रांची। असमर्थ बच्चों के जीवन में नई खुशियों की किरण लाने का सार्थक प्रयास पश्चिमी सिंहभूम में जिला समाज कल्याण कार्यालय एवं जिला बाल संरक्षण इकाई के तत्वाधान में प्रारंभ किया गया। इसमें उन कड़ियों को जोड़ा गया, जिसकी अवधारणा तो थी। लेकिन क्रियाशीलता शून्य थी। लेकिन अब बाल सुरक्षा को सामाजिक विकास के मुख्य घटक के रूप में तेजी से स्वीकार किया जा रहा।

इसके तहत फोस्टर केयर को क्रियाशील किया गया है। यह एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें एक बच्चा आमतौर पर अस्थाई रूप से किसी और संबंधित परिवार के सदस्यों संग रहता है। इसके लिए बच्चों के विस्तृत परिवार अथवा परिवार के करीबी और दोस्तों को वरीयता दी जाती है, जिसे बच्चा पहचानता है। परंतु ऐसे करीबी परिवार नहीं मिलने पर उस परिवार को वरीयता दी जाती है, जो बच्चों के परिवार के साथ धर्म,समुदाय,भाषा एवं संस्कृति में आपसी संबंध रखता है। जिले में जिला बाल संरक्षण इकाई के माध्यम से संचालित 100 असहाय बच्चों को स्पॉन्सरशिप योजना तथा पांच बच्चे को फोस्टर केयर योजना से लाभान्वित किया गया है।
सुखद परिणाम सामने आया

पश्चिमी सिंहभूम जिला जहां के अधिकतर लोग गांव में निवास करते हैं, वहां ऐसी अवधारणा को लागू करने में भी अनेक कठिनाइयां थीं। इन कठिनाइयों को दूर करने तथा बाल अत्याचार से जुड़े सभी पहलुओं से ग्रामीण जनता को अवगत करवाने के लिए संबंधित विभाग, इकाई तथा गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर जन जागृति कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें सभी के सामंजस्यपूर्ण सहयोग से ग्रामीण लोगों को बाल संरक्षण एवं इसके फायदे तथा बाल संरक्षण के कार्यों में ग्राम बाल संरक्षण समिति की भूमिकाओं से अवगत करवाया गया। जिसका सुखद परिणाम सामने आया और जिले भर में आहर्तानुसार 1620 ग्राम बाल संरक्षण समिति को क्रियान्वित किया गया है।
फोस्टर केयर से मिला संरक्षण

मनोहरपुर प्रखंड क्षेत्र के ग्राम बिनुआ-चिरिया में पिता के देहांत होने के उपरांत 4 बच्चे के साथ माता की स्थिति दयनीय थी, जैसे-तैसे जीवन-यापन चलाकर 4 बच्चों का पेट पाल रही थी। लेकिन कुछ समय बाद एक घटना क्रम में माता की भी मौत हो गई। ग्राम बाल संरक्षण समिति को जैसे ही जानकारी प्राप्त हुई, उनके द्वारा तत्काल स्थानीय स्तर पर इस सूचना को ग्रामीणों के साथ साझा किया और गांव के बच्चे को गांव में ही पालने के लिए प्रेरित किया। गांव क्षेत्र में बात नहीं बनते देख संरक्षण समिति के द्वारा इसकी सूचना जिला बाल संरक्षण इकाई को उपलब्ध करवाया गया ।
बाल संरक्षण इकाई के द्वारा त्वरित संज्ञान लेते हुए उक्त ग्रामीण क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ताओं के सहयोग से बच्चों के सामाजिक एवं सांस्कृतिक अभिरुचि यथा परंपराएं और सरना धर्म से संबंद्ध परिवार का चयन किया गया तथा उस परिवार को विगत एवं वर्तमान परिस्थितियों का समाजिक अन्वेषण करवाया गया, जिसमें सभी तरफ से बच्चों के लालन-पालन के साथ किशोर न्याय प्रणाली के दिशा निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित किया गया।

इसके उपरांत बाल कल्याण समिति तथा गांव के बैठक उपरांत फोस्टर परिवार के लिए सभी मानदंडों को पूरा करने वाले दंपत्ति सुखदेव टोप्पो एवं श्रीमती दमयंती खलखो जो मनोहरपुर प्रखंड के ही धानापाली गांव के निवासी हैं का चयन कर चार बच्चों के परवरिश की जिम्मेदारी सौंपी गई। फोस्टर परिवार द्वारा बच्चों का सही से लालन-पालन किया जाने लगा। बच्चों को अनुशासित जीवन, पड़ोसियों के साथ मैत्री भाव रखना इत्यादि के साथ ही बाल संरक्षण इकाई के सहयोग से नजदीकी सरकारी प्राथमिक विद्यालय में इनका नामांकन कराया गया।
इस तरह कुछ महीनों के बाद बच्चों की शारीरिक एवं मानसिक स्थिति में सुधार आया। बच्चों में अक्षर ज्ञान, भाषा ज्ञान, सामाजिक समावेश की स्थापना हो चुकी है। आज वही बच्चे जो कभी खुद को असहाय महसूस कर रहे थे, वह वर्तमान में खेल-कूद, शारीरिक व्यायाम, योगा आदि के प्रति आत्मनिर्भर हैं। बचपन ने एक नया मोड़ लिया, मानो ऐसा प्रतीत हुआ जैसे जीवन के एक नए अध्याय की शुरुआत हुई।

चाईबासा के उपायुक्त अनन्य मित्तल ने कहा कि “असहाय बच्चों को नया जीवन देने के लिए जमीनी स्तर पर मानव संसाधन की क्षमता को विकसित करने की जरूरत है। गुणवत्ता निवारण और पुनर्वास सेवाओं की कमी, कानूनों को लागू करने में चुनौती थी। बच्चों के खिलाफ हिंसा , दुर्व्यवहार और शोषण को समाप्त करने की दिशा में सामाजिक जागरूकता लाने, कानून को बढ़ावा देने और पोषित करने की दिशा में सभी के सामंजस्य से प्रगति हुई। लेकिन परिवार खोने वाले बच्चों के संवेदनशीलता एवं मनोभाव को कम करने के लिए प्रत्येक समुदाय व वर्ग को आगे आने की जरूरत होगी। जिससे ऐसे सभी अनाथ और बेसहारा परिवारों के बच्चों के बचपन को मिलकर बचाया जा सके।”

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