नई दिल्ली। सभी मन्त्रों का उच्चारण ऊँ से शुरु होता है. ऊँ एक शब्द नहीं बल्कि इसमें पूरा संसार है. सदियों से हमारे ऋषि मुनि ऊँ का उच्चारण करके तप योग और साधना करते आए हैं. इस चमत्कारी शब्द में इतनी शक्ति है कि केवल ऊँ के जाप से ईश्वर को पाया जा सकता है. आइए जानते हैं ऊँ की कल्याणकारी शक्तियों के बारे में और ‘ऊँ’ का उच्चारण कैसे करना चाहिए.
ऊँ का पौराणिक महत्व
ऊँ के उच्चारण में संपूर्ण ब्रह्मांड का ज्ञान छिपा है. कहा जाता है कि ऊँ के जाप से परमपिता परमेश्वर प्रसन्न होते हैं क्योंकि ऊँ ईश्वर के सभी रूपों का संयुक्त रूप है. इस चमत्कारी शब्द में इतनी शक्ति है कि केवल इसके जाप से ईश्वर को पाया जा सकता है. ऊँ शब्द में पूरी सृष्टि समाई हुई है. इसके उच्चारण से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होने लगता है. ये ध्वनि इंसान की सुनने की क्षमता से बहुत ऊपर है. कहा जाता है की संसार के अस्तित्व में आने से पहले जिस प्राकृतिक ध्वनि की गूंज थी वह ऊँ की ही थी. इसे ब्रह्मांड की आवाज भी कहा गया है.
ऊँ का उच्चारण करते समय रखें ये ध्यान
ऊँ का उच्चारण हमेशा स्वच्छ और खुले वातावरण में ही करें. ऊँ का उच्चारण करने से सांसे तेज हो जाती हैं. खुले स्थान पर इसका उच्चारण करने से हमारे शरीर में स्वच्छ हवा जाती है, जो शरीर के लिए बहुत लाभदायक होती है. ऊँ का उच्चारण सुखासन, पद्मासन, वज्रासन आदि मुद्रा में बैठ कर ही करना चाहिए. 5,7,11 या 21 बार ऊँ का उच्चारण करना उपयोगी माना गया है.