रांची। वैलेंटाइन डे पर देश-दुनिया में प्रेम कहानियां को याद किया जा रहा है, झारखंड की फिजाओं में भी कई अमर प्रेम कहानियां वर्षां से गूंज रही है। राज्य के कई ऐसे पर्यटन स्थल है, जिनसे जुड़ी प्रेम कथाओं की चर्चा दूर-दूर तक होती है।

नेतरहाट में अंग्रेस अफसर की बेटी व चरवाहे की अधूरी प्रेम कहानी
झारखंड के चर्चित नेतरहाट में राज्य के विभिन्न हिस्सों से ही दूसरे राज्यों और विदेशों से भी पर्यटक घूमने आते है। इस क्षेत्र में एक चरवाहे की अधूरी प्रेम कथा की चर्चा अब भी होती है। नेतरहाट की इन खूबसूरत नजारों के अलावा यहां एक अंग्रेज ऑफिसर की बेटी और चरवाहे की अधूरी प्रेम कहानी का जीता-जागता उदाहरण है। यहां प्रेम कहानी के प्रतीक अंग्रेज अधिकारी की बेटी और चरवाहे की प्रतिमा भी स्थापित है, जो दोनों की प्रेम कहानी की गवाही देती है। बताते है कि एक अंग्रेज ऑफिसर को नेतरहाट बहुत पंसद था, वह सपरिवार नेतरहाट घूमने आया और वहीं रहने लगा, उसकी एक बेटी थी, उसका नाम मैगनोलिया था। गांव में एक चरवहा था, जो सनसेट प्वाइंट के पास प्रतिदिन आता था और अपने मवेशियों को चराता था। मवेशी चराने के दौरान वह अक्सर सनसेट प्वाइंट पर बैठ जाता था, इसके बाद वह मथुर स्वर में बांसुरी बजाता था,इसकी चर्चा आसपास के कई गांवों में होती थी। बांसुरी की यह मधुर आवाज मैगनोलिया के दिल को छू गया और वह उसकी दिवानी हो गयी, दोनों अक्सर मिलने लगे और एक-दूसरे के करीब आ गये। लेकिन इसकी जानकारी मैगनोलिया के पिता अंग्रेज ऑफिसर को हो गयी, उसने पहले चरवाहा को समझाया और उसे मैगनोलिया से दूर रहने की सलाह दी, परंतु मना करने पर अंग्रेज अधिकारी ने चरवाहा की हत्या करवा दी। इसकी जानकारी मैगनोलिया को हुई, तो वह चरवाहे की मौत से आहत घोड़े के साथ सनसेट प्वाइंट के पास पहुंची और घोड़ी सहित पहाड़ से कूद गयी, जिससे उसकी मौत हो गयी। नेतरहाट में वह पत्थर आज भी मौजूद है,जहां बैठकर चरवाह बांसुरी बजाता था । प्रशासन ने वहां मैगनोलिया और चरवाहे की प्रतिमा लगायी है, इस अधूरी प्रेम कहानी को देखने भारत के कोने-कोने से लोग यहां पहुंचते है।

दशम फॉल में आज भी छैला की मांदर की ताल और बासुंरी की आवाज सुनाई देती है
राजधानी रांची से करीब 40 किमी दूर दशम फॉल के निकट रहने वाले छैला संदू और बिंदी की की अमर प्रेम कहानी बताते क्षेत्र के ग्रामीण आज भी भावुक हो जाते है। वर्षां पुरानी छैला-बिंदी की प्रेम कहानी अद्भूत है। छैला तमाड़ के बागुरा पीड़ी गांव का रहने वाला था और वह पाक सक्रम गांव में रहने वाली बिंदी से प्रेम करता था। छैला को अपनी प्रेमिका से मिलने के लिए दशम फॉल पार करना पड़ता था, वह रोज हाथ में बांसुरी, गले में मांदर और कंधे पर मुर्गा लेकर प्रेमिका से मिलने जाता था। दशम फॉल को वह लटकती लताओं के सहारे पार करता था। गांव के लोगों को जब इसका पता चला, तो दोनों को जुदा योजना बनायी, ग्रामीणों ने उस लता को काट दिया, जिसके कारण जैसे ही छैला फॉल पार करने लगा, लता टूट गयी और वह फॉल में समां गया। गांव के लोगों का कहना है कि आज भी दशम फॉल में छैला संदू की मांदर की ताल और बांसुरी की आवाज सुनाई पड़ती है।

कोयल और कारो की प्रेम कहानी आज भी चर्चित
डालटेनगंज और आसपास के इलाके में कोयल और कारो की प्रेम कहानी आज भी सुनी और सुनायी जा है। तत्कालीन मुंडा राजा की बेटी कोयल अक्सर अपने पिता से छिपकर नाग की तलाश में जाती थी, प्रेम कहानी के अनुसार जंगल में उसे एक दिन नागों का देवता कारो मिलता है और दोनों में प्रेम हो जाता है। जिसके बाद अक्सर दोनों मिलने लगते हैं। मुंडा राजा को जब इसका पता चला, तो उन्होंने कोयल को जंगल से दूर कर दिया, बाद में ईश्वरीय शक्ति से कोयल नदी में बदल जाती है और यह प्रेम कहानी अमर हो जाती है।

बैजल के प्रेम की गूंज इंग्लैंड तक सुनी गयी
गोड्डा जिले के सुंदरपहाड़ी प्रखंड का गांव कल्हाझोर वीर बैजल सोरेन के कारण जाना जाता है। बैजल बाबा सुंदरपहाड़ी में मवेशी चराते हुए बांसुरी बजाते थे। एक बार साहूकार ने गांव के मवेशियों को बंधक बना लिया। बैजल सोरेन ने साहूकार का सिर काट कर पहाड़ पर टांग दिया। अंग्रेजों ने बैजल को गिरफ्तार कर फांसी की सजा सुनायी. फांसी से पहले उसने बांसुरी बजा कर सुनायी, जिसे सुन समय का पता नहीं चला और फांसी का निर्धारित समय बीत गया। बांसुरी सुन अंग्रेज अफसर की बेटी को उससे प्रेम हो गया. बाद में वह बैजल को अपने साथ इंग्लैंड ले गयी।

पंचघाघ जलप्रपात से जुड़ी है पांच बहनों की प्रेम कहानी
खूंटी जिला में अवस्थित पंचघाघ जलप्रपात की भी गिनती  राज्य के एक प्रमुख पर्यटन स्थलों के रूप में होती है। इसके पीछे भी प्रेम कहानी जुड़ी है।  पंचघाघ जलप्रपात से बहनेवाली पांच धाराएं पांच बहनों के अंतिम निश्चय का प्रतीक है,  यह निश्चय साथ जीवन जीने का नहीं, बल्कि एक साथ जान देने का है।  माना जाता है कि खूंटी गांव में पांच बहनें रहती थीं, जिन्हें एक ही पुरुष से प्रेम हो गया था।  सगी बहनों को जब उनके साथ हो रहे विश्वासघात का पता चला, तब तक देर हो चुकी थी। असफल प्रेम के कारण पांचों बहनों ने नदी में कूद कर अपनी जान दे दी। माना जाता है कि इसके बाद से ही जलप्रपात की धारा पांच हिस्सों में बंट गयी  और आज भी ये अलग-अलग हैं।

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