इचाक। महामारी के दूसरे लहर में भारत, संक्रमण एवं मौत के प्रतिशत दुनिया के पहले पायदान पर है। इसका मुख्य कारण पक्ष-विपक्ष दोनों के तत्परता में कमी है। अदूरदर्शिता के कारण महामारी से मृत शरीर मझधार में तैरती नजर आ रही है बादशाह अतिन को अनाथ आश्रय देने पर लगे हैं कोई कफ़न देने में लगे हैं जबकि सतर्क रहने पर हमें विश्व गुरु बनने कि काबिलियत है। चुनाव आयोग ने राज्य स्तरीय, मध्यावधि चुनाव की घोषणा की तो सत्ता पक्ष को तैयार नहीं होना चाहिए और विपक्ष का विरोध करना चाहिए था। ऐसा नहीं हुआ जिस कारण हम अपने लाखों भाई और बहनों को गवा चुके हैं और कितने को खोना पड़ सकता है। ये बातें कांग्रेस पार्टी के प्रमंडलीय चिकित्सा प्रकोष्ठ उत्तरी छोटानागपुर झारखंड के अध्यक्ष डॉक्टर आरके प्रसाद मेहता ने कहे

साथ ही उन्होंने कहा कि सत्य अक्सर कड़वा होता है पहले प्रधानमंत्री ने बिना तैयारी के नोटबंदी  और जीएसटी लगा दी। उसी तरह दूसरे कार्य काल में लॉकडाउन की घोषणा बिना जरूरी तैयार के लगा दिए। नोटबंदी-जीएसटी की मार से आर्थिक दिवालियापन आया, लेकिन लॉकडाउन की मार, जान और माल दोनों में विकराल क्षति हुई। जिस देश में करोड़ों लोग रोजी रोटी के लिए दूसरे राज्यों में प्रवासी मजदूर है वह लंबे लॉकडाउन की मार कैसे झेलेंगे।

2019 के अंत में कोरोना की आहट मिलने के बावजूद सरकार मार्च तक ताली थाली बजाती रही। तर्क दिया चिकित्सा सुविधा व्यवस्था तैयारियों में देर किया गया, लेकिन तैयारी कितनी कम थी कि कोरोना की दूसरी लहर में उजागर हो गया, पिछले साल क्रोना कहर अप्रत्याशित था क्योंकि उसकी बाबत ज्यादा जानकारी किसी को नहीं था लेकिन दूसरी लहर आने के संकेत विदेशों में पहले मिल चुके थे, भारतीय विशेषज्ञ भी लगातार आगाह कर रहे थे फिर भी हमारा राजनीतिक नेतृत्व पाच राज्य स्तरीय चुनाव एवं मध्यावधि चुनाव में व्यस्त रहा। वह भी कोरोना नियमों को धत्ता बताकर विशाल रेलिया की जा रही थी।दुनिया के देश कोरोना जंग की तैयारी में जी जान से जुटी थी हमारा राजनीतिक नेतृत्व सत्ता के खेल में परस्पर लगा  था।

परिणाम स्वरूप सरकार से लेकर बुद्धिजीवी समाज मे फैली लापरवाही के बीच डबल म्युटेंट कोरोना के दूसरी लहर आया तो अस्पतालों में पर्याप्त वेड नहीं है ऑक्सीजन और वेंटीलेटर बहुत दूर की बात है अस्पतालों के बाहर भर्ती होने के लिए लाइने कि जगह कम थी। शमशानो, कब्रिस्तानो के बाहर अंतिम संस्कार के लिए लाइन में लोग खड़े थे और है देश में ही दो-दो वैक्सीन के उत्पादन के बावजूद कोरोना टीका कम बताए जा रहे है। टीकाकरण अभियान दिशाहीन दिख रहा है, क्रोना जांच का रिपोर्ट तब आ रहा है जब नेचर लाव आप कयोर से लोग ठीक हो रहा है या रिपोर्ट आने से पूर्व स्वर्ग लोक पधार रहे हैं यह नीति सवालिया निशान लगाने वाली है? कोरोना का कहर कमोवेश पूरी दुनिया में है लेकिन हृदय विदारक दृश्य अन्य देशों में कम है।शर्मसार करने वाली सुर्खियां पर तिलमिलाने के बजाय  केंद्र सरकार को इमानदारी से आत्म-विश्लेषण करना चाहिए, कि ऐसी आपदा कालीन परीक्षा में वह पूरी तरह नाकाम क्यों साबित हुवा।मोदी सरकार के पहले 6 साल की जो चमकदार उपलब्धियां रही है वह सातवें साल में करोना महामारी, भारतीय अर्थव्यवस्था मैं गिरावट कमरतोड़ महंगाई, बेरोजगारी, भूखमरी, किसान आंदोलन मैं 200 लोगों कि शहीद होना, किसान आंदोलन से निपटने में नाकामी की छाया शहंशाह पर काली छाया के रूप में नजरआ रही है। विपक्ष की कर्तव्य है कि  देश में आपदा महामारी, युद्ध के समय सत्तापक्ष को आलोचना करते हुए सत्ता पक्ष के साथ कंधा में कंधा मिलाकर जनहित में सहयोग करें, जागरूक करते रहे यही प्रजातंत्र की खूबसूरती है।

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