हजारीबाग। अब छत पर किचन गार्डनिंग की तरह लोग मछली पालन भी कर रहे हैं। इसकी शुरुआत हजारीबाग में विस्मय अलंकार ने की है। उन्होंने पहली बार छत पर मछली पालन का काम शुरू किया है। छत पर बनाए गए विशेष तरह के टैंक में मछली के ग्रोथ को देखते हुए उनके हौसले को पंख लगा है, और अब यही प्रक्रिया वे खाली पड़ी जमीन पर भी अपना रहे हैं। विस्मय अलंकार ने बताया कि एक टैंक को तैयार करने में करीब 40 हजार रुपये का खर्च आता है। एक बार लागत लगने के बाद छह माह में ही मछली की एक फसल में यह लागत वसूल हो जाता है। इसके बाद आप इससे मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं। साल में दो फसल ले सकते हैं और एक टैंक से चार से पांच साल तक मछली की फसल ली जा सकती है। यही कारण है कि अब उन्होंने अपनी योजना में आने वाले समय में ऐसे 15 टैंक तैयार कर मछली उत्पादन करने की बनाई है। उन्होंने कहा कि इस विधि को बायोफ्लॉग विधि कहा जाता है। यह पिछले दो सालों में विश्व में सामने आया है। उनका दावा है कि इस विधि से मछली उत्पादन करने का काम करने वाले बिहार व झारखंड में गिने चुने लोग हैं।

छत पर तो इस विधि से खेती करने वाले विस्मय शायद पहले व्यक्ति पूरे राज्य में है। उन्होंने कहा कि इससे न केवल लोगों को ताजी मछली खाने को मिल सकता है, बल्कि इसका व्यवसाय भी काफी अच्छे तरीके से किया जा सकता है। उनका मानना है कि एक बार व्यवस्था कर लेने के बाद इसमें देखभाल की कम जरूरत पड़ती है और दूसरा व्यवसाय करते हुए भी मछली उत्पादन किया जा सकता है। इस विधि से साल में दो फसल मछली का लिया जा सकता है। हालांकि उन्होंने बताया कि इस विधि को लेकर मत्स्य विभाग के पास बहुत कुछ जानकारी नहीं है। हां ! जिला मत्स्य पदाधिकारी ने मछली जीरा उपलब्ध कराने में सहयोग किया। उन्होंने कहा कि अब यदि किसी को इस विधि से मछली उत्पादन करना है, तो वे तकनीकी सहयोग करने को तैयार हैं।

बायोफ्लॉग से मछली उत्पादन अच्छी विधि: रोशन
जिला मत्स्य पदाधिकारी रोशन कुमार मानते हैं कि कम जगह में बायोफ्लॉग से मछली उत्पादन अच्छी विधि है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भी मछली उत्पादन के लिए बायोफ्लॉग के प्रचार प्रसार के लिए कार्य किया जा रहा है। निश्चित रूप से यह विधि लोगों की आय को बढ़ाने वाला साबित होगा। उन्होंने यह भी बताया कि इसके तहत 25 व 60 टैंक के लिए योजना विभाग में उपलब्ध है।

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