खूंटी। एक ओर जहां हॉकी में 41 साल का सूखा समाप्त कर ओलंपिक पदक के साथ खिलाड़ियों के स्वदेश लौटने पर पूरे देश में जश्न का माहौल है और हर ओर विश्व आदिवासी दिवस मना रहा है। वहीं युद्ध भूमि और खेल के मैदान में प्रतिभा दिखाने वाले आदिवासी समाज का एक अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी गोपाल भेंगरा दुनिया को अलविदा कह गये। सोमवार को रांची के गुरुनानक अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। सोमवार को ही उनके पैतृक गांव तोरपा प्रखंड के उयुर में ईसाई रीति रिवाज के अनुसार उनका अंतिम संस्कार किया गया। उनके निधन की खबर मिलते ही लोगों का हुजूम उनके घर की ओर उमड़ पड़ा। झामुमो के जिलाध्यक्ष जुबैर अहमद, पूर्व विधानसभा प्रत्याशी सुदीप गुड़िया, जिला उपाध्यक्ष मगन मंजीत तिड़ू सहित कई नेता गोपाल भेंगरा के घर पहुंचे और उन्हें श्रद्धांजलि दी। जुबैर अहमद ने कहा कि सरकार की ओर से गोपाल के परिवार वालों को हर संभव सहायता दिलायी जायेगी।
अस्पताल का बिल भरने को नही थे पैसे

गुरुनानक अस्पताल में गोपाल भेंगरा के निधन के बाद अस्पताल का बिल भरने के पैसे उनके पास नहीं थे। गोपाल का बेटा अर्जुन भेंगरा बताता है कि वह 40 हजार रुपये लेकर अस्पताल गया था। अस्पताल ने 70 हजार रुपये का बिल थमा दिया। बाद में मामले की जानकारी समाजसेवी और एसजीवीएस अस्पताल के निदेशक डॉ निर्मल सिंह को मिली, तो उन्होंने इसकी जानकारी पद्मभूषण से सम्मानित लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष कड़िया मुंडा, आर्य समाज के प्रधान राजेंद्र कुमार आर्य और वन बंधु परिषद के रांची चैप्टर के प्रमुख रमेश धरनीधरका को दी। बिल के लिए रकम की व्यवस्था की। डॉ निर्मल सिंह ने पैसे देकर अपनी बेटी और समाजसेवी गायत्री सिंह को पैसे देकर अस्पताल भेजा। उसी बीच विधायक कोचे मुंडा को भी मामले की जानकारी मिली तो उन्होंने अस्पताल प्रबंध से बातकर बिल की रकम को काफी कम करा दिया। गोपाल भेंगरा के निधन की खबर मिलने पर जिला खेल कार्यालय का एक कर्मचारी अस्पताल पहुंचा था।
कभी नहीं मिला वह सम्मान, जिसके हकदार थे गोपाल भेंगरा

पूर्व अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी को कभी भी वह सम्मान नहीं मिला, जिसके हकदार वे थे। जीवित रहते में तो न तो सरकार ने उनकी सुधि ली और न ही हॉकी संघ ने। गुरुनानक अस्पताल में पांच दिनों तक गोपाल भेंगरा जिंदगी और मौत के बीच झुलते रहे, पर किसी ने उनकी सुधि नहीं ली। अस्पताल में इलाजरत गोपाल को देखने तक के लिए हॉकी संघ का कोई पदाधिकारी वहां नहीं पहुंचा। अपनी उपेक्षा से आहत गोपाल भेंगरा को हॉकी के नाम से चिढ़ हो गयी थी।
कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में किया था देश का प्रतिनिधित्व

गोपाल भेंगरा ने 1965 और 1971 के भारत – पाकिस्तान युद्ध में भाग लिया था। उन्होंने 1978 में अर्जेंटाइना में आयोजित विश्व कप हॉकी प्रतियोगिता में देश का प्रतिनिधित्व किया था। उसी वर्ष उन्होंने पाकिस्तान के साथ टेस्ट मैच में भी भाग लिया था। कई वर्षों तक वे पश्चिम बंगाल के कप्तान भी रहे। 1979 में बैंकाक में हुई दक्षिण एशिया हॉकी प्रतियोगिता में भारतीय टीम के हिस्सा थे। 1980 में भारतीय हॉकी टीम के सदस्य के रूप में मास्को गये थे, पर मैदान में उतरने का उन्हें मौका नहीं मिला। चयन मोहन बागान की ओर से भी उन्होंने कई बार खेला है। इतना होने के बाद जब वे सेवानिवृत्त हो गये और उनकी आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गयी, तो किसी ने उनकी सुधि नहीं ली। गोपाल भेंगरा कहते थे सेवानिवृत्ति के बाद उनकी पेंशन इतनी कम थी कि परिवार का गुजारा मुश्किल हो गया। मजबूर होकर उन्होंने पत्थर तोड़ने का काम शुरू किया और उसी मजदूरी से परिवार की गाड़ी खींचने लगे। पत्थर तोड़ने की खबर एक पत्रिका में छपने के बाद महान क्रिेकेटर सुनील गावस्कर की नजर इस पर पड़ी और वे हर महीने उन्हें आर्थिक मदद देने लगे। अभी भी उन्हें 15 हजार रुपये की उन्हें मदद मिलती थी।
सांसद, विधायक सहित कई लोगों ने जतायी संवदेना
गोपाल भेंगरा के निधन पर लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष कड़िया मुंडा, विधायक नीलकंठ सिंह मुंडा, विधायक कोचे मुंडा, समाजसेवी डॉ निर्मल सिंह, आर्य समाज के प्रधान राजेंद्र कुमार आर्य, विधायक प्रतिनिधि काशीनाथ महतो, सांसद प्रतिनिधि मनोज कुमार, भाजपा नेता संजय साहू, अनूप साहू, संतोष जायसवाल, नीरज पाढ़ी, दीपक तिग्गा सहित कई लोगों ने संवेदना व्यक्त की है।

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