रांची। झारखंड में पारा शिक्षकों की अस्मिता खतरे में पड़ गई है। 18वर्षों के लम्बे संघर्ष के परिणाम स्वरूप राज्य के 65000 पारा शिक्षकों को तानाशाही , जुल्म और शोषण का दंश झेलते हुए अपने सुनहरे भविष्य को बर्बादी के प्लेटफॉर्म पर लाकर खड़ा कर दिया।

समृद्धशाली राज्य एवं प्राकृतिक खनिज संपदाओं से परिपूर्ण रहने के बावजूद झारखंड के युवाओं व शिक्षा जगत को निखारने वाले पारा शिक्षकों को सम्मानजनक जीवन में को तरसना पड़ता है।

बिहार मॉडल की प्रस्तावित सेवा शर्त नियमावली का ख्वाब दिखाकर पारा शिक्षकों को वेतनमान से दरकिनार करते हुए मानदेय वृद्धि की सिफारिश करना झारखंड सरकार की निरंकुशता एवं अदूरदर्शिता का परिचायक है।

आकलन परीक्षा देने के बाद 10%का मानदेय वृद्धि कहीं से भी उचित नहीं है बगैर सेवा शर्त नियमावली का मानदेय वृद्धि कभी हुआ है या नहीं 1000 से आज 15000 तक की वृद्धि हुई है इसलिए इस भीषण महंगाई में किसी भी विभाग के कर्मियों का मानदेय में वृद्धि तो अनिवार्य है तो फिर पारा शिक्षकों का मानदेय वृद्धि करना अपराध है क्या?

टेट पास पारा शिक्षकों का मानदेय में वृद्धि 10000 हो तथा प्रशिक्षित पारा शिक्षकों का मानदेय में वृद्धि 8000 होना चाहिए साथ ही प्रत्येक वर्ष 10%का वार्षिक वृद्धि हो और टेट वालों का सीधे समायोजन हो एवं प्रशिक्षित पारा शिक्षकों से आकलन परीक्षा लेकर उन्हें भी समायोजित करते हुए वेतनमान का लाभ दिया जाय। वरना केवल मानदेय वृद्धि से लोकप्रियता का ताज नहीं मिल सकता वेतनमान के लिए संघर्ष जारी रहेगा।बि

हार मॉडल की प्रस्तावित वेतनमान और सेवा शर्त नियमावली पर सहमति मिल जाने के उपरांत पारा शिक्षकों के साथ नाइंसाफी व धोखाधड़ी करना काफी निंदनीय एवं दुर्भाग्यपूर्ण कदम है।

अगर सरकार में दम था तो क्यों नहीं अब तक टेट परीक्षा का आयोजन हुआ पारा शिक्षक टेट हो चाहे आकलन हो सभी परीक्षा देने को तैयार हैं सरकार लेने को तैयार रहें और टेट परीक्षा का धमकी दे कर पारा शिक्षकों को बरगलाने का काम मत करे।

माननीय मंत्री जगरनाथ महतों कहते हैं कि हमको जो बन पाया हमने कर दिया अब पारा शिक्षक अपना निर्णय लें क्या करना है।

मंत्री जी के लिए पारा शिक्षकों का हवन यज्ञ सभी निरर्थक साबित हुआ “टाईगर* की उपाधि प्राप्त मंत्री जी का यह छलावा बयान शोभा नहीं देता।

यह बेवकूफ बनाने वाली नियमावली हमें कतई मंजूर नहीं अगर सरकार को पारा शिक्षकों पर तनिक भी दर्द है तो अविलंब पारा शिक्षकों के कल्याण हेतु बिहार मॉडल की प्रस्तावित विधेयक को पारित किया जाना चाहिए।

माननीय मंत्री जी ने पारा शिक्षक संघ के प्रतिनिधियों से स्पष्ट रूप से कहा कि आपलोग कोई एक राज्य का नाम बताएं कि किस राज्य की नियमावली पसंद है हमारे संघ के प्रतिनिधियों ने कहा हमें बिहार मॉडल चाहिए फिर आज क्यों वादे से मुकर गए हुबहू बिहार मॉडल लागू किया जाय वरना पारा शिक्षकों का विरोध झेलने को तैयार रहें झारखंड सरकार।

मार्च 2022 में नई शिक्षा नीति लागू किए जाने से पारा शिक्षकों का जीवन अधर में लटक जायगा फिर पूछने वाला कोई फरिश्ता पैदा नहीं ले सकता है।

सरकार पारा शिक्षक बहाली में आरक्षण रोस्टर का पालन नहीं किए जाने का हवाला देकर पारा शिक्षकों के वेतनमान पर पर्दा डालने में कामयाबी हासिल करना बहादुरी नहीं है यह गलती हमारी नहीं सरकार की है।

तानाशाही और दमनकारी नीतियों वाली सरकार को लोकतंत्र के सिंहासन से विमुख होना पड़ा, किसान महा आंदोलन के सामने सरकार को घुटने टेकनी पड़ी तो सूबे के 65000 पारा शिक्षकों का आंदोलन इतना खस्ता नहीं जो सरकार हमें वेतनमान देने से इंकार कर सकती है केवल एकता को विखंडित करने का फायदा सरकार उठा रही है।

बड़ी आशा और विश्वास के साथ झारखन्ड के मूलवासी गरीब के बेटे को लोकतन्त्र के सिंहासन पर विराजमान करने में अपनी अहम योगदान पारा शिक्षकों ने अर्पित किया था।

आज वह सपना चकनाचूर हो गया मित्रों उन शहीदों के अरमानों को और सपनों का झारखंड बनाने में अड़चन डालने वाली स्टाइलिश शक्तियों एवं वादा खिलाफी सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद करने की आवश्यकता है।

उक्त बातें सुखदेव जी ने पारा शिक्षकों के लिए कहीं।

वेतनमान से दरकिनार किसी भी परिस्थिति में स्वीकार नहीं।

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