खूंटी। प्रकाश पर्व दीपावली के मौके पर दूसरों के घरों को रौशन करने और लक्ष्मी गणेश की प्रतिमा बनाने वाले मिट्टी के पारपंरिक कलाकारों के घर ही अंधेरा है। धन की देवी लक्ष्मी भी उनके दूर हैं। पूरे क्षेत्र में दीपावली की तैयारियां अंतिम चरण में हैं, जहां लोग घरों का रंग-रोगन करा रहे हैं और संपन्न लोग परिधान, पटाखे और पकवान के लिए खरीदारी कर रहे हैं, वहीं इस समाज के कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो दीपावली में सर्वाधिक महत्वपूर्ण माने जानेवाले मिट्टी के दीये, खिलौने और भगवान गणेश और लक्ष्मी की छोटी-बड़ी मूर्तियां बनाने में महीनों से लगे हुए हैं, लेकिन सदियों की परंपरा और वंशानुगत पेशे को बाजार और आधुनिकता ने लील लिया है। मिट्टी के दीपक का स्थान बिजली की जगमगाती झालरों ने ले लिया है।
मूर्तियां बनाने वाले कुम्हारों के लिए दीपावली मात्र पर्व न होकर जीवन यापन का एक बड़ा जरिया भी है। इसे विडंबना नहीं तो और क्या कहा जाए कि दीपावली के दिन लोग घरों में जिस लक्ष्मी-गणेश की पूजा, लक्ष्मी के आगमन के लिए करते हैं, उसे गढ़ने वालों कुम्हारों से ही माता लक्ष्मी कोसों दूर रहती है। मिट्टी और लकड़ी की अनुपलब्धता की मार दीपावली में घर-घर प्रकाश से जगमगा देनेवाले दीप, कुलिया बनाने वाले कुम्भकारों पर भी भारी पड़ी है।
पूजा आदि के आयोजनों पर प्रसाद वितरण के लिए इस्तेमाल होने वाली मिट्टी की प्याली, कुल्हड़, मिट्टी के खिलौने और सामाजिक समारोहों में पानी के लिए मिट्टी के ग्लास आदि भी अब प्रचलन में नहीं रह गए हैं। इनकी जगह अब प्लास्टिक ने ले ली है। वहीं पारंपरिक दीप की जगह मोमबत्ती और बिजली के फानूस ने ले ली है। इस कारण भी कुंभकारों की जिंदगी में दिन प्रतिदिन अंधेरा फैलता जा रहा है और वे अपनी पुस्तैनी इस कला और व्यवसाय से विमुख हो रहे हैं।
हर सरकार करती है उपेक्षा
कुम्हारों की माली हालत के संबंध में इस पुश्तैनी पेशे को छोड़ चुके तोरपा के रामशीष महतो कहते हैं कि जब तक मिट्टी की इस पारंपतिक कला को सरकारी संरक्षण नहीं मिलता और उन्हें आर्थिक सहायता नहीं मिलती, तब तक इसे को बचाना असंभव है। वह कहते हैं कि मेहनत और लागत के अनुरूप कमाई नहीं होने के कारण कुंभकार अपने खनदानी पेशे से विमुख होते जा रह हैं। तोरपा में ही होटल का व्यवसाय करने वाले कुम्हार रवि महतो कहते हैं कि मिट्टी के दीपों और खिलौनों पर भी आधुनिकता का प्रभाव पड़ा है। इसके कारण अब मिट्टी का व्यवसाय लगभग ठप पड़ गया है। अब शहर में प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) से बनी मूर्तियों की मांग काफी बढ़ गई है। इसकी एक वजह इसकी कम कीमत और बेहतर लुक को माना जाता है। वहीं रामधन महतो कहते हैं कि इन दिनों मिट्टी से लेकर जलावन तक की कीमत काफी बढ़ी हुई है। प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियों की लागत थोड़ी कम पड़ती है और देखने में अधिक आकर्षक होने के कारण ग्राहक उस ओर आकर्षित हो जाते हैं।