण कर प्रधानमंत्री का आध्यात्मिक माहौल में पुष्पवर्षा के बीच गर्मजोशी से स्वागत किया। खुद मठ के पीठाधीश्वर जगद्गुरु डॉ. चंद्रशेखर शिवाचार्य महास्वामी ने प्रधानमंत्री की अगवानी की। इसके बाद पीठाधीश्वर प्रधानमंत्री को लेकर प्रथम मल्लिकार्जुन बाबा की संजीवनी समाधि पर ले गये। यहां पीठाधीश्वर ने अन्य संतों के साथ प्रधानमंत्री को दर्शन पूजन कराया। मठ के परमाधिपति चंद्रमौलीश्वर महादेव का दर्शन पूजन कर प्रधानमंत्री ने मठ में रखे तामपत्रों, दस्तावेजों, मूर्तियों, 1400 वर्ष में जारी फरमानों के संग्रह का अवलोकन किया।

मठ के मुख्य दरबार हॉल में प्रधानमंत्री ने जंगमबाड़ी मठ से जुड़े रम्भापुरी मठ के जगद्गुरु वीरसोमेश्वर शिवाचार्य महास्वामी, उज्जैनी पीठ के जगद्गुरु सिद्धलिंराज शिवाचार्य, श्रीशैलम् पीठ के जगद्गुरु डॉ. चन्नासिद्धारामा सहित अन्य संतों का आर्शिवाद लिया। मठ के पीठाधीश्वर ने प्रधानमंत्री को खास रजत स्मृति चिह्न, रूद्राक्ष की माला, अंगवस्त्रम, श्री सिद्धांतशिखामणि ग्रंथ भेंट कर स्वस्थ, दीर्घायु होने तथा राष्ट्र सेवा में सतत समर्पित रहने का आशीर्वाद दिया। इस दौरान प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा, रेलराज्य मंत्री सुरेश सी अंगड़ी, कर्नाटक के सांसद जयसिद्धेश्वर शिवाचार्य, प्रदेश के नगर विकास और प्रभारी मंत्री आशुतोष टंडन, पर्यटन राज्य मंत्री डॉ. नीलकंठ तिवारी, राज्यमंत्री रविन्द्र जायसवाल आदि भी मौजूद रहे।

श्रीसिद्धान्त चिंतामणि का क्षेत्रीय भाषाओं में है अनुवाद
पीएम नरेंद्र मोदी ने जंगमबाड़ी मठ में जिस श्रीसिद्धान्त चिंतामणि ग्रन्थ के हिंदी संस्करण का लोकार्पण किया। उसे मठ के जगतगुरु रेणुकाचार्य ने अगस्त्य ऋषि को उपदेशित किया था। 8वीं शताब्दी में शिवाचार्य स्वामी ने इसे लिपिबद्ध किया था। पुस्तक में अनुष्टुप छंद में 1400 श्लोक है। मूलरूप में संस्कृत में है। इसका अनुवाद 19 भारतीय भाषाओं हिंदी, भोजपुरी, अवधी, मैथिली, ब्रज, गुजराती, उड़िया, तमिल, तेलुगु, मलयालम मराठी, कन्नड़, रसियन और नेपाली भाषा में है।

जंगमबाड़ी मठ का किम्बहुना वीरशैव सम्प्रदाय के पंचपीठों में खास स्थान
काशी में स्थित जंगमबाड़ी मठ का किम्बहुना वीरशैव सम्प्रदाय के पंचपीठों में खास स्थान है। लगभग तीन हजार वर्ष पुराने मठ में वीरशैव सम्प्रदाय को संरक्षित करने के साथ यहां ज्ञान और परम्परा की धारा भी बहती है। गुरूकुल परम्परा को भी मठ में कायम रखा गया है। मठ में वर्ष 1918 में जगदगुरु विश्वराध्य गुरुकुल की स्थापना वीर शैव धर्म के पांच पीठों के आचार्यों की देख रेख में हुई थी। तब से यहां प्रतिवर्ष वीरशैव महाकुम्भ का आयोजन हो रहा है।

मठ में स्थित ‘ज्ञान मंदिरम’पुस्तकालय में ज्ञान का भंडार है। यहां कर्नाटक, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ के वीरशैव सम्प्रदाय के लोग ज्ञान पिपासा शान्त करने और दर्शन पूजन के लिए आते है। मठ की शाखा नेपाल के भॉतगांव तक फैली है। मठ में शिवलिंग के रूप में पूर्वजों को स्थापित करने की परंपरा भी है। लोग शिवलिंग के रूप में पूर्वजों को स्थापित कर उनकी पूजा करते हैं। महाराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा समेत कई राज्यों में वीर सौर्य सम्प्रदाय के लोग पूर्वजों के मुक्ति के लिए यहां पिंडदान की जगह शिवलिंग स्थापित करते हैं। मठ से जुड़े विनोद राव पाठक ने बताया इस मठ में भगवान विश्वाराध्य जी का ज्ञानपीठ स्थापित है। वीर शैवमत के संस्थापक जगतगुरू पंचाचार्य पृथ्वी पर शिवलिंगों से अवतार लेकर शिवसिद्धांत तथा शिवभक्ति का प्रचार करते हैं। इस मठ से दक्षिण भारतीयों का अधिक जुड़ाव रहा है।

मठ की स्थापना छठवी शताब्दी में हुई। शैव सम्प्रदाय के प्रमुख केंद्र रहे इस मठ में मुगल बादशाह हुमायूं भी रह चुके है। मंदिर के दानपात्र में उल्लेख है बादशाह हुमायूं ने मठ में रह रहे साधुओं के लिए तीन सौ बीघा जमीन दान दी थी । मुगल बादशाह अकबर ने भी 480 बीघा जमीन मठ को दान की थी। मुस्लिम शासक औरंगजेब ने भी मठ के लिए दान दिया था। आज भी औरंगजेब का हस्ताक्षर किया हुआ पत्र मठ में संरक्षित है। मठ ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के स्थापना में भी खास योगदान दिया है। मठ ने विश्वविद्यालय बनाने के लिए महामना पं. मदन मोहन मालवीय को भूमिदान किया था। बीएचयू के गजट में भी इसका वर्णन है।

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