रांची। झारखंड में पहली बार झारखंड जनमुक्ति परिषद (जेजेएमपी) के साथ मुठभेड़ में कई जवान शहीद हुआ है। इस मुठभेड़ के बाद यह सवाल उठने लगा है कि जेजेएमपी सुप्रीमो पप्पू लोहरा आखिर कौन है और सुरक्षाबलों या पुलिस के साथ उसका पूर्व में क्या कोई कनेक्शन रहा है। माना जा रहा है कि नक्सलियों से यारी अब सुरक्षाबलों पर भारी पड़ रही है।
उल्लेखनीय है कि लातेहार जिले के सलैया जंगल में मंगलवार को जेजेएमपी के सुप्रीमो पप्पू लोहरा के दस्ते की मौजूदगी की सूचना के बाद ऑपरेशन शुरू हुआ था। इस दौरान सुरक्षाबलों और जेजेएमपी के साथ जमकर मुठभेड़ हुई, जिसमें डिप्टी कमांडेंट राजेश कुमार शहीद हो गए। राजेश कुमार झारखंड जगुआर के एसाल्ट ग्रुप 35 के कंपनी कमांडेंट थे। इससे पहले लोहरदगा जिले में 18 जुलाई, 2019 को मुठभेड़ हुई थी, जिसमें जेजेएमपी के तीन उग्रवादी मारे गए थे।
जिसे पाला वही दे रहा चुनौती
अब सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि पप्पू लोहरा कौन है। क्या उसे सुरक्षाबलों की ओर से ट्रेनिंग दी जाती थी। सीआरपीएफ के साथ पप्पू लोहरा की मौजूद तस्वीर कम से कम तो यही बयां कर रही है कि पूर्व में पुलिस और सुरक्षा बलों के साथ उसका याराना संबंध रहा। पप्पू ने 17 नवंबर, 2019 को पत्रकारों को बताया था कि सुरक्षा बलों के द्वारा उसका इस्तेमाल किया गया। उसे कभी पुलिस का भी संरक्षण प्राप्त था। पप्पू ने दावा किया था कि उसकी वजह से लातेहार-लोहरदगा सीमा में माओवादियों का प्रभाव कम हुआ।
झारखंड पुलिस ने पप्पू लोहरा पर 10 लाख और उसके साथी सुशील उरांव पर पांच लाख का इनाम घोषित किया गया है। तीन साल पहले तक पुलिस के अधिकारी और जवान जिस जेजेएमपी के उग्रवादी के साथ जंगल में घूमते थे अब उसी उग्रवादी के साथ पुलिस को लोहा लेना पड़ रहा है। जंगल से 16 दिसंबर, 2018 को एक फोटो वायरल हुआ था। जंगल में सीआरपीएफ के अधिकारी और जवान थे। उनके साथ जेजेएमपी का पप्पू लोहरा और सुशील उरांव भी था। उस वक्त फोटो सामने आने के बाद पुलिस मुख्यालय और सीआरपीएफ के अधिकारियों ने कहा था कि इस तस्वीर की जांच होगी लेकिन उस तस्वीर की जांच की रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक नहीं हो पाई।
पप्पू लोहरा ने दिया था बकोरिया कांड को अंजाम
दो जनवरी, 2018 को जेजेएमपी के उग्रवादी गोपाल सिंह का एक वीडियो वायरल हुआ था। वीडियो उग्रवादी संगठन टीपीसी के जन अदालत का था। जेजेएमपी के उग्रवादी गोपाल सिंह को पकड़कर टीपीसी के उग्रवादियों ने जन अदालत लगायी थी। जन अदालत में गोपाल सिंह ने बकोरिया कांड की पूरी कहानी को स्वीकार किया था। उसने कबूल किया था कि नक्सली अनुराग और 11 निर्दोष लोगों की हत्या जेजेएमपी के उग्रवादी पप्पु लोहरा ने की।
बाद में पुलिस पहुंची और मुठभेड़ की जिम्मेदारी ले ली। टीपीसी उग्रवादियों की जन अदालत से छूटने के बाद लातेहार पुलिस ने गोपाल सिंह को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था लेकिन सीआईडी ने बकोरिया कांड की जांच में पुलिस के साथ मुठभेड़ में नक्सली अनुराग सहित 12 लोगों के मारे जाने की घटना को सही करार दिया है। हाईकोर्ट के आदेश पर अब इस मामले की जांच सीबीआई कर रही है।