रांची। सुनीता डुंगडुंग ( बदला हुआ नाम) कहती है कि कोई कुछ भी कहें हमें पहाड़ की चोटी पर पहुंचना है और लोगों की बातों में नहीं आना है। लक्ष्य साधकर अपने कार्य में लगना है और उसे हासिल करना है। नाजरा खातून ( बदला हुआ नाम) भी आत्मविश्वास से लबरेज है कहती है जिंदगी में इतना गम मिला, उससे निकलने का रास्ता अब दिख रहा है। लग रहा है मुसीबत से निकाल पाएंगे और अच्छी जिंदगी जी पाएगें। सुनीता और नाजरा जैसी सैकड़ों डायन के रूप में ब्राण्ड की गई महिलाएं अपना आत्मविश्वास प्राप्त करने के लिए हरदिन चुनौतियों ने पंजा लड़ा रहीं हैं। और इस कार्य में मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन का भरपूर सहयोग इन्हें प्राप्त हो रहा है।

मिला निर्देश तो आने लगा बदलाव

मुख्यमंत्री हमेशा से ही डायन पीड़ित महिलाओं के प्रति संवेदनशील रहे हैं ।यही वजह रही कि उन्होंने राज्य को डायन प्रथा से मुक्त करने एवं इस कुप्रथा का दंश झेल रही ग्रामीण महिलाओं को मुख्यधारा से जोड़ने का निदेश संबंधित अधिकारियों को दिया।जिसका प्रतिफल है कि ऐसी महिलाओं को डायन रूपी ब्राण्ड से मुक्त करने का कार्य हो रहा है।

ऐसे हो रहा है कार्य

झारखण्ड के ग्रामीण क्षेत्रों में कई प्रकार की कुप्रथाएं प्रचलित हैं, जो ग्रामीण विकास की राह में अवरोधक का कार्य करती है। सरकार के ग्रामीण विकास विभाग अंतर्गत झारखण्ड स्टेट लाईवलीहुड प्रमोशन सोसाईटी डायन प्रथा को जड़ से खत्म करने के लिए गरिमा परियोजना के तहत पहल किए जा रहे हैं। गरिमा परियोजना डायन प्रथा से प्रभावित क्षेत्रों के आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिए डायन कुप्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों को खत्म कर, एक सभ्य समाज की स्थापना करना और हर महिला को गरिमामय जीवन देने के लक्ष्य को लेकर कार्य कर रही है। परियोजना का लक्ष्य बोकारो, गुमला,खुंटी,लोहरदगा,सिमडेगा,पश्चिम सिंहभूम और लातेहार के 25 चयनित ब्लॉकों के 342 ग्राम पंचायतों के 2068 गांव तक पहुँचना है।

हो रही है पहचान, हो रहा निदान

अब तक राज्य में एक हजार से अधिक डायन प्रथा का दंश झेल रही महिलाओं की पहचान गरिमा परियोजना के तहत की जा चुकी है। उनकी सामाजिक, आर्थिक एवं मनोवैज्ञानिक मदद के लिए कार्य किया जा रहा है ताकि आने वाले दिनों में ये महिलाएं बिना किसी झिझक के अपने जीवन में आगे बढ़ सके। इस कड़ी में पीड़ित महिलाओं को आर्टथेरेपी के माध्यम से मनोवैज्ञानिक चिकित्सा दिया जा रहा है। सिमडेगा जिले में इस पहल को 3 दिवसिय प्रशिक्षण के रुप में शुरू किया गया, जिसमें डायन कुप्रथा की पीड़ित महिलाओं को चित्रकारी के माध्यम से उनकी मानसिक स्थिती को समझने की कोशिश की जा रही है। इस प्रशिक्षण को हर हफ्ते आयोजित कर इनकी स्थिती को समझने का प्रयास ट्रेनर्स के द्वारा किया जाएगा।

आत्मविश्वास लौटने का प्रयास

प्रशिक्षण के दौरान ट्रेनर के द्वारा विभिन्न गतिविधियों द्वारा महिलाओं का आत्मविश्वास वापस लाने का प्रयत्न किया गया। साथ ही रंगों के चयन के माध्यम से यह जानने की कोशिश की गयी कि कौन अभी भी अपने बुरे अनुभव से बाहर नहीं निकाल सकी हैं। इसके बाद, अंतिम दिन महिलाओं से प्रशिक्षण का अनुभव जानकर उन्हें आगे की जिंदगी को चित्र के द्वारा दर्शाने का प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण से ज्यादा से ज्यादा डायन कुप्रथा का दंश झेल रही बहनों से जोड़कर उन्हे मुख्यधारा में शामिल करने का प्रयास किया जा रहा है। गरिमा परियोजना के तहत चयनित 25 प्रखण्डों के विभिन्न इलाकों में पीड़ितों की पहचान की जा रही है एवं उन्हें सामुदायिक संगठनों से जोड़कर आजीविका समेत उनकी हकदारी के लिए सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाया जा रहा है। यह पहल राज्य से डायन कुप्रथा को खत्म करने में मिल का पत्थर साबित होगा।

“गरिमा परियोजना के तहत डायन कुप्रथा से पीड़ित महिलाओं की पहचान कर उन्हे समाज में बराबरी का दर्जा दिलाने के लिए लगातार प्रयास चल रहा है। राज्य के 25 प्रखण्डों को मार्च 2023 तक डायन कुप्रथा मुक्त बनाने का लक्ष्य लेकर लगातार जागरुकता एवं अन्य कार्य किए जा रहे है। इस पहल के जरिए पीड़ित महिलाओं की पहचान कर उनको आजीविका एवं सरकार की अन्य योजनाओं का लाभ सुनिश्चित किया जा रहा है। यह पहल आने वाले दिनों राज्य को डायन प्रथा मुक्त करने में बड़ी भूमिका निभाएगी। “
– नैन्सी सहाय, सीईओ, जेएसएलपीएस*

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