रांची। महात्मा गाँधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, मोतीहारी के संस्कृत विभागाध्यक्ष एवं परिसर निदेशक प्रो० प्रसून दत्त सिंह ने शनिवार को कहा कि प्रकृति का प्रत्येक घटक गुरुरूप है और उनसे हमें जीवन जीने की कला सीखनी चाहिए। डा० सिंह संस्कृत साहित्य परिषद्, डा० श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, राँची द्वारा आयोजित गुरु पूर्णिमा-सह-व्यास जयन्ती के अवसर पर गुगल मीट के माध्यम से विद्यार्थियों को सम्बोधित कर रहे थे। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो० सिंह ने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य चरित्र-निर्माण होना चाहिए। शिष्य का दायित्व है कि वह गुरु की आज्ञा का पालन करे। उन्होंने कहा कि समाज और राष्ट्र के निर्माण में गुरु और शिष्य कि महती भूमिका है, इसलिए उन्हें अपने दायित्व का निर्वहन सम्यक् रूप से करना चाहिए।
कार्यक्रम के सारस्वत अतिथि राजकीय संस्कृत महाविद्यालय राँची के वरीय शिक्षक डॉ. शैलेश कुमार मिश्र ने कहा गुरु ज्ञान का परमोज्ज्वल प्रकाश फैलाता है जिससे समस्त संसार आलोककित होता है। एक सच्चा गुरु जीवन की बाधाओं को दूर करता है और जीवन जीने कि कला सीखाता है। उन्होंने कहा कि गुरु के वचनों को प्रमाणरूप मानते हुए सतत आत्मनिरीक्षण में लगा रहना चाहिए। महर्षि वेद व्यास के योगदान की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की साधना वेदव्यास के बताए गये मार्ग पर ही चलकर हो सकती है। उन्होंने बताया कि अर्थ और काम की साधना धर्मपूर्वक करने की शिक्षा महर्षि वेदव्यास ने दी है। महर्षि वेदव्यास भारतीय संस्कृति के प्रवक्ता हैं। उनके द्वारा रचित महाभारत और पुराण भारतीय संस्कृति के धरोहर हैं।
विभागाध्यक्ष डॉ. दिलोत्तम कुमार ने कहा कि संस्कृत से ही संस्कृति की कल्पना की जा सकती है। डॉ. कुमार ने संस्कृत वाङ्मय के विकास में महर्षि वेदव्यास के योगदान के पर प्रकाश डाला । उन्होंने कहा कि गुरु शिष्य के आत्मा का संस्कार करता है । शिष्य के व्यक्तित्व के विकास में गुरु की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अनुशासित जीवन जीने की प्रेरणा गुरु ही देते हैं।
विभागीय शिक्षक डॉ. धनंजय वासुदेव द्विवेदी ने इस अवसर गुरु पूर्णिमा-सह-व्यास जयन्ती के आयोजन के विविध आयामों पर प्रकाश डाला। डॉ. द्विवेदी ने कहा यह दिवस जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गुरुओं के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का है। उन्होंने कहा कि धर्म को जानने वाले, धर्मानुकूल आचरण करने वाले, धर्मपरायण और सब शास्त्रों में से तत्त्वों का आदेश करने वाले को गुरु कहा जाता है। भारतीय परम्परा में गुरु का स्थान सर्वोपरि है। वस्तुतः जीवन चक्र सम्यक् रीति से सतत चलता रहे, इसीलिए गुरु की आवश्यकता होती है। शास्त्रज्ञान और व्यवहार ज्ञान देने वाले भी गुरु ही होते हैं। डॉ. द्विवेदी ने इस अवसर पर महर्षि वेद व्यास के योगदान की भी चर्चा की।
कार्यक्रम का आरम्भ विभागीय विद्यार्थी सीतेश पाण्डेय द्वारा प्रस्तुत मंगलाचरण से हुआ। सरस्वतीवन्दना श्वेता पाठक के द्वारा प्रस्तुत किया गया। अतिथियों का स्वागत शुभ्रांशु मिश्र ने किया। नितिन कुमार डांगी, आर्या महतो, अशोक महतो, मेनका कुमारी, अर्चना कुमारी, शोभा मुण्डा एवं ज्योति कुमारी ने नानाविध कार्यक्रमों से दर्शकों को मन्त्रमुग्ध किया। कार्यक्रम का संचालन आशीष महतो ने किया।