रांची/कोलकाता। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि वन (सरंक्षण) नियम, 2022 में जिस प्रकार से वन भूमि अपयोजन में ग्राम सभा के अधिकार को समाप्त किया गया है, उससे पूरे देश के करीब 20 करोड़ आदिवासी एवं वनों में पीढ़ियों से निवास करने वाले लोगों के अधिकारों का घोर अतिक्रमण हुआ है। उनके अधिकारों की रक्षा के लिए इसे वनाधिकार अधिनियम 2006 के अनुरूप संशोधित किया जाए।

ये बातें मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने कही। मुख्यमंत्री शनिवार को कोलकाता में आयोजित पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक में बोल रहे थे। मुख्यमंत्री ने कहा कि पांच हेक्टेयर तक की वन भूमि के अपयोजन के लिए राज्य सरकार के द्वारा स्वीकृत किये जाने के पूर्व के प्रावधान को बहाल किया जाए।

मुख्यमंत्री ने कई महत्वपूर्ण बातें कही

-झारखंड राज्य का विभिन्न कोयला कंपनियों जैसे सीसीएल, बीसीसीएल, ईसीएल पर कुल एक लाख छत्तीस हजार करोड़ बकाया राशि का शीघ्र भुगतान कराया जाए।

-बंद खदानों का विधिवत माइंस क्लोजर कराया जाए, ताकि पर्यावरण की सुरक्षा हो सके एवं अवैध खनन पर भी रोक लग सके।

-साहेबगंज को मल्टी मॉडल टर्मीनल के रूप में विकसित किया जा रहा है एवं भविष्य में यह पूर्वोत्तर राज्यों के लिए गेटवे बनेगा। इसलिए यहां पर एयरपोर्ट का निर्माण कराया जाए।

-रेलवे को सर्वाधिक आय झारखंड राज्य से प्राप्त होता है लेकिन झारखंड में रेलवे का एक भी जोनल मुख्यालय नहीं है। झारखंड में रेलवे का जोनल मुख्यालय स्थापित करने का निर्देश दिया जाए।

-केन्द्र प्रायोजित सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में विगत दस वर्षों से भारत सरकार द्वारा कोई बढ़ोत्तरी नहीं की गई है। महंगाई को देखते हुए इस राशि में पर्याप्त बढ़ोत्तरी की आवश्यकता है।

-प्रधानमंत्री आवास योजना में झारखंड के लगभग आठ लाख पैंतीस हजार परिवार इसके लाभ से अभी भी वंचित हैं। इन सभी को आवास स्वीकृत करने का निर्देश ग्रामीण विकास मंत्रालय को दिया जाए।

-झारखंड जैसे उग्रवाद प्रभावित एवं गरीब राज्य में सीएपीएफ (केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल) की प्रतिनियुक्ति के लिए केन्द्र सरकार के द्वारा राज्य सरकार से राशि के भुगतान की मांग नहीं की जानी चाहिए।

-जीएसटी कंपनसेशन की अवधि को अगले पांच वर्षों तक विस्तारित किया जाए अन्यथा झारखंड को प्रत्येक वर्ष लगभग पांच हजार करोड़ रुपये का नुकसान होने के संभावना है।

-भारत का इतिहास आदिवासियों के बलिदान से भरा पड़ा है परंतु इनकी वीरता को वह पहचान नहीं मिल पाई, जिसके वह हकदार हैं। इसलिए सेना में आदिवासी रेजिमेंट के गठन का निर्देश रक्षा मंत्रालय को दिया जाए।

 

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