Sunday, 7 July, 2024 • 03:57 am

शुभम श्रीवास्तव, स्वदेश टुडे(डिजिटल मीडिया हेड & एडिटर)

हमारे भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था, लेकिन ऐसा क्या हुआ की सोने की चिड़िया कहे जानें वाले देश को अपनी अर्थव्यवस्था ठीक करने के लिए वर्ल्ड बैंक से ही लोन लेना पड़ रहा है। आप बोलेंगे की अंग्रेजों ने भारत को लूट लिया था जिसके वजह से भारत की सोने की चिड़िया अब एक मामूली चिड़िया रह गई। लेकिन क्या आपको पता है कि अंग्रेजों ने भारत से कितने रूपये लूटे। आकड़ें देखकर आपको हैरानी होगी और आप शायद यकीन भी ना करें की हमारे भारत में वाकई में इतनी संपत्ति थी।

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अंग्रेजों ने लगभग 200 सालों तक भारत में राज किया और भारत के साथ- साथ भारतीयों को भी कष्ट दिए। ब्रिटिश राज में 4 रुपए की कीमत 1 डॉलर थी जो अब 70 पार कर चुकी है।

कई सवालों के जवाब आज हम आपको देंगे की आखिर अंग्रेजों ने कितना पैसा लूटा  कैसे लूटा?

जानी मानी अर्थशास्त्री उत्सा पटनायक ने एक रिसर्च पेपर लिखा है जिसमें पाया की अंग्रेज 1765 से 1938 के बीच भारत से 45 ट्रिलियन डॉलर (लगभग 3,19,29,75,00,00,00,000.50 रुपए) की संपत्ती लूटकर ले गए।

 

कैसे इतने रूपये गए देश के बाहर?

  • उस समय ब्रिटेन भारत से कई तरह का सामान खरीदा करता था इसमें कपड़े और चावल प्रमुख थे।
  • भारतीय विक्रेताओं से अंग्रेज अन्य देशों की चांदी में व्यापार करते थे। लेकिन 1765 के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के विकास के साथ ही भारतीय व्यापार पर उनका राज हो गया।
  • ईस्ट इंडिया कंपनी ने व्यापारियों और आम नागरिकों पर कई तरह के कर (टैक्स) लगाए जिससे  कंपनी की आमदनी बढ़ गई।
  • गौर करने वाली बात यह है कि आमदनी का एक तिहाई हिस्सा कंपनी भारतीयों से सामान खरीदने पर खर्च करती थी। यानी कि भारतीय सामान को विदेशी फ्री में इस्तेमाल करते थे।
  • भारतीयों के लिए इसे समझ पाना मुमकिन नहीं था क्योंकि जो एजेंट उनसे टैक्स लेने आता था वो कुछ खरीदता नहीं था और जो एजेंट सामान खरीदने आता था वो टैक्स नहीं लेता था।

इस चीज को गौर से समझिए

भारत से जो कोई भी विदेशी ट्रेड करना चाहता था उसे खास काउंसिल बिल का इस्तेमाल करना होता था। जो सिर्फ ब्रिटिश क्राउन द्वारा ही ली जा सकती थी जिसे लेने का एक मात्र तरीका था लंदन में सोने या चांदी द्वारा बिल लिए जाएं।

बिल्स को कैश करवाने व्यापारियों को रुपयों में पेमेंट मिलती थी,ये वो पेमेंट होती थी जो उन्हीं के द्वारा दिए गए टैक्स द्वारा इकट्ठा की गई होती थी।

यानी व्यापारियों का पैसा ही उन्हें वापस दिया जाता था। इसका मतलब बिना खर्च अंग्रेजी सरकार के पास सोना-चांदी आ जाता। इस तरह लंदन में सारा सोना-चांदी इकट्ठा हो गया जो सीधे भारतीय व्यापारियों के पास आना चाहिए था। इस कारण भारत के राजसी खजाने और वित्तीय कागजों में देश कंगाल हो गया।

ब्रिटेन को भारत से माफी मांगनी चाहिए लेकिन इसका उल्टा वहां के लोग तो ये मानते हैं कि ब्रिटिश न होते तो भारत का विकास ही नहीं हो पाता।

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